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Air Silent Killer: कोविड महामारी के दौरान जीवनदायी थी दिल्ली की हवा, उससे पहले और बाद में जिंदगी पर भारी
सिमरन, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Sun, 14 Dec 2025 04:20 AM IST
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दिल्ली में स्प्रिंक्लिंग और वॉशिंग से प्रदूषण कम करने की कोशिशें...
- फोटो : अमर उजाला
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राजधानी में वायु प्रदूषण साइलेंट किलर बन चुका है, जो हर साल सैकड़ो लोगों की जान ले रहा है और असमय मौतों के लिए जिम्मेदार भी। दिल्ली को लेकर की गई नेचर पोर्टफोलियो के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि राजधानी की हवा कई साल से लगातार लोगों की सेहत पर गंभीर असर डाल रही है। यह अध्ययन 2019 से 2023 के बीच दिल्ली में हवा में मौजूद जहरीले कणों पीएम10 और पीएम2.5 पर आधारित है। ये बेहद बारीक कण होते हैं, जो सांस के साथ सीधे फेफड़ों में चले जाते हैं और कई बीमारियों की वजह बनते हैं।
शोध में यह भी सामने आया कि दिन के अलग-अलग समय में प्रदूषण का असर अलग होता है। खासतौर पर शाम के समय जब लोग ऑफिस से घर लौटते हैं, तब शरीर में जाने वाले प्रदूषित कणों की मात्रा ज्यादा होती है। स्टडी के अनुसार, दीपावली जैसे त्योहारों और कुछ खास मौकों पर प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाता है, जबकि कोविड़-19 लॉकडाउन के दौरान हवा की गुणवत्ता में कुछ सुधार देखा गया था।
रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 20 लाख (2 मिलियन) लोगों की असमय मौत हो रही है। यह मौतें मुख्य रूप से पीएम2.5 की सांद्रता डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित सीमा से ज्यादा होने के कारण हो रही हैं। दिल्ली, जो दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में शुमार है, इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां 2015 से 2019 के बीच ही पीएम2.5 से जुड़ी 56,876 असमय मौतें दर्ज की गईं।
56.9% बढ़ा प्रदूषण
दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा का असर सांस की बीमारी से जूझने वाले मरीजों पर दिखने लगा है। सबसे ज्यादा परेशानी उन मरीजों को हो रही है, जिनका अस्थमा ठीक हो गया था। प्रदूषण के बढ़ने से उनकी समस्याएं फिर से बढ़ गई हैं। खांसी, छाती में जकड़न, आंखों में जलन जैसे लक्षणों को लेकर भी मरीज पहुंच रहे हैं। अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या 20-33 फीसदी तक बढ़ गई है।
7,000 एकड़ में धान की खेती, फिर भी दिल्ली में एक जगह भी नहीं जली पराली : सीएम
दिल्ली में 2025 में पराली जलाने की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई। जबकि राजधानी में करीब 7,000 एकड़ जमीन पर धान की खेती की गई थी। यह कहना है मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का। उन्होंने ने कहा कि पराली जलाने की शून्य घटनाएं दिल्ली सरकार की प्रदूषण नियंत्रण नीति की बड़ी उपलब्धि है। यह सफलता विकास विभाग की कृषि इकाई और पर्यावरण विभाग के संयुक्त प्रयासों, लगातार निगरानी और किसानों के सहयोग से संभव हुआ।
सख्ती से लागू किया विंटर एक्शन प्लान
मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्दियों में दिल्ली में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती है। पराली जलाना इसका अहम कारण माना जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के दिशा-निर्देशों के तहत विंटर एक्शन प्लान को सख्ती से लागू किया गया। इसके तहत पराली और फसल अवशेष जलाने पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई गई।
7,000 एकड़ क्षेत्र में धान की खेती हुई
सीएम ने कहा कि 2025 में दिल्ली में करीब 7,000 एकड़ क्षेत्र में धान की खेती हुई थी। इसके बावजूद पूरे एनसीटी दिल्ली में पराली जलाने की कोई घटना सामने नहीं आई। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दिखाता है कि सही नीति, मजबूत अमल और किसानों की भागीदारी से प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
बायो डीकम्पोजर से भी मिली मदद
पराली प्रबंधन के लिए पूसा बायो डीकम्पोजर का खेतों में छिड़काव कराया गया। यह सुविधा किसानों को मुफ्त दी गई। यह तकनीक पराली को खेत में ही सड़ा देती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है।
ग्रेप चार में ऐसा करने से बचें
वायु प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने एक अहम बैठक में एनसीआर के सभी राज्यों और दिल्ली सरकार को नई दिशा-निर्देश दिए। यह बैठक सब-कमेटी ऑन सेफगार्डिंग एंड एनफोर्समेंट की 23वीं बैठक थी, जिसमें सभी सेक्टर-विशेष प्रवर्तन कार्रवाईयों की समीक्षा की गई।
बैठक में दिल्ली के लिए मुख्य मुद्दों में ट्रैफिक जाम, सड़क की धूल और नगर निगम ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) का सही निपटान शामिल थे। आयोग ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि हॉटस्पॉट वाले इलाकों में मासिक बैठकें आयोजित की जाएं, सड़क की धूल को वैक्यूम मशीनों से हटाया जाए और एमसीडी व एनडीएमसी के माध्यम से कचरे का सही ढंग से संग्रह और निपटान सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही, एमएसडब्ल्यू और बायोमास जलाने पर रात में गश्त बढ़ाई जाए और फ्यूल स्टेशनों पर एएनपीआर कैमरों से निगरानी तेज की जाए।
हरियाणा के एनसीआर जिलों के लिए आयोग ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण में प्रदर्शन पर्याप्त नहीं था। हरियाणा को निर्देश दिए गए कि विभिन्न विभागों और एजेंसियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। गुप्त और आकस्मिक निरीक्षण टीम बनायी जाए, ट्रैफिक कम करने पर काम किया जाए और फ्यूल स्टेशनों पर एएनपीआर कैमरों से प्रवर्तन मजबूत किया जाए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एनसीआर जिलों ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वाहन क्षेत्रों में सुधार के लिए केंद्रित कार्रवाई के लिए समय-सीमा तय की गई। दोनों राज्यों को 31 दिसंबर 2025 तक वाहन एग्रीगेटर्स, डिलीवरी सर्विस प्रोवाइडर्स और ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिए वेब पोर्टल विकसित करना और निगरानी नीति अधिसूचित करना अनिवार्य है। लापरवाही पर अधिकारियों के खिलाफ सीएक्यूएम अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।
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शोध में यह भी सामने आया कि दिन के अलग-अलग समय में प्रदूषण का असर अलग होता है। खासतौर पर शाम के समय जब लोग ऑफिस से घर लौटते हैं, तब शरीर में जाने वाले प्रदूषित कणों की मात्रा ज्यादा होती है। स्टडी के अनुसार, दीपावली जैसे त्योहारों और कुछ खास मौकों पर प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाता है, जबकि कोविड़-19 लॉकडाउन के दौरान हवा की गुणवत्ता में कुछ सुधार देखा गया था।
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रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 20 लाख (2 मिलियन) लोगों की असमय मौत हो रही है। यह मौतें मुख्य रूप से पीएम2.5 की सांद्रता डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित सीमा से ज्यादा होने के कारण हो रही हैं। दिल्ली, जो दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में शुमार है, इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां 2015 से 2019 के बीच ही पीएम2.5 से जुड़ी 56,876 असमय मौतें दर्ज की गईं।
56.9% बढ़ा प्रदूषण
- 1998 से 2023 तक दिल्ली में प्रदूषण 56.9 फीसदी बढ़ा है, लेकिन नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) जैसे प्रयासों से कुछ जगहों पर कमी आई है
- रिपोर्ट में वाहन नियंत्रण, पराली जलाना रोकना और फैक्ट्रियां साफ करना जैसे सख्त कदम उठाए जाने को कहा है, जिससे लाखों लोगों की उम्र बढ़ सकती है
दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा का असर सांस की बीमारी से जूझने वाले मरीजों पर दिखने लगा है। सबसे ज्यादा परेशानी उन मरीजों को हो रही है, जिनका अस्थमा ठीक हो गया था। प्रदूषण के बढ़ने से उनकी समस्याएं फिर से बढ़ गई हैं। खांसी, छाती में जकड़न, आंखों में जलन जैसे लक्षणों को लेकर भी मरीज पहुंच रहे हैं। अस्पतालों की ओपीडी में मरीजों की संख्या 20-33 फीसदी तक बढ़ गई है।
7,000 एकड़ में धान की खेती, फिर भी दिल्ली में एक जगह भी नहीं जली पराली : सीएम
दिल्ली में 2025 में पराली जलाने की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई। जबकि राजधानी में करीब 7,000 एकड़ जमीन पर धान की खेती की गई थी। यह कहना है मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का। उन्होंने ने कहा कि पराली जलाने की शून्य घटनाएं दिल्ली सरकार की प्रदूषण नियंत्रण नीति की बड़ी उपलब्धि है। यह सफलता विकास विभाग की कृषि इकाई और पर्यावरण विभाग के संयुक्त प्रयासों, लगातार निगरानी और किसानों के सहयोग से संभव हुआ।
सख्ती से लागू किया विंटर एक्शन प्लान
मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्दियों में दिल्ली में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती है। पराली जलाना इसका अहम कारण माना जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के दिशा-निर्देशों के तहत विंटर एक्शन प्लान को सख्ती से लागू किया गया। इसके तहत पराली और फसल अवशेष जलाने पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई गई।
7,000 एकड़ क्षेत्र में धान की खेती हुई
सीएम ने कहा कि 2025 में दिल्ली में करीब 7,000 एकड़ क्षेत्र में धान की खेती हुई थी। इसके बावजूद पूरे एनसीटी दिल्ली में पराली जलाने की कोई घटना सामने नहीं आई। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दिखाता है कि सही नीति, मजबूत अमल और किसानों की भागीदारी से प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
बायो डीकम्पोजर से भी मिली मदद
पराली प्रबंधन के लिए पूसा बायो डीकम्पोजर का खेतों में छिड़काव कराया गया। यह सुविधा किसानों को मुफ्त दी गई। यह तकनीक पराली को खेत में ही सड़ा देती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है।
ग्रेप चार में ऐसा करने से बचें
- ग्रेप 4 के प्रतिबंधों के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग, सड़क, फ्लाईओवर, ओवर ब्रिज, बिजली वितरण से संबंधित परियोजनाओं और आवश्यक सेवाओं से जुड़ी परियोजनाओं को छोड़कर, सभी तरह के निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक रहती है
- दिल्ली में ट्रकों के प्रवेश पर रोक रहेगी। सिर्फ जरूरी चीजें लेकर आने वाले ट्रकों, सीएनजी और इलेक्ट्रिक ट्रकों, और बीएस-VI इंजन वाले ट्रकों को छूट रहेगी
- दिल्ली के बाहर रजिस्टर्ड गैर-आवश्यक हल्के वाणिज्यिक गाड़ियों के प्रवेश पर प्रतिबंध रहेगा। दिल्ली में पंजीकृत बीएस-IV या उससे पुराने डीजल के भारीमालवाहक वाहन पर रोक
- छठी से नौवीं और 11वीं की पढ़ाई ऑनलाइन या हाइब्रिड मोड में की जा सकती है। सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों को 50 प्रतिशत क्षमता के साथ वर्क फ्रॉम होम लागू करने का आदेश दिया जा सकता है
वायु प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने एक अहम बैठक में एनसीआर के सभी राज्यों और दिल्ली सरकार को नई दिशा-निर्देश दिए। यह बैठक सब-कमेटी ऑन सेफगार्डिंग एंड एनफोर्समेंट की 23वीं बैठक थी, जिसमें सभी सेक्टर-विशेष प्रवर्तन कार्रवाईयों की समीक्षा की गई।
बैठक में दिल्ली के लिए मुख्य मुद्दों में ट्रैफिक जाम, सड़क की धूल और नगर निगम ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) का सही निपटान शामिल थे। आयोग ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि हॉटस्पॉट वाले इलाकों में मासिक बैठकें आयोजित की जाएं, सड़क की धूल को वैक्यूम मशीनों से हटाया जाए और एमसीडी व एनडीएमसी के माध्यम से कचरे का सही ढंग से संग्रह और निपटान सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही, एमएसडब्ल्यू और बायोमास जलाने पर रात में गश्त बढ़ाई जाए और फ्यूल स्टेशनों पर एएनपीआर कैमरों से निगरानी तेज की जाए।
हरियाणा के एनसीआर जिलों के लिए आयोग ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण में प्रदर्शन पर्याप्त नहीं था। हरियाणा को निर्देश दिए गए कि विभिन्न विभागों और एजेंसियों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। गुप्त और आकस्मिक निरीक्षण टीम बनायी जाए, ट्रैफिक कम करने पर काम किया जाए और फ्यूल स्टेशनों पर एएनपीआर कैमरों से प्रवर्तन मजबूत किया जाए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एनसीआर जिलों ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वाहन क्षेत्रों में सुधार के लिए केंद्रित कार्रवाई के लिए समय-सीमा तय की गई। दोनों राज्यों को 31 दिसंबर 2025 तक वाहन एग्रीगेटर्स, डिलीवरी सर्विस प्रोवाइडर्स और ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिए वेब पोर्टल विकसित करना और निगरानी नीति अधिसूचित करना अनिवार्य है। लापरवाही पर अधिकारियों के खिलाफ सीएक्यूएम अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।