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मनुष्य के लिए भजन संजीवनी के समान : साध्वी मनस्विनी
संवाद न्यूज एजेंसी, यमुना नगर
Updated Mon, 24 Nov 2025 02:43 AM IST
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साढौरा। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से रविवार को श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर में भजन संध्या का आयोजन किया गया। इस दौरान संस्थान के प्रचारकों ने भजनों की प्रस्तुति दी। साध्वी मनस्विनी भारती ने कहा कि भजन वह है जो दुख का भंजन करे। केवल भगवान के भजन में वह शक्ति है जो एक जीवन से हारे मनुष्य को भी पुनः संजीवनी प्रदान करती है।
एक स्वाभाविक सी बात है कि जब हम किसी का ध्यान व गुणगान करते हैं तो उसके गुण स्वतः ही हमारे भीतर उतर जाते हैं। इसलिए जब हम भजन संकीर्तन के द्वारा प्रभु का ध्यान और गुणगान करते हैं तो कदाचित प्रभु के गुण हमारे भीतर सहज रूप से उतर जाते हैं। परमात्मा प्रेम, दया, क्षमा, धैर्य जैसे सद्गुणों का सागर है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मज्ञान के माध्यम से परमात्मा को अपने अंतःकरण में प्रकाश स्वरूप में दर्शन करने के पश्चात ही हम वास्तविक रूप में परमात्मा के गुणों को जान सकते हैं। जैसे सफेद कपड़े पर रंग आसानी से चढ़ जाता है। इसी प्रकार पूर्ण गुरु की कृपा के द्वारा जब एक ब्रह्मज्ञानी साधक ध्यान साधना से अपने पूर्वजन्म के कर्म संस्कारों को ग्रहण करके अंतर आत्मा को परम पावन कर लेता है।
तभी बाहर से किया हुआ भजन संकीर्तन भी उसके लिए पूर्ण फलदायी होता है। जब हमारे पास कोई कठिन परिस्थिति आती है, तभी हम परमात्मा की शरण में आते हैं। संवाद
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एक स्वाभाविक सी बात है कि जब हम किसी का ध्यान व गुणगान करते हैं तो उसके गुण स्वतः ही हमारे भीतर उतर जाते हैं। इसलिए जब हम भजन संकीर्तन के द्वारा प्रभु का ध्यान और गुणगान करते हैं तो कदाचित प्रभु के गुण हमारे भीतर सहज रूप से उतर जाते हैं। परमात्मा प्रेम, दया, क्षमा, धैर्य जैसे सद्गुणों का सागर है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मज्ञान के माध्यम से परमात्मा को अपने अंतःकरण में प्रकाश स्वरूप में दर्शन करने के पश्चात ही हम वास्तविक रूप में परमात्मा के गुणों को जान सकते हैं। जैसे सफेद कपड़े पर रंग आसानी से चढ़ जाता है। इसी प्रकार पूर्ण गुरु की कृपा के द्वारा जब एक ब्रह्मज्ञानी साधक ध्यान साधना से अपने पूर्वजन्म के कर्म संस्कारों को ग्रहण करके अंतर आत्मा को परम पावन कर लेता है।
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तभी बाहर से किया हुआ भजन संकीर्तन भी उसके लिए पूर्ण फलदायी होता है। जब हमारे पास कोई कठिन परिस्थिति आती है, तभी हम परमात्मा की शरण में आते हैं। संवाद