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मुद्दा: इस बदरंग कुसंस्कृति से मुक्ति कब? सार्वजनिक स्वच्छता की अनदेखी बीमारियों को बढ़ावा देती है
अमर उजाला ब्यूरो
Published by: सुभाष चंद्र कुशवाहा
Updated Mon, 15 Dec 2025 07:38 AM IST
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सार्वजनिक स्वच्छता
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अमर उजाला
विस्तार
भारत में पान-मसाला, गुटखा, खैनी और तंबाकू चबाना बहुत आम है। खासकर हिंदी प्रदेशों में सड़कों या सार्वजनिक स्थानों को थूककर बदरंग करने की कुसंस्कृति हर कहीं देखी जा सकती है। कार चलाते हुए या बस में सफर करते समय सड़कों पर थूकने की घटनाएं रोज देखने को मिलती हैं। पार्कों, कार्यालयों और स्टेशनों के कोनों को भी हम नहीं बख्शते। सार्वजनिक स्वच्छता की ऐसी अनदेखी बीमारियों को बढ़ाती है। टीबी जैसी बीमारी, जो अपने देश की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित किए हुए है, मुख्यतः इधर-उधर थूकने से ही फैलती है।एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 21.4 फीसदी वयस्क (15 वर्ष से ऊपर) धुआंरहित तंबाकू का उपयोग करते हैं, जिनमें 29.6 फीसदी पुरुष और 12.8 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि करोड़ों लोग नित्य पान-मसाला या गुटखा चबाते होंगे और इसका सीधा असर सार्वजनिक थूक/कुल्ले के रूप में होता होगा। स्वास्थ्य दृष्टिकोण से, धुआंरहित तंबाकू के कारण भारत में हर साल लगभग 13.5 लाख मौतें होती हैं। तंबाकू/एसएलटी के कारण होने वाले रोगों (मुख, गले, मुंह के कैंसर, मुंह-गर्दन की समस्याएं, सांस व हृदय आदि रोग) का सामाजिक व आर्थिक बोझ भारी है। साफ है कि सिर्फ निजी स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, सार्वजनिक स्वच्छता तथा सामाजिक स्वास्थ्य के लिए भी यह समस्या जटिल है।
थूक की लार संबंधित व्यक्ति के हाथों व जूतों से दूसरों तक फैल सकती है; सार्वजनिक स्थानों पर थूक, कुल्ला आदि संक्रमण (जैसे फंगस, बैक्टीरिया, वायरस), खासकर बच्चों या बुजुर्गों के लिए खतरनाक हो सकते हैं। तंबाकू/एसएलटी से होने वाली बीमारियों के इलाज में स्वास्थ्य-व्यय, अस्पतालों पर भार, रोजगार व आर्थिक उत्पादन में गिरावट आदि का भारी असर पड़ता है। साथ ही, सार्वजनिक स्थानों की सफाई व रखरखाव का खर्च, जो नगर निगम, स्थानीय प्रशासन या सामान्य नागरिकों को उठाना पड़ता है, बढ़ जाता है।
भारत में धुआंरहित तंबाकू के उपयोग एवं सार्वजनिक स्थानों पर थूक, कुल्ला आदि पर नियंत्रण हेतु कुछ कानून बने भी हैं, जैसे 'सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रॉडक्ट्स एक्ट 2003' तंबाकू के सार्वजनिक-प्रचार, बेचने और कई प्रतिबंधों को तय करता है। इसके बावजूद, थूकना/कुल्ला करना बेरोक-टोक जारी है। कानून को प्रभावी बनाने के लिए आम जनता को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के साथ-साथ निगरानी व दंड को लागू करने का काम नहीं हुआ है। लखनऊ नगर निगम को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट एंड क्लीनलीनेस रूल्स, 2021 के तहत सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर 250 रुपये का जुर्माना लगाने का अधिकार है, लेकिन इससे पहले जगह-जगह प्रचार-प्रसार की जरूरत है। मीडिया की खबरों के मुताबिक, न तो कोई जागरूकता फैलाई जा रही है और न जुर्माना वसूली हेतु कोई काम हुआ है। इस वर्ष पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सार्वजनिक स्थानों पर पान/गुटखा चबाकर थूकने वालों पर 1000 रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया है, मगर पान-गुटखा बनाने वाली कंपनियों पर कोई नियंत्रण नहीं लगाया जा रहा है। हमें समाज में नागरिक जागरूकता तथा स्वच्छता की आदत बेहतर बनाने के लिए जिम्मेदारी से काम करना होगा। जो लोग पान-मसाला/गुटखा खाते हैं, उन्हें ‘कुल्ला या थूकने के लिए’ सिंगल-यूज ढक्कन वाले डस्टबिन/स्पिटबिन उपलब्ध कराने चाहिए।
सार्वजनिक शौचालयों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ सफाई पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। स्थानीय प्रशासन, नगर निगमों को चाहिए कि वे जागरूकता और जुर्माना—दोनों के लिए सक्रिय हों। सीसीटीवी निगरानी टीम बढ़ाएं। सिर्फ थूकने पर नहीं, तंबाकू/एसएलटी उत्पादों के सेवन, बिक्री, विज्ञापन आदि पर भी कड़े प्रतिबंध हों। साथ ही, तंबाकू छोड़ने के लिए हेल्पलाइन, जागरूकता, स्वास्थ्य-शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाएं। पान-मसाला, गुटखा आदि खाकर सार्वजनिक स्थानों पर थूकना हमारे स्वास्थ्य, स्वच्छता, सामाजिक सभ्यता और नागरिक शिष्टाचार पर एक गंभीर चोट है। हमारे सार्वजनिक पार्क, सड़कों, मंदिरों, ऑफिसों, स्टेशनों आदि की सफाई, सुंदरता और स्वास्थ्य-सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सबकी है। अगर हम नहीं बदलेंगे, जगह-जगह थूकते रहेंगे, तो हमारी सांस्कृतिक धरोहर, स्वच्छता, स्वास्थ्य व मुसाफिरों का अनुभव सब प्रभावित होगा। बेहतर होगा कि हम जागरूक हों, सिविक सेंस दिखाएं और अपनी सार्वजनिक जगहों को स्वच्छ, सुरक्षित और गौरवपूर्ण बनाएं। सरकारों, प्रशासन और नागरिकों—हर स्तर पर सहयोग जरूरी है। तंबाकू/एसएलटी-संबंधित नीतियां, जागरूकता, कड़े जुर्माने और सार्वजनिक सुविधाएं—इनका संयोजन ही इस समस्या का स्थायी समाधान है।