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गांव को सांविधानिक पहचान मिलनी चाहिए : जागलान
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चंडीगढ़। 26 नवंबर संविधान दिवस के अवसर पर एक नई और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बहस तेज हो गई है कि क्या भारत के संविधान में अब गांव की परिभाषा जोड़ने का समय आ गया है? यह सवाल ग्राम एसोसिएशन ऑफ भारत की नई मुहिम के साथ सुर्खियों में है।
संगठन ने घोषणा की है कि देशभर की लाखों ग्राम पंचायतें प्रस्ताव पारित करके प्रधानमंत्री को भेजेंगी ताकि संविधान में पहली बार गांव की आधिकारिक परिभाषा को शामिल किया जा सके।
ग्राम एसोसिएशन ऑफ भारत के शेरपा और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील जागलान का कहना है कि आजादी के 78 साल बाद भी संविधान में गांव की परिभाषा न होना आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है पर संविधान में गांव की पहचान अस्पष्ट है। अब बदलाव का समय है।
उन्होंने गांव की प्रस्तावित परिभाषा में मानवता, सम्मान, सह-अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण को मुख्य आधार बनाया है। जागलान का कहना है कि यह कदम केवल शब्द जोड़ने का नहीं बल्कि भारत की आत्मा को सम्मान देने का प्रयास है।
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संगठन ने घोषणा की है कि देशभर की लाखों ग्राम पंचायतें प्रस्ताव पारित करके प्रधानमंत्री को भेजेंगी ताकि संविधान में पहली बार गांव की आधिकारिक परिभाषा को शामिल किया जा सके।
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ग्राम एसोसिएशन ऑफ भारत के शेरपा और सामाजिक कार्यकर्ता सुनील जागलान का कहना है कि आजादी के 78 साल बाद भी संविधान में गांव की परिभाषा न होना आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है पर संविधान में गांव की पहचान अस्पष्ट है। अब बदलाव का समय है।
उन्होंने गांव की प्रस्तावित परिभाषा में मानवता, सम्मान, सह-अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण को मुख्य आधार बनाया है। जागलान का कहना है कि यह कदम केवल शब्द जोड़ने का नहीं बल्कि भारत की आत्मा को सम्मान देने का प्रयास है।