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लोकसभा अध्यक्षों की कहानी: कभी पहली बार के MP तो कभी विपक्षी नेता बने स्पीकर, किसी ने पद मिलते ही पार्टी छोड़ी

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवेंद्र तिवारी Updated Fri, 14 Jun 2024 04:50 PM IST
सार
Lok Sabha Speaker: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के अध्यक्ष के चुनाव का जिक्र किया गया है। गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष हैं जिन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद अपनी पार्टी कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था।
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लोकसभा अध्यक्षों की सूची - फोटो : AMAR UJALA

विस्तार
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लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। सरकार का गठन होने के साथ ही मंत्रियों को उनके मंत्रालय भी सौंप दिए गए हैं। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि 18वीं लोकसभा का अध्यक्ष कौन होगा? इस प्रश्न का उत्तर 26 जून को मिल जाएगा। दरअसल, 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होना है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी है। 



लोकसभा चुनाव के परिणाम आते ही अगले स्पीकर को लेकर तरह-तरह की अटकलें शुरू हो गईं। विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने तो तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को भाजपा से स्पीकर का पद मांगने का सुझाव दे डाला। सियासी गलियारों में चंद्रबाबू नायडू की साली डी. पुरंदेश्वरी के लोकसभा स्पीकर बनने की चर्चा भी हो रही है। भारतीय संसदीय इतिहास में अब तक दो ही महिलाएं लोकसभा अध्यक्ष बनी हैं। 


एक चर्चा यह भी है कि विपक्षी गठबंधन भी लोकसभा अध्यक्ष के लिए उम्मीदवार खड़ा कर सकता है। अगर विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए उम्मीदवार उतारकर यदि चुनाव की स्थिति उत्पन्न करता है तो यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि अब तक पीठासीन अधिकारी का चयन आम सहमति से होता रहा है।


आइये जानते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष के पद के बारे में, आखिर क्यों अहम है यह पद? लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है? लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका क्या होती है? अब तक किस-किसने स्पीकर का पोस्ट संभाला? अब तक किस-किस पार्टी के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष बने हैं? 

लोकसभा अध्यक्ष के पद के बारे में
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के अध्यक्ष के चुनाव का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका के लिए दो सदस्यों को चुनने का अधिकार है, जब भी ये पद खाली होते हैं। 



लोकसभा अध्यक्ष के पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। पद और वरीयता के संबंध में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अपने-अपने राज्यों के राज्यपाल और पूर्व राष्ट्रपति, उप प्रधानमंत्री के बाद छठे स्थान पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ लोकसभा अध्यक्ष का पद आता है। 

 

लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है?
एक बार जब लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित हो जाती है और लोकसभा सचिवालय द्वारा अधिसूचित हो जाती है, तो कोई भी सदस्य महासचिव को संबोधित करते हुए लिखित रूप में प्रस्ताव दे सकता है कि किसी अन्य सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुना जाए। 

लोकसभा में अध्यक्ष का चुनाव इसके सदस्यों में से सभा में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष के चुनाव के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और संविधान में मात्र यह अपेक्षित है कि वह सभा का सदस्य होना चाहिए। सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के सदस्य को ही अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है। उम्मीदवार के संबंध में एक बार निर्णय ले लिए जाने पर आमतौर पर प्रधानमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है। 

प्रस्तुत किए गए प्रस्तावों का आवश्यकता के अनुसार, सभा में मत विभाजन द्वारा फैसला किया जाता है। यदि कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो पीठासीन अधिकारी घोषणा करेगा कि प्रस्तावित सदस्य को सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया है। नतीजा घोषित किए जाने के बाद नवनिर्वाचित अध्यक्ष को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा अध्यक्ष आसन तक ले जाया जाता है। इसके बाद सभा में सभी राजनैतिक दलों और समूहों के नेताओं द्वारा अध्यक्ष को बधाई दी जाती है और उसके जवाब में वह सभा में धन्यवाद भाषण देता है और इसके बाद नया अध्यक्ष अपना कार्यभार ग्रहण करता है।

संसद
संसद - फोटो : ANI
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका क्या होती है और यह पद अहम क्यों है?
भारत में लोकसभा अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है। लोकसभा की कार्यवाही के संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष पर ही होता है। लोकसभा अध्यक्ष को संसद के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आने वाली वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। सदन का संचालन, प्रश्न और अभिलेख, ध्वनि मत, विभाजन, अविश्वास प्रस्ताव, मतदान और सदस्यों की अयोग्यता जैसे अहम मामले अध्यक्ष की शक्तियों में आते हैं।

संसद
संसद - फोटो : ANI
अब तक किस-किसने लोकसभा अध्यक्ष का पद संभाला?
गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक था। एम. अनन्तशयनम अय्यंगार देश के दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण किया था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा। 

सरदार हुकम सिंह अप्रैल 1962 से मार्च 1967 के बीच लोकसभा के तीसरे स्पीकर थे। वर्ष 1962 के आम चुनावों में हुकम सिंह को कांग्रेस के टिकट पर पटियाला सीट से चुना गया था। 

नीलम संजीव रेड्डी ने अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था
डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा के चौथे अध्यक्ष के रूप में काम किया। रेड्डी के भी दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1967 से जुलाई 1669 तक और दूसरा मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक रहा। रेड्डी चौथी लोकसभा के लिए आंध्र प्रदेश के हिन्दुपुर सीट से निर्वाचित हुए थे। हमारे संसदीय इतिहास में नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भालने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था। अध्यक्ष पद पर चुने जाने के तुरन्त बाद उन्होंने कांग्रेस की अपनी 34 वर्ष पुरानी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उनका यह मानना था कि अध्यक्ष का संबंध सम्पूर्ण सभा से होता है, वह सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसे किसी दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए या यों कहें कि उसका संबंध सभी दलों से होना चाहिए। वह ऐसे एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष भी थे जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

तत्कालीन अध्यक्ष नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने पर डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों को अगस्त 1969 में सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। जब ढिल्लों इस पद के लिए निर्वाचित हुए तो वे उस समय तक लोकसभा के जितने अध्यक्ष हुए थे उनमें से सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। कांग्रेस नेता ढिल्लों ने दो बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पहला कार्यकाल अगस्त 1969 से मार्च 1971 तक और दूसरा मार्च 1971 से दिसंबर 1975 तक रहा। 

इन्होंने भी संभाली स्पीकर की कुर्सी 
ढिल्लों द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने के बाद रिक्त हुए पद पर जनवरी 1976 में बली राम भगत को पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। कांग्रेस से आने वाले नेता का कार्यकाल मार्च 1977 को समाप्त हुआ था। 

छठी लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में कावदूर सदानन्द हेगड़े का चुनाव किया गया। केएस हेगड़े का कार्यकाल जुलाई 1977 से जनवरी 1980 तक रहा। यह भी दिलचस्प था कि हेगड़े 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार निर्वाचित हुए और अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का पद मिल गया।

डॉ. बलराम जाखड़ ने सातवीं लोकसभा के लिए अपने सर्वप्रथम निर्वाचन के तुरंत बाद अध्यक्ष पद हासिल किया। उन्हें लगातार दो बार लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस से आने वाले जाखड़ का पहला कार्यकाल जनवरी 1980 से जनवरी 1985 तक और जनवरी 1985 से दिसंबर 1989 तक रहा। 

ओडिशा से आने वाले जनता दल के नेता रवि राय को दिसम्बर 1989 में नौवीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, रवि राय अध्यक्ष पद पर केवल करीब 15 महीने ही रहे। कांग्रेस नेता शिवराज विश्वनाथ पाटील 10वीं लोक सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। पाटील का कार्यकाल जुलाई 1991 से मई 1996 तक रहा। 

 

जब विपक्षी सांसद संगमा बने लोकसभा अध्यक्ष 
वर्षों की भारतीय संसदीय परंपरा से हटकर 11वीं लोकसभा ने विपक्ष के एक सदस्य पूर्णो अगितोक संगमा को सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया। उस वक्त भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। उस वक्त कांग्रेस नेता संगमा का स्पीकर के रूप में पी.ए. संगमा का कार्यकाल मार्च 1996 से मार्च 1998 तक था। 

गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी को 12वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित होने और सर्वसम्मति से 13वीं लोक सभा का अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होने का गौरव हासिल है। तेलुगूदेशम पार्टी सांसद बालायोगी ने मार्च 1998 में देश के राजनैतिक इतिहास के अत्यंत नाजुक दौर में लोकसभा अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद के लिए निर्वाचित हुए। टीडीपी उस समय गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही थी। उस समय किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। बालायोगी इस पद पर आसीन होने वाले आज तक के सबसे कम आयु के व्यक्ति थे।

एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी की दुखद मृत्यु के बाद मनोहर जोशी मई 2002 में लोकसभा अध्यक्ष बने थे। शिवसेना से ताल्लुक रखने वाले जोशी जून 2004 तक पद पर बने रहे।

जून 2004 में 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का सर्वसम्मति से निर्वाचन हुआ। यह पहली बार था जब सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) का लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया गया था। सोमनाथ चटर्जी माकपा से जुड़े थे।

मीरा कुमार
मीरा कुमार - फोटो : ANI
मीरा कुमार बनीं पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष 
उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार 2009 से 2014 तक लोकसभा की 15वीं अध्यक्ष रहीं। इस पद पर आसीन होने वाली वे पहली महिला थीं। मीरा कुमार कांग्रेस की सदस्य हैं। भाजपा की सुमित्रा महाजन 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष थीं। वे इस पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला हैं। राजस्थान के कोटा से भाजपा के सांसद ओम बिड़ला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।
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