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Toxic Air: ट्रैफिक-डीजल का मिलाजुला जहर दिल्ली की बयार को बना रहा बीमार, प्रदूषण कम करने के सारे उपाय बेकार

नितिन राजपूत, नई दिल्ली Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Mon, 22 Dec 2025 02:06 AM IST
सार

पर्यावरण विशेषज्ञों का भी कहना है कि सिर्फ उद्योग या खुले धुएं को ही प्रदूषण का कारण मानना गलत है। दिल्ली की ट्रैफिक और परिवहन व्यवस्था ने भी हवा को सांस लेने के लिए खतरनाक बना दिया है।

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The combined effects of traffic and diesel fumes are making Delhi's air unhealthy.
Demo - फोटो : PTI
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विस्तार
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राजधानी की फिजा हर साल सर्दियों में दमघोंटू और बीमार हो जाती है। इसकी बड़ी वजह सार्वजनिक परिवहन के अपर्याप्त विकल्प, बढ़ती निजी वाहनों की संख्या और भारी वाहनों और पुराने डीजल इंजनों से निकलने वाला धुआं भी है। वाहनों की बेहतरतीब संख्या ने राजधानी की हवा को दमघोंटू बना दिया है। टेरी, सीएसई समेत अन्य संगठन की कई रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि दिल्ली की बयार को प्रदूषित करने का मुख्य कारक वाहनों से होने वाला प्रदूषण है।

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पर्यावरण विशेषज्ञों का भी कहना है कि सिर्फ उद्योग या खुले धुएं को ही प्रदूषण का कारण मानना गलत है। दिल्ली की ट्रैफिक और परिवहन व्यवस्था ने भी हवा को सांस लेने के लिए खतरनाक बना दिया है। अगर सही नीतियां और तकनीकी सुधार समय पर लागू नहीं किए गए तो शहरवासियों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
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उन्होंने हिदायत दी है कि सख्त परिवहन नीति, वाहन अपग्रेड और ई-वाहनों को बढ़ावा देना जरूरी है। इसी कड़ी में रविवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता प्रणाली के अनुसार, वाहन से होने वाला प्रदूषण 18.217 फीसदी रहा। पेरिफेरल उद्योग से 8.47, आवासीय इलाकों से 4.64, निर्माण गतिविधियों से 2.28, कूड़ा जलाने से 1.67, रोड से उड़ने वाली धूल से 1.23 और पराली की 0.18 फीसदी भागीदारी रही।

चीन से चांदनी चौक...
चीन से लेकर चांदनी चौक तक यही स्थिति है लेकिन, पड़ोसी देश ने अपनी अच्छी नीतियों और मजबूत इच्छा शक्ति की बदौलत प्रदूषण पर काबू पा लिया है। बीजिंग में वायु प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत 1998 में हुई और इसे तीन चरणों में लागू किया गया। पहले दो चरणों में कोयले की खपत, औद्योगिक और वाहन उत्सर्जन जैसे मुख्य प्रदूषकों पर ध्यान दिया गया, जबकि 2013-2017 के दौरान खास तौर पर पीएम2.5 को नियंत्रित करने पर फोकस किया गया।

प्रदूषण की निगरानी के लिए बीजिंग में लगभग 1,000 पीएम2.5 सेंसर लगाए गए, जिनसे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) की गणना की जाती है। इधर, दिल्ली में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए करीब 40 पीएम2.5 सेंसर लगाए गए हैं और पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने 1998 से सड़क की धूल, वाहन प्रदूषण और डीजल जनरेटर पर नियंत्रण के आदेश जारी किए हैं। सर्दियों के लिए विशेष निर्देश भी दिए गए। वर्ष 2000 से ग्रेप को तर्कसंगत बनाया गया लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

वायु प्रदूषण कम करने के लिए उठाए गए कदम...
कोयले से होने वाले प्रदूषण : कोयले से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन को अक्तूबर 2018 में स्थायी रूप से बंद कर दिया गया, हालांकि इसके प्रभाव पर कोई विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ। राजधानी की सभी 1,959 पंजीकृत औद्योगिक इकाइयां अब 100 प्रतिशत पीएनजी पर चल रही हैं और एनसीआर के 240 औद्योगिक क्षेत्रों में से 224 में पीएनजी ढांचा उपलब्ध है।

वाहनों से होने वाले प्रदूषण: वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पुरानी गाड़ियों पर रोक लगाई गई, हालांकि इस पर कानूनी विवाद जारी है और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बीएस-IV वाहनों पर लगी पाबंदी हटाई है। दिल्ली सरकार की ईवी पॉलिसी 2020 के तहत ई-साइकिल, ई-रिक्शा, दोपहिया और हल्के व्यावसायिक इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी दी जा रही है, जबकि नई ईवी पॉलिसी 2.0 का प्रस्ताव भी तैयार है।

निजी कार: सीएनजी वाहनों को कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं दिया जाता, लेकिन ग्रेप के दौरान इन्हें प्रतिबंधों से छूट मिलती है। निजी कारों की खरीद पर फिलहाल कोई रोक नहीं है और ऑड-ईवन योजना को केवल आपातकालीन उपाय के रूप में लागू किया गया था।

स्रोत: यूएन एनवायरनमेंट की 2019 की रिपोर्ट, सीपीसबी, टेरी, आईआईटी कानपुर की दिल्ली के लिए सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी, दिल्ली सरकार की ईवी पॉलिसी 2020, सीएक्यूएम का ग्रेप

सख्त नियम, लेकिन जमीनी स्तर पर पालन ठीक से नहीं
दिल्ली–एनसीआर को एक कॉमन एयरशेड माना जाता है, जिसमें दिल्ली के साथ हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुल 24 जिलों को मिलाकर 25 घटक क्षेत्र शामिल हैं। यह पूरा क्षेत्र लगभग 55,083 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस बड़े इलाके में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पुराने वाहनों पर रोक और निर्माण व विध्वंस (कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन) गतिविधियों पर सख्त नियम बनाए गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका पालन ठीक से नहीं हो पा रहा है। हाल ही में ग्रेप तीन और चार को तेजी से लागू किए जाने के बावजूद कई जरूरी कदम प्रभावी ढंग से नहीं उठाए गए। उदाहरण के तौर पर, राज्य सरकारों को वर्क फ्रॉम होम जैसे प्रतिबंध लागू कराने थे और निर्माण गतिविधियों पर सख्ती से कार्रवाई सुनिश्चित करनी थी, लेकिन ऐसा पूरी तरह नहीं हो सका।

बेहद खराब श्रेणी में हवा बरकरार

राजधानी में स्थानीय कारकों के चलते प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में हवा की गति धीमी होने के चलते लगातार छठे दिन भी हवा बेहद खराब श्रेणी में बरकरार है। सुबह की शुरुआत धुंध और कोहरे की मोटी परत से हुई। पूरे दिन स्मॉग की घनी चादर दिखाई दी जिसके चलते कई इलाकों में दृश्यता भी बेहद कम रही। रविवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 377 दर्ज किया गया। यह हवा की बेहद खराब श्रेणी है। इसमें शनिवार की तुलना में 21 सूचकांक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

सीपीसीबी के अनुसार, रविवार को हवा पूर्व दिशा से 10 किलोमीटर प्रतिघंटे के गति से चली। वहीं, अनुमानित अधिकतम मिश्रण गहराई 700 मीटर रही। इसके अलावा, वेंटिलेशन इंडेक्स 500 मीटर प्रति वर्ग सेकंड रहा। तीन बजे हवा में पीएम10 की मात्रा 295.7 और पीएम2.5 की मात्रा 180.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई। दिल्ली-एनसीआर में राजधानी के बाद गाजियाबाद की हवा सबसे अधिक प्रदूषित रही। यहां एक्यूआई 364 दर्ज किया गया, यह हवा की बेहद खराब श्रेणी है।

वहीं, गुरुग्राम में 328, नोएडा में 327 और ग्रेटर नोएडा में 329 एक्यूआई दर्ज किया गया। फरीदाबाद की हवा 235 एक्यूआई के साथ सबसे साफ रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का पूर्वानुमान है कि सोमवार तक हवा बेहद खराब श्रेणी में बरकरार रहेगी। इसके चलते सांस के मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। साथ ही, लोगों को आंखों में जलन, खांसी, खुजली, सिर दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, शनिवार को कई इलाकों में गंभीर और बेहद खराब श्रेणी में हवा दर्ज की गई।

इन इलाकों में इतना रहा एक्यूआई

  • बवाना-422
  • वजीरपुर-420
  • आनंद विहार-418
  • चांदनी चौक-415
  • नरेला-412
  • डीटीयू-411
  • जहांगीरपुरी-409
  • रोहिणी-407
  • नेहरू नगर-404
  • ओखला फेज-2-402
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