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Kurukshetra News: पर्यावरण असंतुलन से बढ़ रहा प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट
सार
कुरुक्षेत्र में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों ने पराली जलाने और जहरीली गैसों को मुख्य कारण बताया है। इससे फसलों की पैदावार और खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है।
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कुरुक्षेत्र। धर्मनगरी की आबोहवा होने लगी प्रदूषित। संवाद
- फोटो : samvad
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विस्तार
कुरुक्षेत्र। हर साल 26 सितंबर को पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के बीच संबंधों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। जल व वायु प्रदूषण, खाद्य सुरक्षा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे मुद्दों का समाधान जन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन पर्यावरण का संतुलन निरंतर बिगड़ रहा है। इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बुधवार को एक्यूआई 141 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। सप्ताहभर में इसके 200 पार जाने की संभावना जताई जा रही है। यह अक्तूबर में हर साल 400 एक्यूआई तक पहुंच जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
वातावरण में अनेक जहरीली गैसें फैल रही हैं जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार पर्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 10 ये वो कण हैं जिनका व्यास 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है। ये कण हवा में ऑक्सीजन को प्रभावित करते हैं। 1 से 100 तक एयर क्वालिटी इंडेक्स अच्छा, 100 से 200 तक ठीक, 200 से 300 खराब, 300 से 400 बहुत खराब और 400 से 500 तक खतरनाक श्रेणी में आता है।
पराली जलाने से स्वास्थ्य पर होता है नुकसान
जिला अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट एंड टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव चावला ने बताया कि पराली जलाने से जो धुआं निकलता है उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत को नुकसान हो रहा है। इससे अल्ट्रावायलेट किरणें जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं, सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है। इससे फेफड़ों की बीमारियां होने की संभावना ज्यादा बढ़ती है।
पराली जलाने से निकलने वाली कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड व अन्य जहरीली गैसों से स्वास्थ्य का नुकसान तो होता ही है, धरती का तापमान भी बढ़ता है जिसके बहुत से अन्य गंभीर दुष्परिणाम होते हैं। आग में कृषि में सहायक केंचुए, अन्य सूक्ष्म जीव भी नष्ट हो जाते हैं। इससे भविष्य में फसलों की पैदावार बड़ी मात्रा में घट सकती है और देश में खाद्य संकट खड़ा हो सकता है।
ऐसे कर सकते हैं सुधार
एकल उपयोग प्लास्टिक से बचें, सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करें और जूट या पेपर बैग जैसे विकल्पों का उपयोग करें, अपने घर के आंगन या बालकनी में पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें, कचरा कूड़ेदान में ही डालें और इधर-उधर न फैलाएं।
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वातावरण में अनेक जहरीली गैसें फैल रही हैं जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार पर्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 10 ये वो कण हैं जिनका व्यास 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है। ये कण हवा में ऑक्सीजन को प्रभावित करते हैं। 1 से 100 तक एयर क्वालिटी इंडेक्स अच्छा, 100 से 200 तक ठीक, 200 से 300 खराब, 300 से 400 बहुत खराब और 400 से 500 तक खतरनाक श्रेणी में आता है।
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पराली जलाने से स्वास्थ्य पर होता है नुकसान
जिला अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट एंड टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव चावला ने बताया कि पराली जलाने से जो धुआं निकलता है उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत को नुकसान हो रहा है। इससे अल्ट्रावायलेट किरणें जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं, सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है। इससे फेफड़ों की बीमारियां होने की संभावना ज्यादा बढ़ती है।
पराली जलाने से निकलने वाली कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड व अन्य जहरीली गैसों से स्वास्थ्य का नुकसान तो होता ही है, धरती का तापमान भी बढ़ता है जिसके बहुत से अन्य गंभीर दुष्परिणाम होते हैं। आग में कृषि में सहायक केंचुए, अन्य सूक्ष्म जीव भी नष्ट हो जाते हैं। इससे भविष्य में फसलों की पैदावार बड़ी मात्रा में घट सकती है और देश में खाद्य संकट खड़ा हो सकता है।
ऐसे कर सकते हैं सुधार
एकल उपयोग प्लास्टिक से बचें, सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करें और जूट या पेपर बैग जैसे विकल्पों का उपयोग करें, अपने घर के आंगन या बालकनी में पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें, कचरा कूड़ेदान में ही डालें और इधर-उधर न फैलाएं।

कुरुक्षेत्र। धर्मनगरी की आबोहवा होने लगी प्रदूषित। संवाद- फोटो : samvad