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भारतीय भाषाओं के लिए विश्वविद्यालय, देर आयद दुरुस्त आयद

गिरीश्वर मिश्र Published by: गिरीश्वर मिश्रा Updated Tue, 08 Dec 2020 02:14 AM IST
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यह स्वागत योग्य सूचना है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारतीय भाषाओं के विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में विचार आरंभ किया है। देर आयद दुरुस्त आयद। भारतवर्ष भाषाओं की दृष्टि से एक अत्यंत समृद्ध देश है। यह उनकी आतंरिक जीवन शक्ति और लोक-जीवन में व्यवहार में प्रयोग ही था कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा विविध प्रकार से सतत हानि पहुंचाए जाने के बावजूद वे बची रहीं। पिछली कुछ सदियों में इन भाषाओं को सतत संघर्ष करना पड़ा था। पर स्वतंत्रता संग्राम में लोक संवाद के साथ देश को एक साथ ले चलने में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं ने विशेष भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत में एक लोकतंत्र की व्यवस्था में जनता ही केंद्र में होनी चाहिए, पर अधिकांश जनता के लिए एक विदेशी और दुर्बोध भाषा अंग्रेजी को जबरन लाद दिया गया। शेष बहुसंख्यक गैर अंग्रेजी भाषा-भाषी भारतीयों की प्रतिभा और उद्यमिता को नकारते हुए उन्हें अवसर न देते हुए वंचित रखा जाता रहा। इससे आम जनता की शैक्षिक प्रगति और लोकतांत्रिक भागीदारी भी बुरी तरह बाधित हुई। सरकार और समाज की उदासीनता के चलते अंग्रेजी को सर्वथा हितकारी रामबाण सरीखा मान लिया गया। ज्ञान की वृद्धि, जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा और समतामूलक समाज की स्थापना के लक्ष्यों की दृष्टि से यह स्थिति किसी भी तरह हितकर नहीं कही जा सकती। 


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