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टाइम मशीन: कला लूट और किस्से, फिल्मों की थीम से असल घटनाओं तक

Anshuman Tiwari अंशुमान तिवारी
Updated Sun, 23 Nov 2025 07:14 AM IST
सार
हिटलर के करीबी जर्मन विचारक, अल्फ्रेड रोसेनबर्ग ने ईआरआर नामक विभाग बनाया है। इस मुहिम में हरमन गोरिंग भी शामिल है, जो हिटलर का दाहिना हाथ है। हिटलर अपने गृहनगर लिंज में एक भव्य म्यूजियम बनाना चाहता है। गोरिंग ने कहा-सब कुछ लूट लो! और ईआरआर ने सुन लिया। यहां से शुरू होती है कला की सबसे बड़ी डकैती।
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When a ruler created an entire department to loot museums
पेरिस के लूव्र संग्रहालय में चोरी - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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पेरिस के संग्रहालय में हाल ही में हुई डकैती पर राष्ट्रपति मैक्रों बोले कि यह हमारे इतिहास पर हमला है। खजानों की चोरियां फिल्मों की प्रचलित थीम है, तो ऐसी असल घटनाओं की भी कोई कमी नहीं है।


रविवार, 19 अक्तूबर, 2025। सुबह के 9.30 बजे हैं। लूव्र संग्रहालय की कांच की पिरामिड सूरज की रोशनी में चमक रही है। म्यूजियम के दक्षिणी हिस्से में सेन रिवर के किनारे वाली सड़क पर सफेद वैन आती है। इसमें चार लोग हैं। तीन आदमी नारंगी जैकेट में बाहर निकलते हैं। दो लोग इस सीढ़ी से लूव्र की दूसरी मंजिल की बालकनी पर पहुंचते हैं, जहां पहले से मरम्मत का काम चल रहा है। यह बालकनी गैलरी द’अपोलोन में खुलती है, जहां कोई कैमरा नहीं है। दोनों गैलरी में दाखिल होते हैं। एक मशीन की आवाज गूंजती है। बुलेटप्रूफ शीशा कुछ सेकंड में कट जाता है। बस चार मिनट लगा और एम्प्रेस मैरी-लुई, क्वीन मैरी-एमेली और क्वीन हॉर्टेंस और यूजिनी के पन्ना-हीरा जड़े टियारा, हार और ब्रोच आदि लेकर चोर पेरिस में गुम हो गए। फ्रांस हिल गया लूव्र की चोरी से। राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा, यह ‘हमारे इतिहास पर हमला’ है।


म्यूजियम हेइस्ट या खजानों की चोरियां फिल्मों की ऐसी थीम है, जो कभी पुरानी नहीं पड़ती। म्यूजियम और महलों से माल-मत्ता चुराने की असली घटनाएं भी बहुतेरी हैं। अलबत्ता ऐसा एक ही बार हुआ, जब एक शासक ने संग्रहालयों को लूटने के लिए पूरा विभाग बना दिया। धरोहरों की इतनी बड़ी डकैती को करीब से देखने के लिए आइए टाइम मशीन में।

टाइम मशीन के पाथ पर पहला पड़ाव दर्ज है-पेरिस, जुलाई, 1940। यह जुलाई, 1940 की गर्मियां हैं। नाजी बूट पेरिस की सड़कों को रौंद रहे हैं। हिटलर के करीबी जर्मन विचारक, अल्फ्रेड रोसेनबर्ग ने एक नया विभाग बनाया है। नाम है-ईआरआर यानी आइन्सात्जस्टैब रीच्सलेटर रोसेनबर्ग। नाम जटिल है, मगर मकसद है दुश्मन देशों से राजनीतिक कागजात छीनना, ताकि यहूदियों और फ्रीमेसंस के खिलाफ नात्जी प्रचार को ताकत मिल सके।

रोसेनबर्ग की इस मुहिम में हरमन गोरिंग भी शामिल है, जो हिटलर का दाहिना हाथ है। गोरिंग को मालूम है कि हिटलर अपने गृहनगर लिंज में एक भव्य फ्यूहर म्यूजियम, ओपेरा हाउस और 2.5 लाख किताबों की लाइब्रेरी बनाना चाहता है। वह इसे वियना से भी अधिक भव्य बनाएगा। इसलिए ऑस्ट्रिया की सारी कला लूटकर हिटलर ने अपने पास रख ली है। गोरिंग ने कहा-अब सिर्फ कागज नहीं, सब कुछ लूट लो! और ईआरआर ने सुन लिया। अब यहां से शुरू होती है कला की सबसे बड़ी डकैती। अक्तूबर, 1940 का पेरिस। हम रोथ्सचाइल्ड परिवार के आलीशान घर के सामने हैं। जर्मन ट्रक रुकते हैं, और ईआरआर के सैनिक अब कला लूट रहे हैं। यह लूट 1944 तक चलेगी। 20,000 से ज्यादा धरोहरें लूटी जाएंगी। फ्रांस की एक-तिहाई निजी कला ज्यू द पॉम में जमा कर दी गई है। हिटलर ने एलान कर दिया है कि ये सारी कला मेरी है। टाइम मशीन अब पेरिस के ज्यू द पॉम म्यूजियम के सामने है। साल है 1942 का। ज्यू द पॉम, कभी शाही टेनिस कोर्ट था, अब नाजी लूट का गोदाम। हरमन गोरिंग यहां 1940 से 1942 तक बीस बार आ चुका है। ईआरआर का एजेंट ब्रूनो लोहसे उसके लिए खास प्रदर्शनियां लगाता है। गोरिंग 594 कृतियां अपने लिए चुनता है, मगर सबसे बेहतरीन हिटलर के लिंज म्यूजियम के लिए रखी जाती हैं।

यह 27 जुलाई, 1942 का दिन है। कोई ग्राहक नहीं है। पेंटिंग आंगन में जल रही हैं। आग की लपटें सदियों की कला निगल रही हैं। यहां एक कर्मचारी हैं रोज वेलैंड। यह सबसे छिपाकर कुछ लिखती जा रही हंै। क्या है उनके नोट्स में, यह हमें बाद में पता चलेगा। यह मई, 1945 है। हिटलर की मौत के बाद पहला सप्ताह। टाइम मशीन अब ऑस्ट्रिया की अल्टॉसी नमक खदान के सामने उतरी है। तापमान आठ डिग्री। चारों तरफ अंधेरा, सिर्फ टिमटिमाती लालटेन की रोशनी। 120 मीटर नीचे खदान में छिपा है लूटी गई यूरोपीय कला का भंडार। यहां करीब 8,000 पेटिंग, स्केच, प्रिंट, मूर्तियां जमा हैं। घेंट ऑल्टरपीस, दुनिया की सबसे कीमती कृति, लकड़ी के बक्सों में बंद है। वर्मीर, रूबेंस, और रोथ्सचाइल्ड परिवार के गहनों का ढेर है इन बक्सों में। यही है हिटलर का खजाना, जो वह म्यूजियम के लिए जमा कर रहा था। आज रात यहां खतरा है। नाजी अधिकारी ऑगस्त ईग्रुबर ने खदान में 500 किलो के आठ बम लगा दिए हैं, जिन पर लिखा है-मार्बल मत गिराना। हिटलर का ऑर्डर था कि अगर हारे, तो सब कुछ जला देना, दुश्मनों को कुछ न मिले। स्थानीय खनिकों ने बगावत कर दी। यह चार मई, 1945 की सुबह है। मजदूरों ने जान जोखिम में डालकर बम बाहर निकाल दिए हैं और खदान के दरवाजे को उड़ा दिया है, ताकि ईग्रुबर को लगे कि सब खत्म। पांच दिन बाद अमेरिकी सेना और मॉन्यूमेंट्स मैन यहां आते हैं, और यह खजाना दुनिया के सामने आता है। लेकिन अभी ठहरिए, हम नॉयश्वानश्टाइन कैसल, बवेरिया पहुंच रहे हैं। बवेरिया के परियों की कहानी जैसा यह महल यूरोपीय लूट का दूसरा भंडार है। न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम के क्यूरेटर कैप्टन जेम्स रोरिमर को यहां बेशकीमती कला और गहनों के एक बंद कमरे में ईआरआर की लैब और आर्काइव भी मिला है। अलमारियां भरी हैं तस्वीरों, कैटलॉग कार्ड्स और 21,000 चुराई गई चीजों के रिकॉर्ड से। हर चोरी हुई पेंटिंग, हर यहूदी परिवार का नाम, हर ट्रेन शिपमेंट-सब दर्ज। ईआरआर सिर्फ लूटता नहीं था, रिकॉर्ड भी रखता था। यही पुराने कागजात दुनिया भर में चोरी की कला वापस पाने का एकमात्र सुराग बनेंगे।

मगर सवाल यह है कि रोरिमर को इस महल का पता किसने दिया? पेरिस की उस शाम को याद कीजिए-ज्यू द पॉम म्यूजियम की छाया में हमें रोज वेलैंड मिली थीं। रोज जर्मन बोलती थीं, पर दिल से फ्रांसीसी थीं। वह गुप्त नोटबुक में लिखतीं कि कौन-सी पेंटिंग किस ट्रेन से कहां भेजी गई। उनके नोट्स में 20,000 से ज्यादा कलाकृतियों का हिसाब था। वेलैंड के नोट्स पढ़कर क्यूरेटर रोरिमर यहां पहुंचे हैं। आप सोच रहे होंगे कि इतनी बड़ी नाजी लूट में लूव्र का म्यूजियम कैसे बच गया?

तो बैठिए टाइम मशीन में, यह किस्सा सुनते हुए हम 2025 में पहुंचते हैं। तो हुआ यूं कि लूव्र के डायरेक्टर जैक्स जूजार्ड ने 1939 में ही भांप लिया था कि नाजी आ रहे हैं। उन्होंने रोज वेलैंड को ज्यू द पॉम म्यूजियम पर तैनात कर दिया। वेलैंड को निर्देश था कि उन्हें जान पर खेल कर लूट ऑफ यूरोप की जासूसी करनी है। इधर जूजार्ड ने 1939 में लूव्र को मरम्मत के बहाने बंद कर दिया। मोनालिसा, वीनस डी मिलो, विंग्ड विक्ट्री को रातोंरात दूर चंबोर्ड के महलों में छिपा दिया गया। नाजी लूव्र आए, तो मिले खाली फ्रेम्स और प्लास्टर की बनी नकल। हिटलर की मौत के बाद रोज और जूजार्ड की मदद से लूट वापस जुटाई गई। लूव्र में अब भी 300 बेनामी पेंटिंग्स दीवार पर लटकी हैं, जिन पर लिखा है-नाजी लूट। टाइम मशीन अब लूव्र के पास लैंड कर रही है। ताजा खबर है कि चोर और संदिग्ध पकड़े गए हैं, मगर गहने नहीं मिले। क्या पता, गहने अब बचे भी हों! लूव्र बदकिस्मत है। यह हिटलर की लूट से बच गया था, मगर हर तरह की तकनीक और सुरक्षा के बीच अदना से चोर रॉयल गहने लूट ले गए। फिर मिलेंगे अगले सफर पर...
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