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विचारः कोलकाता में कुप्रबंधन, आयोजकों-नीति नियंताओं को खुद से सवाल करने की जरूरत

अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Mon, 15 Dec 2025 05:43 AM IST
सार
कोलकाता में मेसी के दौरे के दौरान कुप्रबंधन के लिए भले ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माफी मांग ली हो, लेकिन आयोजकों और नीति नियंताओं को खुद से पूछना चाहिए कि जब इतने बड़े कद का खिलाड़ी आ रहा हो, तो क्या तैयारियों का स्तर भी ऊंचा नहीं होना चाहिए था।
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Mismanagement in Kolkata Lionel messi visit Organisers and policymakers need to question themselves
कोलकाता में लियोनेल मेसी के दौरे पर हुई अराजकता - फोटो : पीटीआई

विस्तार
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फुटबॉल के महानायक लियोनल मेसी की भारत यात्रा का आगाज कोलकाता में हुआ, लेकिन यहां के साल्ट लेक स्टेडियम में एक उत्साहपूर्ण शुरुआत जिस तरह से पहले अफरा-तफरी और फिर अराजकता में बदली, उसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। मेसी को लेकर दीवानगी इससे ही समझी जा सकती है कि तकरीबन 60 हजार लोग सुपरस्टार खिलाड़ी की एक झलक पाने के लिए अलसुबह से स्टेडियम में जमे हुए थे। आखिरकार सुबह के करीब साढ़े ग्यारह बजे जब अर्जेंटीना के विश्वकप विजेता कप्तान मेसी ने मैदान पर कदम रखा, तब भी दर्शक उन्हें नहीं देख पा रहे थे, क्योंकि उन्हें विशिष्ट व्यक्तियों, अधिकारियों व कुछ अन्य ने सेल्फी के लिए घेर रखा था। कुछ ही मिनटों बाद सुरक्षा का हवाला देते हुए मेसी को वहां से निकाल लिया गया।


हजारों रुपये के टिकट लेने के बावजूद जब प्रशंसकों को मेसी की एक स्पष्ट झलक तक नहीं मिली, तो उनके धैर्य को जवाब देना ही था। मेसी की मात्र 22 मिनट की संक्षिप्त उपस्थिति और कुप्रबंधन ने हालात को बेकाबू बना दिया और कुछ ही देर में नाराज दर्शक कुर्सियां उखाड़कर मैदान में उतर आए। यह घटना न केवल खेल आयोजनों की कमियों को उजागर करती है, बल्कि हमारे समाज में वीआईपी संस्कृति और आम जनता की भावनाओं के बीच की खाई को भी रेखांकित करती है।


कोलकाता में ऐसा होना तो और भी दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसे अक्सर देश की फुटबॉल राजधानी कहा जाता है और जहां के लोगों में इस खेल के प्रति कहीं अधिक जुनून पाया जाता हैै। पेले और मेराडोना जैसे महान फुटबॉल खिलाड़ी कोलकाता आ चुके हैं, खुद मेसी भी 2011 में यहां एक मैत्री मैच खेलने के लिए आए थे। कोलकाता खुद में वे सभी यादें समेटे हुए है, लेकिन कहना होगा कि इस बार आयोजकों की लापरवाही ने खेल के प्रशंसकों की भावनाओं का अपमान किया है।

राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कुप्रबंधन के लिए माफी मांगी है और कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की घोषणा भी की है। लेकिन आयोजकों और नीति नियंताओं को खुद से पूछना चाहिए कि जब इतने बड़े कद का खिलाड़ी आ रहा हो, तो क्या तैयारियों का स्तर भी ऊंचा नहीं होना चाहिए था। प्रशंसक ही किसी खेल की आत्मा होते हैं, और जब उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, तो उनके उत्साह को अराजकता में बदलने में देर नहीं लगती। हाल ही में भारत को 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी मिली है और वह 2036 में ओलंपिक की मेजबानी की उम्मीद भी कर रहा है। ऐसे में, कोलकाता में जो हुआ, उससे सबक लिया ही जाना चाहिए। 

 
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