सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Election ›   Lok Sabha ›   Ground Report: Lok Sabha Elections 2024 Political atmosphere of birbhum Lok Sabha seat of west bengal

ग्राउंड रिपोर्ट बीरभूम: लाल मिट्टी पर बना लाल किला TMC ने कब्जाया, लगातार चौथी जीत को शताब्दी राय मैदान में

विजय त्रिपाठी Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Sun, 12 May 2024 07:03 AM IST
सार
बीरभूम वीरों की भूमि रही है, लेकिन अब सियासी बांकुरे यहां की जमीन लाल किए रहते हैं। यहां का राजनीतिक इतिहास रक्तरंजित है। अक्सर खूनखराबा होता रहता है। 2022 में यहां तृणमूल नेता की हत्या के बाद भड़की हिंसा में आठ लोगों की जान चली गई थी। एक घर में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया था।
विज्ञापन
loader
Ground Report: Lok Sabha Elections 2024 Political atmosphere of birbhum Lok Sabha seat of west bengal
अमर उजाला ग्राउंड रिपोर्ट - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स

विस्तार
Follow Us

बीरभूम को लाल मिट्टी की भूमि कहा जाता है। इस मिट्टी में लोहा और चूना ज्यादा पाया जाता है। बाजरा जैसी फसलों के लिए ऐसी जमीन फायदेमंद होती है, लेकिन इसकी एक खूबी या खामी कहिए कि यह बहाव में कटती बहुत है। वामपंथी दलों की जमीन यहां खिसक चुकी है और अब लाल-गर्म तेवरों वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यहां की जमीन में जड़ें जमा चुकी है। 

बीरभूम वीरों की भूमि रही है, लेकिन अब सियासी बांकुरे यहां की जमीन लाल किए रहते हैं। यहां का राजनीतिक इतिहास रक्तरंजित है। अक्सर खूनखराबा होता रहता है। 2022 में यहां तृणमूल नेता की हत्या के बाद भड़की हिंसा में आठ लोगों की जान चली गई थी। एक घर में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। साल 2000 में भी सीपीएम कार्यकर्ताओं ने तृणमूल कांग्रेस समर्थक 11 खेतिहर मजदूरों की गला रेतकर हत्या कर दी थी। रक्तपात की और भी मिसालें हैं। 

सांस्कृतिक समृद्धि वाली इस जमीन ने कई यशस्वी राजा पैदा किए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का घर भी यहीं है और उनका शांतिनिकेतन (विश्व भारती विश्वविद्यालय) भी यहीं बोलपुर में है। झारखंड से सटे बीरभूम लोकसभा सीट में हिंदुओं की आबादी तकरीबन 60-65 फीसदी है। इसमें बड़ी जमात (29 फीसदी) दलितों की है। 

शुरुआती चार आम चुनावों यानी 1952-1967 तक यहां लगातार कांग्रेस जीती। 1971 में सीपीएम के गदाधर साहा का जादू चला और कांग्रेस नेपथ्य में चली गई। साहा ने इसे वामपंथी किले में बदल दिया। 1984 तक उन्होंने लगातार चार बार जीत हासिल की। इस दुर्ग को और मजबूत किया रामचंद्र डोम ने। 1989-2004 तक डोम ने लगातार छह बार यहां लाल झंडा फहराया। 2009 में तृणमूल से मैदान में उतरीं अभिनेत्री शताब्दी राय ने इस लाल दुर्ग को दरका दिया।  

हैट्रिक लगा चुकीं शताब्दी चौथी बार मैदान में हैं। 2019 में उन्होंने करीब साढ़े छह लाख वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। 2009 में शताब्दी ने 47.82 प्रतिशत, 2014 में 36.10 प्रतिशत और 2019 में 45.13 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किए। यानी शताब्दी की लोकप्रियता 2009 के मुकाबले थोड़ी कम हुई है। बदलते मिजाज को समझने के लिए हमें 2019 के चुनाव के समीकरणों को भी समझना होगा। भाजपा से उतरे दूध कुमार मंडल ने 5,65,153 वोट हासिल कर पार्टी का वोट शेयर 38.97 फीसदी पहुंचा दिया। वह दूसरे नंबर पर रहे। इससे पहले के चुनाव में भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी। हालांकि तब पार्टी का वोट शेयर 28.23 फीसदी ही रहा था। वोट शेयर में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा यहां भाजपा के पांव जमाने का संकेत देता है। 

शताब्दी के लिए चुनौतियां कम नहीं 
शताब्दी को इस बार कई मुश्किलें झेलनी पड़ी रही हैं। पार्टी से उनका तालमेल दुरुस्त नहीं है। जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल से उनकी कभी नहीं बनी, हालांकि अनुब्रत के गो तस्करी में तिहाड़ जाने के बाद शताब्दी को राहत है। लगातार तीन बार से सांसद होने के बाद भी अपेक्षित विकास न होने से जनता भी उनसे नाराज है। हालांकि आखिरी वक्त में भाजपा का प्रत्याशी बदल जाने से पार्टी में मची अफरातफरी उनके पक्ष में जाती है। 

कांग्रेस ने मिल्टन रशीद पर लगाया दांव  
भाजपा ने पूर्व आईपीएस अधिकारी देबाशीष धर को मैदान में उतारा था, लेकिन तकनीकी आधार पर उनका नामांकन ही रद्द कर दिया गया। वे राज्य सरकार से नो ड्यूज प्रमाणपत्र नहीं पा सके। देबाशीष काफी पहले से ही चुनावी तैयारियों में जुटे हुए थे। यह झटका धर ही नहीं, भाजपा के लिए भी था। बहरहाल, धर की जगह भाजपा ने संगठन से देबतनु भट्टाचार्य को आखिरी समय में उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने मिल्टन रशीद को मैदान में उतारा है। यहां तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर है। 

क्या है मतदाताओं का रुख 
शांतिनिकेतन स्थित गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के विश्वविद्यालय विश्वभारती में हल्की-फुल्की चुनावी चुहल दिखती है। संथाली भाषा विभाग के छात्रों से बातचीत में पता चलता है कि वे भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा परेशान हैं। वे विकास को प्राथमिकता देने वाली पार्टी को पसंद करते हैं। 

बीरभूम जिले का प्रशासनिक मुख्यालय सिउड़ी है। यहां बस स्टैंड के पास मिले अधेड़ देबोजीत मजूमदार कहते हैं कि मोदी का हवा है। दीदी ने कोई विकास नहीं किया है। राम मंदिर की लहर चलती दिख रही है। यहां के बाजारों में भाजपा के कम और रामछपे व जय श्रीराम लिखे भगवा झंडे ज्यादा दिखते हैं। तृणमूल के ब्लॉक अध्यक्ष लाला प्रशांटो प्रसाद दावा करते हैं कि राम मंदिर फ्लॉप कर गया। राज्य की योजनाओं का पैसा केंद्र ने रोक रखा है। पार्टी दफ्तर में मिले मो. असलम कहते हैं कि लोख्खी (लक्ष्मी) भंडार (योजना) का बहुत असर है। मैं किसी को भी वोट दूं, लेकिन हमारे घर की औरतें दीदी को ही वोट देंगी। 

पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजे 

                                                    लोकसभा चुनाव 2019
उम्मीदवार दल  मत%
शताब्दी रॉय तृणमूल 45.11 
दुधकुमार मंडल भाजपा 38.97 

 

                                                    लोकसभा चुनाव 2014
उम्मीदवार दल  मत%
शताब्दी रॉय तृणमूल 36.10 
डॉ. इलाही महम्मद सीपीएम  30.82 

      

       

विज्ञापन
विज्ञापन
Trending Videos
विज्ञापन
विज्ञापन

Next Article

Election

Followed