Uniform Civil Code: इस्लाम में पहले ही है हलाला हराम... उलेमाओं की नजर से ये हैं प्रावधान
Uniform Civil Code: इस्लाम में पहले ही हलाला हराम है। इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस का कहना है कि शर्त के साथ कोई निकाह मान्य ही नहीं है।
विस्तार
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में हलाला जैसी प्रथा पर प्रतिबंध, तीन साल की सजा व एक लाख जुर्माने के प्रावधान पर दून के उलेमा भी मुतमईन (संतुष्ट) हैं। उनका कहना है कि इस्लाम में हलाला हराम है। ऐसी किसी प्रथा की कुरआन या हदीस इजाजत ही नहीं देता है। ऐसे में इस पर रोक हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
यूसीसी में हलाला को इस तरह किया गया प्रतिबंधित
समान नागरिक संहिता में महिला के दोबारा विवाह करने (चाहे वह तलाक लिए हुए उसी पुराने व्यक्ति से विवाह करना हो या किसी दूसरे व्यक्ति से) को लेकर किसी भी तरह की शर्तों को प्रतिबंधित किया गया है। संहिता में माना गया है कि इससे पति की मृत्यु पर होने वाली इद्दत और निकाह टूटने के बाद दोबारा उसी व्यक्ति से निकाल से पहले हलाला यानी अन्य व्यक्ति से निकाह व तलाक का खात्मा होगा। यूसीसी में हलाला का प्रकरण सामने आने पर तीन साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
उलेमाओं की नजर से ये हैं प्रावधान
इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस अहमद का कहना है कि इस्लाम में हलाला हराम है। उनका कहना है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देता है तो ये पत्नी का अधिकार है कि वह दोबारा उससे निकाह करेगी या नहीं। इसमें ऐसी कोई शर्त नहीं है कि उसी पति से दोबारा निकाह से पहले किसी अन्य से कुछ अवधि के लिए निकाह, तलाक जरूरी हो। उनका कहना है कि इस्लाम में ऐसी किसी भी शर्त के साथ निकाह का कोई प्रावधान नहीं है। इसे इस्लाम में हराम (जो अवैध हो, जिसे उचित न माना गया और जिसके करने पर रोक हो) करार दिया गया है। वहीं, देहरादून के शहर मुफ्ती सलीम अहमद का कहना है कि कुरआन या हदीस में हलाला जैसी किसी प्रथा, परंपरा का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में इस पर प्रतिबंध, सजा, जुर्माने का फैसला बेहतर ही माना जा सकता है।
संपत्ति में पहले से ही मिलता है तीसरा हिस्सा
शहर मुफ्ती सलीम अहमद का कहना है कि इस्लाम में पहले से ही यह प्रावधान है कि बेटी को संपत्ति का तीसरा हिस्सा मिलता है। यानी एक बेटा, एक बेटी होने पर उस संपत्ति के तीन हिस्से होंगे। दो हिस्से बेटे को मिलेंगे और एक हिस्सा बेटी को। बेटे के दो हिस्से इसलिए रखे गए थे क्योंकि उसके ऊपर माता-पिता, पत्नी, बच्चों की जिम्मेदारी है। उनका कहना है कि इसके बावजूद अगर बेटा-बेटी के बीच संपत्ति दो हिस्सों में बांटने का प्रावधान यूसीसी में किया गया है तो इसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है।
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