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आकलन: 2023 के नतीजों ने भाजपा के लिए आसान की 2024 की राह

Neerja Chowdhary नीरजा चौधरी
Updated Mon, 04 Dec 2023 06:37 AM IST
सार
विधानसभा चुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्साहजनक हैं। उसने न केवल मध्य प्रदेश में शानदार ढंग से सत्ता में वापसी की है, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीन ली है।
 
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lok sabha election 2024 fight will be smooth for bjp after assembly election 2023 results
पीएम मोदी (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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रविवार को चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के जो परिणाम घोषित हुए हैं, वे भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्साहजनक हैं। भाजपा ने न केवल मध्य प्रदेश में चार कार्यकाल की सत्ता विरोधी रुझानों के बावजूद बिना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए शानदार ढंग से सत्ता में वापसी की है, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीन ली है। कह सकते हैं कि राजस्थान में पांच वर्ष पर सत्ता बदलने का पुराना रिवाज है, लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल द्वारा चलाई गई तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद भाजपा ने सत्ता हासिल की है।



दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की कोई खास पैठ नहीं है, इसलिए तेलंगाना में मुख्य लड़ाई के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस (पहले टीआरएस) और कांग्रेस के बीच थी। चूंकि वहां केसीआर के रवैये और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण बीआरएस के खिलाफ जबर्दस्त सत्ता विरोधी रुझान था, इसलिए वहां सत्ता हासिल करना कांग्रेस के लिए आसान हो गया। इसके अलावा, रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में वहां पार्टी का संगठन भी अपेक्षाकृत मजबूत है।


इन चारों राज्यों के जनादेश का अगर विश्लेषण करें, तो एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि हिंदी भाषी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की पकड़ बहुत मजबूत है। यह इससे भी स्पष्ट है कि वर्ष 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद 2019 में हुए चुनावों में इन राज्यों में भाजपा ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया था। इस बार तो इन राज्यों में भाजपा ने जीत दर्ज की है, इसलिए 2024 में उसके लिए जीतना और आसान होगा। इसका एक मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि जहां-जहां कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर होती है, संगठन और चुनावी मशीनरी के मामले में काफी कमजोर होने के कारण कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी से पिछड़ जाती है और जहां कांग्रेस का मुकाबला क्षेत्रीय पार्टियों से होता है, वहां उसे सफलता मिलती है।

दूसरी बात यह है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। इन सभी राज्यों में भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था और मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा गया था। बेशक इन चुनावों में भाजपा की जीत के पीछे और भी कई मुद्दे थे, लेकिन नरेंद्र मोदी का चेहरा एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। जाहिर है, मतदाता उन पर भरोसा करते हैं। बूथ स्तर तक भाजपा का संगठन मजबूत है और पार्टी की चुनावी मशीनरी हमेशा सक्रिय रहती है।

लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी और भी मजबूती के साथ पार्टी का चेहरा बनकर उभरेंगे। कांग्रेस ने बेशक राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता गंवा दी है, फिर भी इन राज्यों में कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया नहीं हुआ है। तेलंगाना में उसने जीत हासिल की है। राजस्थान में, जहां हरेक पांच साल सरकार बदले जाने का रिवाज है, लग रहा था कि कांग्रेस बीस-पच्चीस सीटों से ज्यादा जीत नहीं पाएगी, लेकिन अशोक गहलोत 69 सीटें पाने में कामयाब रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस के प्रदर्शन में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन उसकी रफ्तार बहुत धीमी है। इसके अलावा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, दोनों जगह कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदू कार्ड नहीं चला। इन चुनावों में महिलाएं एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरीं। मध्य प्रदेश में भाजपा की लाडली बहना योजना का शिवराज सिंह चौहान को बहुत फायदा मिला।

इसका यह भी मतलब है कि मोदी की भाजपा को टक्कर देना या ‘इंडिया’ गठबंधन के इतने दलों के बीच उसकी बराबरी करने में भी अभी कांग्रेस को काफी मुश्किलें होंगी। अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव जीत जाती, तो ‘इंडिया’ गठबंधन में सीटों के बंटवारे में मुश्किल होती। पर अब गठबंधन के दलों को कांग्रेस से सौदेबाजी करने में आसानी होगी। भाजपा के खिलाफ विपक्ष की ओर से एक उम्मीदवार खड़ा करने की नीति को लोकसभा चुनाव में अगर प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो स्थिति और भी खराब हो सकती है। ‘इंडिया’ गठबंधन में मोदी जैसे लोकप्रिय चेहरे के मुकाबले में कोई एक चेहरा नहीं है। इसके अलावा, गठबंधन के दलों का संगठन भी कमजोर है।

बहरहाल, ‘इंडिया’ गठबंधन को अब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर गंभीर होना पड़ेगा, नहीं तो लड़ाई मुश्किल होगी। इन नतीजों को देखकर निर्णायक रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसे ही नतीजे 2024 में भी होंगे, लेकिन इसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजिमी है। अब देखने वाली बात होगी कि भाजपा इन राज्यों में नए चेहरों को नेतृत्व सौंपती है या पुराने चेहरे को ही नेतृत्व सौंपती है। क्या मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाया जाएगा? वैसे भी लोकसभा चुनाव में अब बहुत दिन नहीं रह गए हैं, इसलिए चेहरे बदलने के भी अपने जोखिम हैं। लेकिन पार्टी यह जोखिम उठा सकती है, क्योंकि उसके पास मोदी जैसा लोकप्रिय चेहरा है।

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