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Lord Macaulay: कौन थे लॉर्ड मैकाले? 190 साल पहले आए भारत, देश की शिक्षा प्रणाली तैयार करने में थी अहम भूमिका

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: आकाश कुमार Updated Tue, 25 Nov 2025 04:17 PM IST
सार

Lord Macaulay: लॉर्ड मैकाले 1834 में भारत आए और 1835 में अंग्रेजी आधारित शिक्षा नीति लागू करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी सोच थी कि भारतीयों को आधुनिक ज्ञान से जोड़ने के लिए अंग्रेजी माध्यम जरूरी है। उनकी नीति ने शिक्षा व्यवस्था की दिशा बदल दी।
 

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Who Was Lord Macaulay? The British Figure Who Shaped India’s Education System 190 Years Ago
1834 में भारत की सुप्रीम काउंसिल में नियुक्त हुए थे मैकाले - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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Lord Macaulay: पीएम मोदी ने आज राम मंदिर ध्वजारोहण समारोह में अपने भाषण के दौरान मैकाले की शिक्षा नीति पर प्रहार करते हुए इसे गुलामी की मानसिकता की जड़ बताया। 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की शिक्षा प्रणाली को नया रूप देने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में लॉर्ड थॉमस बैबिंगटन मैकाले का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। मैकाले 1834 में भारत पहुंचे थे, यानी आज से करीब 190 वर्ष पहले।

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आइए मैकाले के बारे में और उनके कामों के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानें...

1834 में भारत की सुप्रीम काउंसिल में नियुक्त हुए

मैकाले का पूरा नाम लॉर्ड थॉमस बैबिंगटन मैकाले (Thomas Babington Macaulay) है। वह ब्रिटिश इतिहासकार, राजनेता और निबंधकार थे। उनका जन्म 25 अक्तूबर 1800 को इंग्लैंड में हुआ था। वे ब्रिटिश संसद के सदस्य रहे थे और बाद में भारत की सुप्रीम काउंसिल में नियुक्त हुए। और 1834 में भारत के गवर्नर जनरल की काउंसिल के सदस्य के रूप में भारत आए। भारत में उनका कार्यकाल 1834 से 1838 तक रहा। 

मैकाले को शिक्षा प्रणाली और भारतीय दंड संहिता (IPC) के निर्माण में प्रमुख भूमिका के लिए जाना जाता है। 1835 में उन्होंने "मिनट ऑन इंडियन एजुकेशन" नामक प्रसिद्ध दस्तावेज तैयार किया, जिसने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को अंग्रेजी केंद्रित बना दिया।


 

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1835 में लागू हुई मैकाले की शिक्षा नीति

मैकाले का मानना था कि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारतीयों को पश्चिमी ज्ञान एवं विज्ञान से जोड़ा जा सकता है। उन्होंने पारंपरिक भारतीय शिक्षा, संस्कृत और फारसी पर आधारित शिक्षा प्रणाली की आलोचना की और प्रस्ताव दिया कि भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होना चाहिए। उनके प्रस्ताव को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने स्वीकार किया और 1835 में अंग्रेजी शिक्षा नीति लागू कर दी गई।

इस नीति के बाद शिक्षा संस्थानों में अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी विषयों जैसे विज्ञान, गणित और आधुनिक कानून को प्राथमिकता दी जाने लगी। मैकाले ने यहां तक कहा था कि “एक भारतीय जो अंग्रेजी शिक्षा से तैयार हुआ हो, वह मानसिक रूप से ब्रिटिश होगा।” इस बयान को लेकर उन्हें बाद में काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी।

हालांकि आलोचना के बावजूद, यह भी तथ्य है कि अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के कारण भारत में एक नई प्रशासनिक और आधुनिक सोच वाली पीढ़ी तैयार हुई, जिसने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैकाले का प्रभाव आज की भारतीय शिक्षा नीति पर प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से अब भी देखा जा सकता है।

यह भी पढ़ें: पीएम ने मैकाले की नीति को बताया मानसिक गुलामी की जड़, इससे मुक्ति के संकल्प का किया आह्वान
 

भारत आकर मैकाले ने क्या किया?

भारत आने के बाद मैकाले को शिक्षा से संबंधित विषयों पर काम करने की जिम्मेदारी मिली। 2 फरवरी 1835 को उन्होंने "मिनट ऑन इंडियन एजुकेशन" (Minute on Indian Education) नाम से एक रिपोर्ट तैयार की, जिसे "मैकाले की शिक्षा नीति" के नाम से जाना जाता है। इस रिपोर्ट में उन्होंने अंग्रेजी भाषा को भारतीय शिक्षा का माध्यम बनाने और पारंपरिक भारतीय शिक्षा, जैसे संस्कृत और फारसी को अप्रासंगिक घोषित किया। 

उन्होंने लिखा कि अंग्रेजी के माध्यम से ऐसे "क्लर्क" तैयार किए जाएं जो ब्रिटिश प्रशासन के लिए काम कर सकें। उनका प्रसिद्ध कथन था कि अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा "हम भारतीयों में से एक ऐसा वर्ग तैयार करें जो रक्त और रंग से तो भारतीय हो लेकिन स्वाद, विचार और बौद्धिकता से अंग्रेजों जैसा हो।"

इसके अलावा, 1837 में उन्होंने "इंडियन पीनल कोड" (IPC) का मसौदा तैयार किया, जो बाद में 1860 में लागू हुआ।

मैकाले को किसलिए जाना जाता है?

  • भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की नींव रखने के लिए
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) तैयार करने में भूमिका के लिए
  • भारतीय सामाजिक ढांचे पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ने के लिए
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