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नई श्रम संहिताएं: दशकों बाद मजदूरों के हित की बात, लेकिन लागू करने में आएंगी कई चुनौतियां

virag gupta विराग गुप्ता
Updated Mon, 24 Nov 2025 07:10 AM IST
सार
केंद्र ने नए श्रम कानूनों को लागू करने का फैसला लिया है, जिनमें वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक व व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी चार कानून हैं। हालांकि इन्हें लागू करने में कई चुनौतियां हैं, लेकिन अगर किए गए वादे जमीनी स्तर पर पूरे हो जाएं, तो विकसित भारत का सपना साकार हो सकता है।
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new labor code talks about interests of workers after decades
भारत में चार नए लेबर कोड लागू - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जब टैरिफ बढ़ाया, तो भारत ने जीएसटी सुधारों के माध्यम से उसका भरपूर मुकाबला किया। बिहार चुनावों में प्रवासी मजदूर, औद्योगिकीकरण और रोजगार बड़ा मुद्दा था। भारी चुनावी जीत के बाद केंद्र सरकार ने पहले से पारित श्रम कानूनों को लागू करने का फैसला लिया है। श्रम संहिता में वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी चार कानून हैं।


दूसरे राष्ट्रीय आयोग ने वर्ष 1999 की रिपोर्ट में कहा था कि पुराने कानूनों में इतनी जटिलता और विरोधाभास है कि सभी को लागू करने पर 20 फीसदी कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन हो सकता है। 29 मौजूदा श्रम कानूनों को मिलाकर चार नए कानून बनाने से 1,228 कानून घटकर 480, नियम 1,436 से घटकर 351 और रजिस्टरों की संख्या 84 से घटकर 8 हो जाएगी। रजिस्ट्रेशन के लिए सिर्फ एक कानून और 65 प्रावधानों में अपराध के पहलू को खत्म करना भी उद्योग जगत के हित में होगा। कहा जा रहा है कि नए कानून से 40 करोड़ श्रमिकों और कामगारों को नियुक्ति पत्र और न्यूनतम मजदूरी, महिलाओं को बराबर वेतन, ग्रेच्युटी, फ्री मेडिकल चेकअप जैसी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलेगी। इससे पिछड़े और गरीब राज्यों में औद्योगिकीकरण बढ़ेगा और वहां से मजदूरों का पलायन भी कम होगा।


वर्ष 2023-24 के लेबर सर्वे के अनुसार, कुल श्रमिकों में सिर्फ 11 फीसदी ही 20 से ज्यादा श्रमिकों वाले बड़े उद्योगों में काम करते हैं। ई-श्रम पोर्टल में 30.48 करोड़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन है, जिनमें लगभग 53 फीसदी कृषि क्षेत्र में हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के अनुसार, भारत में हर 10 में से 9 श्रमिकों का रोजगार अस्थायी होने से अर्थव्यवस्था के सामने बड़ी चुनौती है। एनएचआरसी सर्वे के अनुसार, शोषण और अनियमित काम के चलते असंगठित क्षेत्र के दो-तिहाई कामगार बीमारी और अपमान झेलने को मजबूर हैं। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा के 26 करोड़ जॉब कार्ड होल्डरों में से 41.1 फीसदी आधार भुगतान प्रणाली से नहीं जुड़ पाए हैं। इस वजह से 2.13 करोड़ लोगों को काम के बावजूद मजदूरी नहीं मिल पा रही। इन कानूनों की सफलता की पहली कसौटी यह होगी कि देश भर में मनरेगा कर्मियों को नियमित और न्यूनतम वेतन मिल सके।  

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने बिहार में नील की खेती करने वाले निलहे मजदूरों की दुर्दशा की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। निलहे मजदूरों की तरह डिजिटल इकनॉमी में गिग वर्कर्स या दिहाड़ी कामगारों का शोषण हो रहा है। अमेजन, ओला, उबर, जोमेटो, डंजो, स्विगी और बिग बास्केट जैसी कंपनियों से जुड़े ड्राइवर, डिलीवरी बॉय और कामगारों को गिग वर्कर कहा जाता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में 77 लाख गिग वर्कर्स थे, जिनकी संख्या 2029 तक बढ़कर 2.35 करोड़ होने की संभावना है।

अमेजन के वेयरहाउस कामगारों ने ब्लैक फ्रायडे हड़ताल करके ‘मेक अमेजन पे’ के बैनर तले सही भुगतान और काम के अच्छे वातावरण की मांग की थी। काम के अनियमित घंटों और शोषण की वजह से गिग वर्कर्स में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। ड्राइवर और डिलीवरी बॉय का जमकर शोषण करने के बावजूद कंपनियां उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं देना चाहती हैं। इंग्लैंड के रोजगार ट्रिब्यूनल ने 2016 में उबर के ड्राइवरों को पूर्णकालिक कामगार का दर्जा दिया था। यूरोपीय संघ की कोर्ट ऑफ जस्टिस ने 2017 में कहा था कि उबर को एग्रीगेटर के बजाय ट्रांसपोर्ट सेवा के तौर पर कानून का पालन करना चाहिए। सिंगापुर में गिग वर्कर्स को रिटायरमेंट बेनेफिट और इंडोनेशिया में दुर्घटना, स्वास्थ्य और जीवन बीमा की सुविधा मिलती है।

भारत में टेक कंपनियां आईडी कार्ड ब्लॉक करके गिग कामगारों को मिनटों में बर्खास्त कर देती हैं। गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में 2020 में दायर याचिका पर चार साल तक जवाब नहीं मिलने पर जजों ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। जजों के अनुसार, भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक देश है, इसलिए गिग वर्कर्स को एग्रीगेटर कंपनी से न्यूनतम वेतन, दुर्घटना बीमा, ईएसआई, स्वास्थ्य और पीएफ जैसी कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए। जी-20 के सम्मेलन में गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए बयान जारी हुआ था। इन कानूनों में गिग कामगारों को परिभाषित करने के साथ ही उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया है। टेक कंपनियों को भारत में सालाना कमाई का पांच फीसदी तक गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए सुरक्षित करना पड़ेगा। आधार लिंक्ड यूएएन से लाभ मिलने से फर्जीवाड़ा भी कम होगा।

बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि ई-श्रम पोर्टल को मनरेगा, नेशनल कॅरिअर सर्विस, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, श्रमयोगी मानधन जैसे दूसरे पोर्टल्स से जोड़कर वन स्टॉप सेंटर बनाया जाएगा। नए कानूनों के साथ इसे लागू किया जाए, तो गिग वर्कर्स को राहत मिलेगी। राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारों ने गिग वर्कर्स को राहत देने के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी। गिग वर्कर्स के कल्याण से जुड़े इन प्रगतिशील और समावेशी कानूनी सुधारों का सियासी विरोध ठीक नहीं होगा।  

देश के 18 राज्यों ने पांच साल पहले पारित श्रम कानूनों के अनुसार नियम बना दिए हैं। अन्य राज्यों में नियम बनाने के साथ पूरे देश में इन्हें लागू करने के लिए विशेष फंड भी चाहिए। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन कानून को लागू करने के नाम पर राज्यों में इंस्पेक्टर राज न बढ़ जाए। कृषि कानून की तरह श्रम कानून पटरी से न उतरे, उसके लिए केंद्र सरकार को ट्रेड यूनियंस के साथ सभी पार्टियों से भरोसेमंद संवाद करना होगा। प्रथम विश्वयुद्ध और आर्थिक मंदी के बाद भारत में श्रम कानून को बड़े पैमाने पर लागू किया गया था। एआई के नए दौर में रोजगार के कम होते अवसरों के बीच नई श्रम संहिता को लागू करने में अनेक चुनौतियां हैं। नई श्रम संहिता लागू करने के लिए किए गए वादे जमीनी स्तर पर पूरे हो जाएं, तो विकसित भारत का सपना साकार हो सकता है।edit@amarujala.com
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