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Uttarakhand: ईको टास्क फोर्स की चार कंपनियां अगले महीने हो सकती हैं खत्म, अभी नहीं मिली विस्तारीकरण की अनुमति
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: रेनू सकलानी
Updated Sun, 12 Feb 2023 04:29 PM IST
सार
सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने बताया कि 127 टीए के कमान अधिकारी कर्नल रोहित श्रीवास्तव ने शनिवार को उनसे मुलाकात की। उन्होंने मांग की कि प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण, पूर्व सैनिकों को रोजगार एवं चीन व नेपाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर चुनौतियों को देखते हुए प्रादेशिक सेना का कार्यकाल एक अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2028 तक विस्तारीकरण किया जाए।
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बैठक
- फोटो : अमर उजाला (फाइल फोटो)
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विस्तार
प्रदेश में ईको टास्क फोर्स (ईटीएफ) की चार कंपनियां अगले महीने खत्म हो सकती हैं। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 से रक्षा मंत्रालय को टास्क फोर्स की प्रतिपूर्ति का भुगतान नहीं किया है। जिससे रक्षा मंत्रालय इन चार कंपनियों में भर्ती पर पहले ही रोक लगा चुका है। अब अगले महीने 31 मार्च को इनकी पूर्व में मिली पांच साल के विस्तारीकरण की अवधि भी समाप्त हो रही है।
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सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि ईको टास्क फोर्स ने प्रदेश में पर्यावरण के लिए बहुत काम किया है। उन्होंने सचिव वन को कंपनियों के विस्तारीकरण के संबंध में आवश्यक कार्यवाही के निर्देश दिए हैं। दरअसल, प्रदेश में पूर्व सैनिकों की ग्रीन सोल्जर्स के नाम से पहचाने जाने वाली ईको टास्क फोर्स की गढ़वाल और कुमाऊं में एक-एक बटालियन और चार कंपनियां हैं।
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पूर्ववर्ती खंडूडी सरकार में गढ़वाल में 127 इन्फैंट्री बटालियन और कुमाऊं मंडल में 130 इन्फैंट्री बटालियन ईटीएफ का गठन किया गया था। प्रदेश सरकार राज्य वित्त पोषित इन कंपनियों में कार्यरत पूर्व सैनिकों के वेतन और प्रोजेक्ट पर आने वाले खर्च का भुगतान नहीं कर पा रही है। जिसका बकाया बढ़कर 132 करोड़ से अधिक हो चुका है।
यही वजह है कि चारों कंपनियां बंदी की कगार पर हैं। जोशी के मुताबिक 127 टीए के कमान अधिकारी कर्नल रोहित श्रीवास्तव ने शनिवार को उनसे मुलाकात की। उन्होंने मांग की कि प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण, पूर्व सैनिकों को रोजगार एवं चीन व नेपाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर चुनौतियों को देखते हुए प्रादेशिक सेना का कार्यकाल एक अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2028 तक विस्तारीकरण किया जाए।
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सामरिक दृष्टि से भी है अहम भूमिका
ईटीएफ में कार्यरत पूर्व सैनिकों की सामरिक दृष्टि से भी अहम भूमिका है। भारत-चीन सीमा से लगे गांवों में वे फलदार पौधे लगाते हैं। एक बटालियन हर साल 800 हेक्टेयर में आठ लाख पेड़ लगाती है।