{"_id":"693f04e191b57b64a90944e4","slug":"prabhat-ferry-will-be-held-from-today-on-the-occasion-of-prakash-parv-kaithal-news-c-245-1-kht1013-142144-2025-12-15","type":"story","status":"publish","title_hn":"Kaithal News: प्रकाश पर्व पर आज से निकलेगी प्रभात फेरी","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Kaithal News: प्रकाश पर्व पर आज से निकलेगी प्रभात फेरी
संवाद न्यूज एजेंसी, कैथल
Updated Mon, 15 Dec 2025 12:11 AM IST
विज्ञापन
गुरुद्वारा पातशाही छेवीं एवं नौवीं चीका के प्रबंधक सुरजीत सिंह मलिकपर
विज्ञापन
गुहला चीका। गुरुद्वारा प्रबंधक सुरजीत सिंह मलिकपुर ने बताया कि छोटे बड़े साहबजादे, माता गुर्जर कौर की शहादत एवं श्री गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व को लेकर हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और गुरुद्वारा पातशाही छेवीं एवं नौवीं की तरफ से 15 दिसंबर से प्रभातफेरी निकाली जाएगी, जो रोजाना सुबह पाचं बजे से साढे छहे बजे तक गुरुद्वारा साहिब परिसर चीका में श्रद्धालु शबद गायन करगें। शहीदी सप्ताह का 26 दिसंबर को समापन होगा।
उन्होंने नगर वासियों से अपील की है कि अगर कोई भी प्रभात फेरी निकलवाना चाहता है तो गुरुद्वारा प्रबंधक से संपर्क कर सकता है। सुरजीत सिंह मलिकपुर ने बताया कि गुरुजी के चार साहिबजादे और माता गुजरी जी की शहादत को नमन करने के लिए हर साल शहीदी जोड़ मेला श्री फतेहगढ़ साहिब में लगता है। दूर दराज से संगत शहीदी दिवस में शीश नमन करने के लिए पहुंचती है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने जब श्री आनंदपुर किला छोड़ा तो उनका परिवार सिरसा नदी पर बिछुड़ गया। बड़े दो साहिबजादे गुरु जी के साथ रह गए और छोटे दो साहिबजादे माता गुजरी के साथ रह गए।
बड़े साहिबजादे मुगलों के साथ हुए चमकौर साहिब में जंग के दौरान शहीद हो गए थे। उन्होंने कहा कि 1705 में मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे 9 साल के बाबा जोरावर सिंह और 7 साल के बाबा फतेह सिंह के साथ माता गुजरी को गांव सहेड़ी के पास पकड़ कर उन्हें फतेहगढ़ साहिब ले जाया गया और वहां इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया, लेकिन साहिबजादे ने मना कर दिया। इस पर माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को मुगलों ने यातना देने के लिए तीन दिन और दो रातें ठंडे बुर्ज में रखा था। साहिबजादों को दीवारों में चिनवा कर शहीद करने के बाद माता गुजरी ने भी प्राण त्याग दिए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद साहिबजादों और माता गुजरी जी के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए मुगल कोई स्थान नहीं दे रहे थे। इस पर दीवान टोडरमल ने मुगलों से इनके संस्कार के लिए जगह मांगी तो उन्होंने सोने की मोहरें बिछाकर जमीन देने पे हामी भरी। इस पर दीवान टोडरमल ने हजारों सोने की मोहरों को बिछाकर दुनियां की सबसे कीमती जमीन खरीदी और तीनों का संस्कार फतेहगढ़ साहिब में किया था। इस अवसर पर सरदार मेजर सिंह, हेड ग्रंथि रणजीत सिंह, गुरजीत सिंह भी मौजूद रहे
Trending Videos
उन्होंने नगर वासियों से अपील की है कि अगर कोई भी प्रभात फेरी निकलवाना चाहता है तो गुरुद्वारा प्रबंधक से संपर्क कर सकता है। सुरजीत सिंह मलिकपुर ने बताया कि गुरुजी के चार साहिबजादे और माता गुजरी जी की शहादत को नमन करने के लिए हर साल शहीदी जोड़ मेला श्री फतेहगढ़ साहिब में लगता है। दूर दराज से संगत शहीदी दिवस में शीश नमन करने के लिए पहुंचती है। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने जब श्री आनंदपुर किला छोड़ा तो उनका परिवार सिरसा नदी पर बिछुड़ गया। बड़े दो साहिबजादे गुरु जी के साथ रह गए और छोटे दो साहिबजादे माता गुजरी के साथ रह गए।
विज्ञापन
विज्ञापन
बड़े साहिबजादे मुगलों के साथ हुए चमकौर साहिब में जंग के दौरान शहीद हो गए थे। उन्होंने कहा कि 1705 में मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादे 9 साल के बाबा जोरावर सिंह और 7 साल के बाबा फतेह सिंह के साथ माता गुजरी को गांव सहेड़ी के पास पकड़ कर उन्हें फतेहगढ़ साहिब ले जाया गया और वहां इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया, लेकिन साहिबजादे ने मना कर दिया। इस पर माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को मुगलों ने यातना देने के लिए तीन दिन और दो रातें ठंडे बुर्ज में रखा था। साहिबजादों को दीवारों में चिनवा कर शहीद करने के बाद माता गुजरी ने भी प्राण त्याग दिए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद साहिबजादों और माता गुजरी जी के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए मुगल कोई स्थान नहीं दे रहे थे। इस पर दीवान टोडरमल ने मुगलों से इनके संस्कार के लिए जगह मांगी तो उन्होंने सोने की मोहरें बिछाकर जमीन देने पे हामी भरी। इस पर दीवान टोडरमल ने हजारों सोने की मोहरों को बिछाकर दुनियां की सबसे कीमती जमीन खरीदी और तीनों का संस्कार फतेहगढ़ साहिब में किया था। इस अवसर पर सरदार मेजर सिंह, हेड ग्रंथि रणजीत सिंह, गुरजीत सिंह भी मौजूद रहे