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करवा चौथ: परंपरा के साथ संकल्प का पर्व, विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं पूरे दिन व्रत

योगेश कुमार गोयल Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Sun, 20 Oct 2024 05:45 AM IST
सार
करवा चौथ व्रत भारतीय विवाह परंपरा में पत्ति-पत्नी के आपसी विश्वास का प्रतीक है, जो एक-दूसरे के प्रति समर्पण को दर्शाता है और वर्षों बाद भी प्रासंगिक बना हुआ है।
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Karva Chauth festival of resolutions with tradition married women keep fast whole day for husbands long life
करवा चौथ 2024 - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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करवा चौथ पर विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और सौभाग्य की कामना के लिए कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला अखंड सुहाग का प्रतीक यह व्रत अन्य सभी व्रतों के मुकाबले बहुत कठिन माना जाता है। माना जाता है कि इसके समान सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है। इस व्रत को 12-16 वर्ष तक निरंतर रखने की परंपरा है। उसके बाद कुछ महिलाएं उद्यापन कर देती हैं और कुछ आजीवन रखती हैं। आजकल तो पुरुष भी पूरे दिन का उपवास रखकर पत्नी के इस कठिन तप में उनके सहभागी बनते हैं। दिनभर उपवास करने के बाद शाम को सुहागिनें करवा की कथा सुनती और कहती हैं तथा चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर सुहाग की दीर्घायु की कामना कर प्रण करती हैं कि वे जीवनपर्यंत पति के प्रति तन, मन, वचन एवं कर्म से समर्पित रहेंगी। पूजा-पाठ के बाद सुहागिनें सास के चरण स्पर्श कर उनसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती हैं।



करवा चौथ पर्व के संबंध में वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन सभी का सार पति की दीर्घायु और सौभाग्यवृद्धि से ही जुड़ा है। विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार करवा चौथ व्रत का उद्गम उस समय हुआ था, जब देव एवं दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और युद्ध में देवता परास्त होते नजर आ रहे थे। तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से इसका कोई उपाय करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने उन्हें सलाह दी कि अगर सभी देवों की पत्नियां सच्चे एवं पवित्र मन से अपने पतियों की जीत के लिए प्रार्थना तथा उपवास करें तो देवता दैत्यों को परास्त करने में अवश्य सफल होंगे। ब्रह्मा जी की सलाह पर समस्त देव पत्नियों ने कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया और रात्रि के समय चंद्रोदय से पहले ही देवता, दैत्यों से युद्ध जीत गए। तब चंद्रोदय के बाद दिनभर की भूखी-प्यासी देव पत्नियों ने अपना-अपना व्रत खोला। ऐसी मान्यता है कि तभी से इस दिन करवा चौथ का व्रत किए जाने की परंपरा शुरू हुई। इसके अलावा एक कथा महाभारत काल से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था और उनके व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई। इसलिए करवा चौथ के व्रत के उद्गम को इस प्रसंग से भी जोड़कर देखा जाता है और कहा जाता है कि इसी के बाद सुहागिनें करवा चौथ व्रत रखने लगी। इस पर्व से संबंधित कई अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं, जिनमें सत्यवान और सावित्री की कथा आैर करवा नामक एक स्त्री की कथा भी बहुत प्रसिद्ध है।

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