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Sirsa News: कलयुग के आगमन एवं राजा परीक्षित का वृतांत सुनाया
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ओढ़ा। कथावाचन करते शास्त्री जयदेव। (संवाद)
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ओढां। गांव रोहिड़ांवाली के निकट नेशनल हाईवे के किनारे स्थित बेसहारा गोमाता अस्पताल में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत कर कथा का लाभ उठाया। इस अवसर पर कथावाचक शास्त्री जयदेव दाधीच ने कथा में कलयुग के आगमन एवं राजा परीक्षित का वृतांत सुनाया।
कथावाचक ने सुनाया कि जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त कर वैकुंठ गमन किया तो उसी समय द्वापरयुग का अंत और कलयुग का प्रारंभ हो गया। श्रीकृष्ण के जाने के बाद पांडवों ने अपना संपूर्ण राज पाट अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को सौंप दिया। एक बार राजा परीक्षित शिकार करते हुए जा रहे थे। उसी समय उन्हें कलयुग दिखाई दिया।
जब राजा परीक्षित ने कलयुग को मारना चाहा तो कलयुग ने राजा परीक्षित से क्षमा याचना करते हुए उनसे पृथ्वी पर रहने के लिए जगह मांगी। इस पर राजा परीक्षित ने कलयुग को पृथ्वी पर जुआ (असत्य), शराब (मद), महिला (काम), मांस (क्रोध) व स्वर्ण (सोने) के रूप में 5 स्थान दिए। कलयुग अदृश्य रूप से राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा और इस तरह पृथ्वी पर कलयुग का पूरी तरह आगमन हुआ। जिसके फलस्वरूप अधर्म बढ़ने लगा।
कथावाचक ने सुनाया कि कलयुग के प्रभाव में आए राजा परीक्षित जब एक बार वन में शिकार हेतु गए थे तो उन्हें तेज प्यास लगी। जिसके बाद वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। शमीक ऋषि आश्रम में समाधि में लीन बैठे हुए थे। राजा परीक्षित ने ऋषि से कई बार जल मांगा, लेकिन समाधि में होने के कारण जब ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया तो राजा परीक्षित को ये अपना अपमान लगा और क्रोध में आकर उन्होंने पास ही पड़े एक मृत सर्प को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया।
जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने आश्रम में आकर ये सब देखा तो उन्होंने उसी समय राजा परीक्षित को श्राप दिया कि मृत्यु आज से 7वें नागराज तक्षक के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। राजा परीक्षित राजभवन पहुंचे जहां उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद शमीकऋषि के कहने पर राजा परीक्षित व्यास पुत्र शुकदेव मुनि के पास गए जहां राजा परीक्षित को शुकदेव जी ने 7 दिन तक लगातार भागवत कथा सुनाई थी। कथा सुनने पर राजा परीक्षित को जीवन का असली उद्देश्य समझ आया और मृत्यु का भय समाप्त हो गया। श्राप के अनुसार 7वें दिन तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट लिया और राजा परीक्षित को मोक्ष पद प्राप्त हुआ।
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कथावाचक ने सुनाया कि जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त कर वैकुंठ गमन किया तो उसी समय द्वापरयुग का अंत और कलयुग का प्रारंभ हो गया। श्रीकृष्ण के जाने के बाद पांडवों ने अपना संपूर्ण राज पाट अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को सौंप दिया। एक बार राजा परीक्षित शिकार करते हुए जा रहे थे। उसी समय उन्हें कलयुग दिखाई दिया।
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जब राजा परीक्षित ने कलयुग को मारना चाहा तो कलयुग ने राजा परीक्षित से क्षमा याचना करते हुए उनसे पृथ्वी पर रहने के लिए जगह मांगी। इस पर राजा परीक्षित ने कलयुग को पृथ्वी पर जुआ (असत्य), शराब (मद), महिला (काम), मांस (क्रोध) व स्वर्ण (सोने) के रूप में 5 स्थान दिए। कलयुग अदृश्य रूप से राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा और इस तरह पृथ्वी पर कलयुग का पूरी तरह आगमन हुआ। जिसके फलस्वरूप अधर्म बढ़ने लगा।
कथावाचक ने सुनाया कि कलयुग के प्रभाव में आए राजा परीक्षित जब एक बार वन में शिकार हेतु गए थे तो उन्हें तेज प्यास लगी। जिसके बाद वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। शमीक ऋषि आश्रम में समाधि में लीन बैठे हुए थे। राजा परीक्षित ने ऋषि से कई बार जल मांगा, लेकिन समाधि में होने के कारण जब ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया तो राजा परीक्षित को ये अपना अपमान लगा और क्रोध में आकर उन्होंने पास ही पड़े एक मृत सर्प को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया।
जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने आश्रम में आकर ये सब देखा तो उन्होंने उसी समय राजा परीक्षित को श्राप दिया कि मृत्यु आज से 7वें नागराज तक्षक के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। राजा परीक्षित राजभवन पहुंचे जहां उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद शमीकऋषि के कहने पर राजा परीक्षित व्यास पुत्र शुकदेव मुनि के पास गए जहां राजा परीक्षित को शुकदेव जी ने 7 दिन तक लगातार भागवत कथा सुनाई थी। कथा सुनने पर राजा परीक्षित को जीवन का असली उद्देश्य समझ आया और मृत्यु का भय समाप्त हो गया। श्राप के अनुसार 7वें दिन तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट लिया और राजा परीक्षित को मोक्ष पद प्राप्त हुआ।