Haryana: पारलेजी बिस्किट में निकली मरी मक्खी, जिला उपोभक्ता कोर्ट ने कंपनी और रिलायंस स्मार्ट पर लगाया जुर्मान
बिस्किट में मरी मक्खी निकलने पर पारलेजी बिस्किट्स प्राइवेट लिमिटेड और रिलायंस स्मार्ट (रिलायंस रिटेल) को संयुक्त रूप से दोषी मानते हुए जुर्माना लगाया गया है।
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जिला उपभोक्ता आयोग ने बिस्किट में मरी मक्खी निकलने पर पारलेजी बिस्किट्स प्राइवेट लिमिटेड और रिलायंस स्मार्ट (रिलायंस रिटेल) को संयुक्त रूप से दोषी मानते हुए जुर्माना लगाया है। उपभोक्ता आयोग के सदस्य मुकेश शर्मा और राजेंद्र प्रसाद ने खरीदे गए बिस्किट की कीमत 216 रुपये, मानसिक पीड़ा, हानि और असुविधा की क्षतिपूर्ति के लिए 2,500 रुपये, केस खर्च के 1100 रुपये मिलाकर कुल 3816 रुपये शिकायतकर्ता को देने के आदेश दिए हैं।
सेक्टर-25 गढ़ी बोलनी रोड रेवाड़ी निवासी रमन कुमार ने उपभोक्ता आयोग को दी शिकायत में कहा था कि 12 मार्च 2024 को उन्होंने रिलायंस स्मार्ट बीएमजी मॉल से घरेलू सामान लिया था। इसमें पारलेजी गोल्ड 1 किलो (126 रुपये) और पारलेजी ग्लूकोज बिस्किट (90 रुपये) शामिल था।
घर पर उन्होंने पैकेट खोला तो एक बिस्किट में मरी मक्खी चिपकी हुई निकली। इससे न सिर्फ परिवार के लोगों की तबीयत खराब हुई बल्कि उनकी शाकाहारी भावनाओं को भी ठेस पहुंची। इसके बाद उन्होंने पारलेजी और रिलायंस स्मार्ट के खिलाफ पांच लाख क्षतिपूर्ति और 25 हजार मुकदमा खर्च की मांग करते हुए शिकायत दी।
पारलेजी कंपनी और रिलायंस ने दिया यह तर्क
अपना बचाव करते हुए पारलेजी कंपनी ने जवाब में कहा, उनका उत्पाद एफएसएसएआई प्रमाणित और सुरक्षित है। यदि पैकेट में कोई खराबी आई है तो वह परिवहन के दौरान सील ढीली होने से हो सकती है। इसके लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं है। दूसरी तरफ, रिलायंस स्मार्ट ने कहा, वह केवल रिटेलर है और उसने पैकेट उपभोक्ता को सील हालत में दिया था। लिहाजा, उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं बनती।
आयोग ने दोनों के तर्क किए खारिज
उपभोक्ता आयोग ने दोनों पक्षों के तर्क खारिज करते हुए कहा, शिकायतकर्ता की तरफ से प्रस्तुत फोटो और पैकेट में स्पष्ट रूप से मक्खी दिख रही है। दोनों विपक्षी पक्ष कोई भी सबूत पेश नहीं कर पाए कि उत्पाद में दोष नहीं था। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार निर्माता और रिटेलर दोनों सप्लाई चेन का हिस्सा होने के कारण संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। इसलिए दोनों पर एक साथ जुर्माना लगाया जाता है।
45 दिन में जुर्माना नहीं दिया तो होगी कार्रवाई
आयोग ने कहा कि आदेश की तारीख से 45 दिनों के अंदर जुर्माना नहीं भरा गया तो मुआवजे की रकम पर आदेश की तिथि से वसूली तक 9% सालाना दर से ब्याज लगेगा। आयोग के आदेश का अगर पालन नहीं किया जाता है तो शिकायत करने वाला कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के सेक्शन 71 के तहत एग्जीक्यूशन पिटीशन फाइल करने का हकदार होगा। ऐसी स्थिति में दूसरी पार्टियों पर उस एक्ट के सेक्शन 72 के तहत मुकदमा भी चलाया जा सकता है। इसमें तीन साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।