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किस्मत कनेक्शन: नाम में क्या रखा है, अगर है तो कुछ सुझाएगा नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म का विचार

जेसी सिंगल, द न्यूयॉर्क टाइम्स Published by: पवन पांडेय Updated Sun, 14 Dec 2025 07:31 AM IST
सार
नाम में क्या रखा है: क्या किसी व्यक्ति के नाम और उसकी किस्मत में कोई संबंध हो सकता है? न्यू साइंटिस्ट  पत्रिका के एक लेख ने कई दशक पहले नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म का विचार दिया था, जिसके अनुसार मनुष्य अपने नाम से मिलते-जुलते लोगों, जगहों और विषयों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। दरअसल, अव्यवस्थित ब्रह्मांड के पीछे की व्यवस्था का रहस्य जानने की मनुष्य की बुनियादी जिज्ञासा उसे इस सवाल का जवाब ढूंढने पर मजबूर करती है।
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Kismat Connection: What's in a name, if anything, suggests the idea of nominative determinism
नाम में क्या रखा है? - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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एक विज्ञान लेखक के तौर पर अपने काम में, मैंने पाया है कि इन्सानों में ऐसे सिद्धांतों की तरफ एक जबर्दस्त झुकाव होता है, जो दुनिया को आसान बनाती हैं और ऐसे नतीजों को समझाती हैं, जो अन्यथा बेतरतीब लगते हैं। बहुत पहले, लोग इस बात से हैरान थे कि किसी इन्सान का नाम उसकी किस्मत पर असर डालता है। प्राचीन रोम के लोगों ने इस अवधारणा के लिए एक कविता भी लिखी है, नोमेन एस्ट ओमेन, या ‘नाम एक शगुन है।’ यह कहावत असल दुनिया में 70 ईसा पूर्व में सामने आई, जब गेयस वेरेस नामक एक रोमन अधिकारी, जिसके उपनाम का मतलब ‘नर सूअर’ होता है, पर सिसिली में लूटपाट और जबरन वसूली के कई आरोपों के लिए मुकदमा चलाया गया। दुर्भाग्य से वेरेस के मुकदमे में अभियोक्ता कोई और नहीं, बल्कि महान वक्ता सिसरो थे, जिन्होंने तर्क दिया कि वेरेस के आचरण ने '

‘उनके नाम की पुष्टि की’-यह नाम को किसी के आचरण से जोड़ने का एक प्रारंभिक उदाहरण है, जिसे अब हम अपमानित करना कह सकते हैं। सिसरो के उपहास के बाद से हजारों वर्षों में, नाम और किस्मत के बीच का रिश्ता तेजी से वैज्ञानिक जांच का विषय बन गया है-यह ऐसा कुछ है, जिसके बारे में न केवल सोचा जाना चाहिए या महागाथाओं के जरिये बताया जाना चाहिए, बल्कि इसे मापा भी जाना चाहिए और अनुभव के आधार पर परखा भी जाना चाहिए।


मैंने ‘नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म’ (नाम संबधी नियतिवाद), या उस अवधारणा के सबूतों की खोज की है कि क्या किसी व्यक्ति का नाम उसके काम, रुचियों या जीवनसाथी की पसंद पर असर डालता है, और मुझे लगता है कि इस पर शक करने के उचित कारण हैं। लेकिन सदियों से सबूतों के खिलाफ इस विचार में निरंतर रुचि खुलासा करती है, जो अव्यवस्थित ब्रह्मांड में व्यवस्था के लिए मनुष्यों की गहरी इच्छा और उस जरूरत को पूरा करने में विज्ञान की भूमिका को उजागर करती है। आधुनिक युग में ‘नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म’ के बारे में लोगों की दिलचस्पी 1994 से शुरू हुई, जब न्यू साइंटिस्ट मैगजीन ने एक आलेख में बताया कि वैज्ञानिक और लेखक अक्सर अपने नाम की वजह से कुछ खास विषयों की तरफ आकर्षित होते हैं। उस कॉलम में अब तक का सबसे अच्छा उदाहरण ब्रिटिश जर्नल ऑफ यूरोलॉजी में असंयम के बारे में एक आलेख है, जिसे ए जे स्प्लैट और डी वीडन की टीम ने लिखा था। न्यू साइंटिस्ट के एक पाठक ने ‘नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म’ शब्द गढ़ा था, जिसका मकसद यह बताना था कि ‘लेखक अनुसंधान के लिए उस क्षेत्र की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, जो उनके उपनाम से मेल खाता है।’ तब से, इस शब्द का मतलब और भी बढ़ गया है।

2000 के दशक की शुरुआत में, प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी में छपे तीन आलेखों में बताया गया था कि लोगों के नाम न केवल इस बारे में उनके फैसलों पर असर डालते हैं कि उन्हें कौन-सा पेशा चुनना है, बल्कि इस बारे में भी कि उन्हें कहां जाना है और किससे शादी करनी है। साफ तौर पर कहें तो, यह उस अनुसंधान से अलग है, जिसमें यह पता लगाया जाता है कि लोगों के नाम पर दूसरों की प्रतिक्रियाएं उनके जीवन की संभावनाओं को कैसे प्रभावित करती हैं।

नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म मनोविज्ञान की किताबों का हिस्सा बन गया। शोधकर्ताओं ने अंदाजा लगाया कि यह अंदर छिपे अहंकार से चलता है, या इस सोच से कि हम जिसे खुद से जोड़ते हैं, उसे पसंद करते हैं और अनजाने में उसकी तरफ खिंचे चले जाते हैं। लेकिन कुछ लोग शक करने वाले भी थे। उनमें से एक मनोवैज्ञानिक उरी साइमनसन थे, जो तब यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया में प्रोफेसर थे। जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी में उनका 2011 का आलेख उन पिछले अध्ययनों का सावधानीपूर्वक खंडन करता है, जिनमें कहा गया था कि अंदर का अहंकार हमें जीवनसाथी, शहरों और नौकरियों की ओर उनके नाम के कारण आकर्षित करता है।

उन्होंने दिखाया कि इस मामले में उपलब्ध साहित्य, दूसरी आसान संभावनाओं को बताने में लगातार विफल रहा है। इस बात को ही लें कि अमेरिकियों के उन लोगों से शादी करने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, जिनका उपनाम पहले से ही उनके जैसा होता है। डॉ. साइमनसन ने कहा कि इसे समझाने के लिए अहंकार का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इसकी एक और संभावित वजह हो सकती है: नस्लीय नामों और अंतर-विवाह के पैटर्न। यानी, यदि आप कोरियाई मूल के अमेरिकी हैं और आपका उपनाम किम है और आप कोरियाई मूल के किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करना चाहते हैं, तो आपकी शादी के लायक साथियों में दूसरे किम लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होगी। उन्होंने तर्क दिया कि बच्चों के नाम का चलन, नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म के स्पष्ट मामलों के लिए एक और नजरअंदाज की गई वजह है। जैसा कि 2002 के एक अध्ययन से पता चलता है कि ऐसा नहीं था कि डेनिस के दंत-चिकित्सक होने की संभावना आम जैरी या वाल्टर से ज्यादा थी, बल्कि ऐसा इसलिए था, क्योंकि डेनिस के काम करने की संभावना ज्यादा थी। यह आलेख इस बात का शानदार उदाहरण है कि विज्ञान कितना जटिल व खतरों से भरा हो सकता है और इसे आगे बढ़ाने में सैद्धांतिक संदेहवादी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

जब मैंने डॉ. साइमनसन से पूछा कि क्या इतने वर्षों बाद भी नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म पर उनके विचार वही हैं, तो उन्होंने कहा हां, उन्हें अब भी शक है। मेरे लिए, यह इससे भी ज्यादा दिलचस्प है कि नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म का अस्तित्व है या नहीं। एक विज्ञान लेखक के तौर पर अपने काम में, मैंने पाया है कि इन्सानों में ऐसे सिद्धांतों की तरफ एक जबर्दस्त झुकाव होता है, जो दुनिया को आसान बनाती हैं और ऐसे नतीजों को समझाती हैं, जो अन्यथा बेतरतीब लगते हैं। आधुनिक युग में, हम विशेष रूप से वैज्ञानिक सिद्धांतों की ओर आकर्षित होते हैं, जो हमें उन सारी अराजकता और अनिश्चितता को नियंत्रित करने की अनुमति देते हैं, और इसे सहकर्मियों द्वारा समीक्षित अनुसंधान में परिवर्तित करते हैं। ये सिद्धांत आमतौर पर समय की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। लेकिन ऐसे सिद्धांतों की लोकप्रियता अपने आप में चौंकाने वाली है। सोचिए कि आज आप जहां हैं, वहां तक पहुंचने के लिए कितनी सारी चीजें हुई होंगी-ब्रह्मांड के होने से लेकर धरती पर जीवन की शुरुआत तक, आपके माता-पिता से मिलने व आपके परिवार और शैक्षणिक अनुभवों तक।

सोचिए कि कितनी आसानी से इनमें से कुछ भी अलग हो सकता था। चक्कर आ रहा है ना? आप क्या मानना चाहेंगे कि आप जहां हैं, वहां इसलिए हैं, क्योंकि अरबों वर्षों से खगोलीय पिंडों का एक बहुत बड़ा क्षेत्र एक-दूसरे से टकरा रहा है या इसलिए कि सतह के ठीक नीचे सूक्ष्म शक्तियों ने आपको निर्देशित किया है, और हम पता लगा सकते हैं कि वे शक्तियां क्या हैं? एक अजीब व रहस्यमय तरीके से, क्या यह सोचना सुकून देने वाला नहीं है कि आप सैन फ्रांसिस्को इसलिए नहीं पहुंचे, क्योंकि वहां की जगह और नौकरी में उतार-चढ़ाव था, बल्कि इसलिए पहुंचे, क्योंकि आपका नाम फ्रैन था और आपके अंदर कुछ ऐसा था, जो आपको वहां खींच लाया? या आप अपने बच्चे का भाग्य बदल सकते हैं, उसे ऐसा नाम देकर, जो उसे खुशी व सफलता की ओर ले जाएगा?

मैं खुद को स्वाभाविक रूप से शक्की मानता हूं। फिर भी जब मैं उन अनगिनत दिलचस्प तरीकों के बारे में सोचता हूं, जिनसे नामों का किस्मत पर असर डालने वाला विषय इन्सानी इतिहास और साहित्य में सामने आया है, तो मैं हैरान हो जाता हूं। मेरा एक हिस्सा नॉमिनेटिव डिटरमिनिज्म जैसी घटनाओं की अवधारणा और रहस्य का मजा लेना चाहता है, बिना यह सोचे कि वे सच हैं या नहीं। मुझे गलत मत समझिए, विज्ञान बहुत महान है। विज्ञान ने जानें बचाईं और हमें चांद तक पहुंचाया। लेकिन वैज्ञानिकता (हर चीज को व्यवस्थित ढंग से मापने और समझाने की लगातार कोशिश) दुनिया से थोड़ी हैरानी भी छीन सकती है।
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