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Laal Singh Chaddha Review: सिनेमाई सफर का सच्चा दस्तावेज बनी ‘लाल सिंह चड्ढा’, आमिर और करीना के करिश्माई अंदाज

Pankaj Shukla पंकज शुक्ल
Updated Fri, 12 Aug 2022 01:40 PM IST
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सार

Laal Singh Chaddha Review: फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ हिंदी सिनेमा के सफर का एक प्रशंसनीय दस्तावेज है जिसे देख हर उस इंसान को रोना आ जाएगा, जिसने जीवन में एक बार भी मोहब्बत की है।

Laal Singh Chaddha Review and Rating in Hindi Aamir Khan Kareena Kapoor VIACOM18 Studios Paramount Pictures
लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला
Movie Review
लाल सिंह चड्ढा
कलाकार
आमिर खान , करीना कपूर खान , नागा चैतन्य , मोना सिंह और मानव विज
लेखक
एरिक रॉथ और अतुल कुलकर्णी
निर्देशक
अद्वैत चंदन
निर्माता
वॉयकॉम18 स्टूडियोज और आमिर खान प्रोडक्शंस
रिलीज
11 अगस्त 2022
रेटिंग
3.5/5

विस्तार
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फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ उस हॉलीवुड फिल्म ‘फॉरेस्ट गम्प’ का हिंदी अनुकूलन है, जिसने इसके अभिनेता टॉम हैंक्स को विश्वसिनेमा में एक अलग पहचान दी। फिल्म को हिंदी में बनाने का पहले पहल विचार अभिनेता अतुल कुलकर्णी को ये फिल्म देखकर आया। उन्होंने दो हफ्ते के भीतर इसकी हिंदी पटकथा भी तैयार कर ली। लेकिन, अपने मित्र आमिर खान को ये पटकथा सुनाने में उनको दो साल लग गए और उसके बाद आमिर को ये फिल्म बनाने में 14 साल और। अब ये फिल्म सोशल मीडिया के बहिष्कार वादियों के निशाने पर है।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

इतिहास की घटनाओं का सिनेमाई संसार पंजाब से आया एक बच्चा दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के सामने अपने परिवार के साथ फोटो खिंचा रहा है और पीछे से गोलियों के चलने की आवाजें आने लगती हैं। वापस अपने गांव जाने के लिए मां के साथ निकले इस बच्चे के सामने ही उसके ऑटोवाले को पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जला दिया जाता है। मां अपने बच्चे को लेकर दुकानों की ओट में छिपी है और वहीं गिरे कांच के टुकड़े उठाकर अपने बेटे की ‘जूड़ी’ खोलकर उसके बाल काट देती है। ये 1984 का हिंदुस्तान है। देश में बीते 50 साल की घटनाओं को एक प्रेम कहानी के जरिये कैद करती आमिर खान की नई फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ सोशल मीडिया के उन ‘शूरवीरों’ के निशाने पर आई फिल्म है जिन्हें किसी भी खान सितारे की फिल्म से चिढ़ है। एक फिल्म बनती है और चलती है तो मुंबई के हजारों परिवारों के घर चूल्हा जलने की गारंटी बनती है। चंद लोगों से चिढ़े लोग अगर पूरी फिल्म इंडस्ट्री का इन बॉयकॉट से ऐसे ही तमाशा बनाना चाहें तो अलग बात है, नहीं तो फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ हिंदी सिनेमा के सफर का एक प्रशंसनीय दस्तावेज है जिसे देख हर उस इंसान को रोना आ जाएगा, जिसने जीवन में एक बार भी मोहब्बत की है।

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Laal Singh Chaddha Review and Rating in Hindi Aamir Khan Kareena Kapoor VIACOM18 Studios Paramount Pictures
लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

अतुल कुलकर्णी का बनाया सांस्कृतिक आधार फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ छह ऑस्कर जीतने वाली फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ का आधिकारिक रीमेक है। लेकिन, जिन्होंने ओरिजनल फिल्म देखी है, उन्हें ये फिल्म अपनी मूल फिल्म से बेहतर नजर आएगी। यहां फिल्म का भारतीय संस्कृति और देश के इतिहास के हिसाब से अनुकूलन करने वाले अतुल कुलकर्णी ने गजब की संवेदनशीलता का परिचय दिया है। सबसे पहले तो उत्सुकता इसी बात को लेकर होती है कि अपने ‘खास’ बच्चे लाल का सामान्य स्कूल में एडमीशन कराने पहुंची उसकी मां क्या कुर्बानी देगी? शुरू के संवाद देख डर लगता है कि कहीं यहां भी तो ओरिजनल की तरह मां अपने बच्चे के लिए ‘सौदा’ तो नहीं कर बैठेगी, लेकिन अतुल कुलकर्णी ने पूरे दृश्य को जिस तरह भारतीय संवेदनाओं के साथ बदला है, वहीं से फिल्म के आगे की राह खुलती दिखने लगती है। लाल सिंह चड्ढा जिसे थोड़ा बुद्धू किस्म का बच्चा कहते हैं, वैसा है। दिमाग से कम और दिल से ज्यादा समझता है। ऐसे लोग अब भी ‘बुद्धू’ ही कहलाते हैं।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

हर कदम पर दिखा आमिर का अधिकार आमिर खान की चार साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तां’ का जब बॉक्स ऑफिस पर हश्र बुरा हुआ तो इल्जाम आमिर खान पर ये आया कि पूरी फिल्म तो उन्होंने अपने हिसाब से ही बनाई। आमिर अपनी फिल्मों के अघोषित निर्देशक होते हैं, ये बात सब जानते हैं। और, यहां फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ देखते समय भी ये बात बार बार याद आती रहती है कि आमिर इस फिल्म में सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि इसके निर्माता और अघोषित निर्देशक भी हैं। नाम फिल्म में अद्वैत चंदन का बतौर निर्देशक है, लेकिन फिल्म के हर फ्रेम पर छाप आमिर खान की है। कहानी बीते सदी के आठवें दशक से शुरू होकर अब तक आती है। बीच में भारत की क्रिकेट विश्वकप में मिली पहली जीत है, ऑपरेशन ब्लू स्टार है, इंदिरा गांधी की हत्या है, उनके अंतिम संस्कार में सुबकते राजीव गांधी हैं, बाबरी विध्वंस है, लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा है, मुंबई बम धमाके हैं, अबू सलेम और मोनिका बेदी की कथित प्रेम कहानी है और है वाराणसी के घाटों पर लिखा नारा, ‘अबकी बार मोदी सरकार’।

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Laal Singh Chaddha - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

भारतीय सिनेमा का बेहतर विस्तार मुंबई फिल्म इंडस्ट्री से करीब से वाकिफ लोग जानते हैं कि यहां अब सिर्फ प्रोजेक्ट बनते हैं। हीरो की फीस कितनी होगी, फिल्म की मेकिंग पर खर्च कितना आएगा, फिर फिल्म ओटीटी पर कितने की बिकेगी, म्यूजिक और सैटेलाइट राइट्स से कितना पैसा आ जाएगा, ये सब गुणा भाग करके फिल्म शुरू हो जाती है, बिक जाती है, सिनेमाघरों में फिल्म चलेगी कि नहीं, इसकी खास परवाह इन ‘प्रोजेक्ट’ बनाने वालों को होती नहीं है। लेकिन, फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ प्रोजेक्ट नहीं है। ये सिनेमा है। एक ऐसे इंसान का जुनून है जिसने खुद को परदे पर एक लाचार इंसान के तौर पर पेश करने का जोखिम लिया है। ये सच है कि आमिर सुर्खियों के शौकीन इंसान भी रहे हैं और बिना सोचे विचारे दिए गए वक्तव्य ही अब उनके दुश्मन बने हुए हैं। लोगों ने उन्हें मार्केटिंग गुरु के तौर पर स्थापित करने की कोशिश भी मार्केटिंग के तौर पर ही की लेकिन जो आमिर को करीब से जानते हैं, वे सब ये भी जानते हैं कि आमिर अपने काम में खुद को किस तरह झोंक देते हैं।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

आमिर की अदाकारी का चमत्कार कोई 50 साल बाद जब कोई हिंदी सिनेमा पर कुछ लिखेगा तो आमिर खान की गिनती उसमें ऐसे फिल्मकार के तौर पर करेगा जिसने परदे पर किरदार जैसा दिखने का हिंदी सिनेमा में चलन शुरू किया। यहां भी वह आमिर खान किसी कोने से नहीं दिखते। शुरू के दृश्यों में भले उनके किरदार में ‘पीके’ की झलक मिलती है और शाहरुख खान को भी जवान दिखाने के लिए उनके चेहरे पर ‘फैन’ जैसे स्पेशल इफेक्ट्स डाले गए हों, लेकिन एक बार लाल को अपना कमाल समझ आता है तो फिल्म का ग्राफ ही बदल जाता है। बीते 50 साल की महत्वपूर्ण घटनाओं को पन्ना दर पन्ना समेटती फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ को देखना सिनेमा को समझने के लिए जरूरी है। आमिर की कमाल की अदाकारी इस फिल्म की आत्मा है। और, आमिर का फिल्म में आमिर खान न लगना ही इस फिल्म की जीत है। साथ ही, जरूरी ये जानना भी है कि हिंदी सिनेमा के दर्शक वाकई सिनेमा देखना चाहते हैं कि वे बस विस्मयकारी दृश्यों को देखकर अचंभित होते रहेंगे और ‘केजीएफ 2’ और ‘आरआरआर’ जैसी फिल्मों पर ही पैसे लुटाते रहेंगे।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

करीना कपूर का करिश्माई किरदार फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ को देखने के दौरान आसपास की सीटों पर बैठे लोग सुबकते महसूस होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये फिल्म एक प्रेम कहानी है। लाल सिंह चड्ढा और रूपा डिसूजा की प्रेम कहानी। रूपा बचपन में ही लाल के घर रहने आ जाती है। दोनों साथ पढ़ने स्कूल जाते हैं। रूपा का हर काम लाल खुशी खुशी करता है। लेकिन, बचपन में 10 रुपये के लिए अपनी मां को खो देने वाली रूपा को अमीर बनना है। किसी भी तरह। वह मॉडल बनती है और मुंबई आकर हीरोइन बनने के ‘दलदल’ में ऐसा फंसती है जहां से निकलने के लिए उसे आत्महत्या ही एक मात्र रास्ता नजर आता है। दुबई में वह दाऊद जैसे दिखते शख्स को शराब परोसती नजर आती है। अबू सलेम जैसा दिखता डॉन उसे अपनी रखैल बनाकर रखता है। और, लाल सिंह चड्ढा से जब वह फिर मिलती है तो उसके संग पूरी रात दिल्ली की सड़कों पर घूमते हुए गुजार देना उसे अच्छा लगता है। रूपा डिसूजा से रूपा कौर बनने की करीना कपूर की कहानी भी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ का मजबूत आधार है। लाल सिंह चड्ढा बनकर आमिर ने अगर बतौर अभिनेता खुद को और निखारा है तो करीना कपूर भी अरसे बाद अपने रंग में दिखी हैं। रूपा का रूप बनाने से लेकर उसे जीकर दिखाने तक में करीना ने बेहतरीन काम किया है।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

नागा चैतन्य और मानव विज बने दिलदार करीब 180 करोड़ रुपये की लागत से बनी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ वाकई मेहनत से बनी फिल्म है। पूरा देश इस एक फिल्म में नजर आता है। अपने दादा, परदादा की तरह चड्ढी, बनियान का कारोबार करने की हसरत लिए फौज में आया बाला फिल्म को एक अलग पुट प्रदान करता है। तो कारगिल की पहाड़ियों पर हुई जंग में घायल पाकिस्तानी की अलग कहानी है। हिंदुस्तान में रहकर उसका दिल बदलता है। 72 हूरों वाली बात उसे भी छलावा लगने लगती है। लाल सिंह चड्ढा उस पर भरोसा करता है और अपनी कंपनी में ऊंचा ओहदा देता है लेकिन वह वापस घर जाना चाहता है। बच्चों के लिए एक स्कूल खोलना चाहता है और पाकिस्तान के लोगों को बताना चाहता है कि असल हिंदुस्तान क्या है और उन्हें क्या समझाया जा रहा है। बाला के किरदार में नागा चैतन्य और पाकिस्तानी हमलावर के रूप में मानव विज ने फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ में नगीने जड़े हैं। और, लाल की मां के रूप में मोना सिंह ने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है। यही वह किरदार है जो लाल को लाल सिंह चड्ढा बनाता है।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : अमर उजाला, मुंबई

फीचर फिल्म का डॉक्यूमेंट्री सा आकार फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ की तकनीकी टीम इसकी जान है। सत्यजीत पांडे ने अपने कैमरे से जो भारत दर्शन इस फिल्म में कराया है, वह कई बार देखते समय डिस्कवरी चैनल की किसी डॉक्यूमेंट्री सा एहसास दिलाता है। ट्रेन से अमृतसर जाते लाल सिंह चड्ढा की सहयात्रियों से बातचीत के जरिये बयां होती फिल्म शुरू में थोड़ा धैर्य भी मांगती है और इंटरवल के बाद जैसे ही फिल्म सरपट भागना शुरू करती है तो फिल्म के क्लाइमेक्स तक आते आते कई बार रुलाती है। फिल्म के इस चुस्त संपादन के लिए हेमंती सरकार के लिए भी तालियां बनती हैं। अमिताभ भट्टाचार्य और प्रीतम ने मिलकर फिल्म के संगीत पर मेहनत काफी की है। पर फिल्म के संगीत का कोई खास योगदान फिल्म के विकास में नहीं दिखता है और फिल्म की इकलौती कमजोर कड़ी भी फिल्म का संगीत ही है।

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लाल सिंह चड्ढा - फोटो : सोशल मीडिया
देखें कि न देखें अगर आपको अरसे से एक फिल्म ऐसी देखने का इंतजार रहा है जिसमें अच्छे सिनेमा के सारे तो नहीं लेकिन अधिकतर तत्व मौजूद हों तो फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ जरूर देखनी चाहिए। फिल्म चूंकि पहले से बनी एक फिल्म का हिंदी अनुकूलन है तो ऑस्कर में तो ये नहीं ही जाएगी, और हो सकता है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की सीमित सोच वाली ज्यूरी भी इसे नजरअंदाज ही करे लेकिन, इसका असली पुरस्कार वह प्यार होगा, जो सिनेमा के सुधी दर्शक इसे देने वाले हैं।

फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ हिंदी सिनेमा के सफर का एक प्रशंसनीय दस्तावेज है जिसे देख हर उस इंसान को रोना आ जाएगा, जिसने जीवन में एक बार भी मोहब्बत की है।
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