Toxic Air: देश की पांच से छह करोड़ आबादी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर, पड़ रहा है मानसिक स्वास्थ्य पर असर
दिसंबर के मध्य दिल्ली-एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ में वायु प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि बहुआयामी स्वास्थ्य, मानसिक और सामाजिक संकट का रूप ले चुका है। एक्यूआई लगातार 400 से ऊपर बना हुआ है। हवा में धूल, धुआं और धुंध के साथ कई अत्यंत खतरनाक गैसों का घातक मिश्रण मौजूद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), यूएन एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) और हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की चेतावनी है कि यदि ऐसे हालात लंबे समय तक बने रहते हैं, तो इसका असर केवल फेफड़ों और दिल तक सीमित नहीं रहता बल्कि इसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य, कार्य क्षमता, सामाजिक व्यवहार और आर्थिक उत्पादकता तक को गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में उत्तर भारत की हवा में केवल पार्टिकुलेट मैटर ही नहीं, बल्कि कई जहरीली गैसें एक साथ पाई जा रही हैं। डब्ल्यूएचओ और यूएनईपी के अनुसार इनमें प्रमुख रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, जमीनी स्तर की ओजोन, अमोनिया और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक शामिल हैं।हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (एचईआई) के वैज्ञानिक आकलन बताते हैं कि यह गैसीय मिश्रण फेफड़ों की गहराई तक जाकर सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे हृदयाघात और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है।
दिल्ली-एनसीआर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ को मिलाकर लगभग 55,000 से 60,000 वर्ग किमी का घना शहरी औद्योगिक क्षेत्र इस समय गंभीर प्रदूषण की चपेट में है।स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट के अनुमानों के अनुसार इस क्षेत्र में रहने वाली 5-6 करोड़ आबादी प्रतिदिन जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है। विशेषज्ञ इसे दुनिया के सबसे बड़े सस्टेंड एयर पॉल्यूशन हॉटस्पॉट्स में से एक मानते हैं।
डब्ल्यूएचओ मानकों से कितने गुना ज्यादा प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पीएम 2.5 का सुरक्षित स्तर 24 घंटे के औसत में लगभग 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। मौजूदा हालात में दिल्ली और आसपास के इलाकों में यह स्तर कई बार 300 से 450 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच रहा है, यानी डब्ल्यूएचओ मानकों से 25 से 30 गुना अधिक। देशभर के 251 शहरों में केवल 3.6 फीसदी शहरों में हवा साफ है।22.3 फीसदी शहरों में हवा संतोषजनक और 74.1 फीसदी शहरों में हवा चिंताजनक से गंभीर श्रेणी में बनी हुई है। प्रदूषण के महीन कण पूरे वातावरण में हावी हैं।डेटा बताता है कि उत्तर भारत के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में हवा में पीएम 2.5 प्रमुख प्रदूषक बना हुआ है।नोएडा में एक ही दिन में एक्यूआई में 69 अंकों की बढ़ोतरी और दिल्ली में 82 अंकों का उछाल दर्ज किया गया जो न सिर्फ आश्चर्यजनक है बल्कि अचानक बिगड़ती स्थिति का स्पष्ट संकेत है।डब्ल्यूएचओ स्पष्ट करता है कि इस स्तर का प्रदूषण लंबे समय तक बना रहना जीवन प्रत्याशा घटने और समयपूर्व मृत्यु के जोखिम को सीधे बढ़ाता है।
जीआरएपी और सीमित राहत
दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान का चौथा चरण लागू है। निर्माण गतिविधियों पर रोक, औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण और वाहनों पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन यूएनईपी का आकलन है कि जब तक संरचनात्मक स्रोतों पर स्थायी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसे आपात कदम केवल अल्पकालिक राहत ही दे पाएंगे।
आईक्यूएयर और स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत अकेला नहीं है। दक्षिण एशिया के कई बड़े शहर भी इसी तरह के भीषण प्रदूषण से जूझ रहे हैं।इनमें लाहौर, कराची, ढाका, काठमांडू और काबुल शामिल हैं, जहां सर्दियों के महीनों में एक्यूआई अक्सर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ इसे क्षेत्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट मानते हैं, जिसके समाधान के लिए देशों के बीच सहयोग आवश्यक बताया गया है।
मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर
हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन और डब्ल्यूएचओ के संयुक्त अध्ययनों में सामने आया है कि लंबे समय तक अत्यधिक प्रदूषण के संपर्क में रहने से डिप्रेशन, एंग्जायटी, चिड़चिड़ापन, नींद संबंधी विकार और कॉग्निटिव फंक्शन में गिरावट देखी जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार लगातार स्मॉग और कम दृश्यता लोगों में निराशा और मानसिक थकान बढ़ाती है, जिससे कार्य क्षमता और उत्पादकता में उल्लेखनीय गिरावट आती है। हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के अनुसार लगातार धुंध और गंदी हवा में रहना मस्तिष्क में सूजन की प्रक्रिया को तेज करता है, जिससे मूड डिसऑर्डर और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट (एचईआई) की रिपोर्ट कहती है,जब प्रदूषण का स्तर लंबे समय तक उच्च बना रहता है तो शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ने लगती है।