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किसान आंदोलन के 300 दिन: सर्दी, बरसात और गर्मी तीनों नहीं डिगा सकी हौसला, पढ़ें- वो प्रमुख पड़ाव जिसने इसे किया और मजबूत

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: पूजा त्रिपाठी Updated Thu, 23 Sep 2021 07:09 PM IST
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सार

300 दिन यानी लगभग 10 महीने से यह आंदोलन लगातार चल रहा है। इस दौरान कई बार ऐसा लगा कि अब जल्द ही यह खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हर बार इसे नई शक्ति मिली और यह फिर उठ खड़ा हुआ।

farmers protest 300 days read all important turning points of agitation that give it more strength
farmers protest - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को दिल्ली पुलिस की तरफ से 26 नवंबर 2020 को दिल्ली में जाने से रोकने के बाद दिल्ली की सीमा पर डटे आज 300 दिन हो चुके हैं। केंद्र सरकार से वार्ता सफल न होने के चलते लाखों किसान धूप, बारिश, ठंड व विषम परिस्थितियों में सड़कों पर हैं। लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी है। किसान दिल्ली के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की अगुवाई में चल रहे आंदोलन में अब तक 605 किसानों की मौत हो चुकी है। यह दावा खुद संयुक्त किसान मोर्चा ने किया है। 
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संयुक्त किसान मोर्चा ने एक ब्लॉग में उन मृत किसानों की लिस्ट भी जारी की है। यहां क्लिक कर आप उस ब्लॉग  पर जाकर उन किसानों की लिस्ट देख सकते हैं। मृत किसानों की यह लिस्ट बताती है कि कितने किसान 24 नवंबर से इस आंदोलन में शहीद हुए।
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300 दिन यानी लगभग 10 महीने से यह आंदोलन लगातार चल रहा है। इस दौरान कई बार ऐसा लगा कि अब जल्द ही यह खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हर बार इसे नई शक्ति मिली और यह फिर उठ खड़ा हुआ। इस दौरान इस आंदोलन के कई टर्निंग प्वाइंट रहे जिससे आप आसानी से इस आंदोलन के महत्व को समझ सकते हैं।

पढ़ें कौन से रहे वो प्रमुख पड़ाव जिसने दिया आंदोलन को बल...

- 24 से 26 नवंबर के बीच पुलिस द्वारा दिल्ली जाने से रोके जाने पर लाखों किसानों ने सिंघु, टीकरी, गाजीपुर बॉर्डर और चिल्ला बॉर्डर पर बैठकर ही अपना आंदोलन आगे बढ़ाया।
- इस बीच जो सरकार पहले किसानों से आंदोलन खत्म होने पर बात करने को कह रही थी वह उनसे वार्ता करने लगी। हालांकि 10 से ज्यादा दौर की किसानों और केंद्र सरकार की बैठक से कुछ बड़ा हासिल नहीं हो सका।
- 26 जनवरी 2021 को किसानों ने किसान ट्रैक्टर परेड निकाली जो पहले दिल्ली के बाहर-बाहर रहने वाली थी लेकिन प्रदर्शनकारियों का एक गुट दिल्ली के अंदर घुस गया। इसके बाद यहां काफी हिंसा हुई और लाल किले तक में भी कुछ उपद्रवी घुस गए और तोड़फोड़ के साथ ही धार्मिक झंडा भी फहरा दिया।
- 26 जनवरी की घटना के बाद से ही किसान आंदोलन के प्रति लोगों का रवैया कुछ बदल गया। पुलिस ने दिल्ली के सभी बॉर्डर खाली कराने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही।
- 26 जनवरी के बाद एक बार लगा था कि शायद अब यह आंदोलन खत्म हो जाएगा लेकिन 29 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने इस आंदोलन को संजीवनी दी और दोबारा से सभी सीमाओं पर प्रदर्शनकारी किसानों की भीड़ बढ़ने लगी।
- इसके बाद किसानों ने गांव-गांव में किसान पंचायत लगानी शुरू की और राकेश टिकैत इसके नेता बन गए। हालांकि 26 जनवरी के बाद ही दिल्ली की सभी सीमाओं पर पुलिस ने गड्ढे खोदने के साथ ही लोहे की कीलें भी लगा दीं ताकि दोबारा किसान ट्रैक्टर आदि लेकर दिल्ली में घुसने की कोशिश न कर सकें।
- इसके बाद बड़ा बदलाव आया संसद के मानसून सत्र के दौरान जब 22 जुलाई से 9 अगस्त के बीच जंतर-मंतर पर किसानों की संसद चली। उनका मकसद था कि मानसून सत्र में आ रहे सांसद उनकी आवाज बनें।
- सिंघु बॉर्डर पर 26-27 को अखिल भारतीय किसान-मजदूर सम्मेलन भी आयोजित किया गया, जिसमें पूरे देश से सिर्फ किसान ही नहीं ट्रेड यूनियन, छात्र नेता आदि भी शामिल हुए। यहीं तय हुआ कि आगे आंदोलन कैसा रहेगा।
- करनाल में 28 अगस्त हरियाणा सीएम का विरोध कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज हुआ जिसने एक बार फिर प्रदेश सरकार को बैकफुट पर ला दिया। लाठीचार्ज में दर्जनों किसान घायल हुए और एक की मौत हो गई। चार दिन तक किसानों ने करनाल में लघु सचिवालय घेर कर रखा।
- सितंबर को मुजफ्फरनगर में अब तक की सबसे बड़ी महापंचायत हुई। संयुक्त किसान मोर्च दावा करता है कि इसमें 10 लाख से ज्यादा किसान आए थे। 
- 27 सितंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने कृषि कानूनों के खिलाफ भारत बंद करने का ऐलान किया है। इसे लेकर देशभर में बैठक व पंचायतों का दौर जारी है।
 
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