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Kargil Vijay Diwas : बलिदानी प्रदीप कुमार से ली प्रेरणा, गांव के 12 युवा कर रहे सरहद की निगेहबानी; जानें

सोमदत्त शर्मा, संवाद न्यूज एजेंसी, सोलन Published by: अंकेश डोगरा Updated Sat, 26 Jul 2025 05:00 AM IST
सार

Kargil Vijay Diwas 2025 : नालागढ़ उपमंडल के रामशहर के पंदल गांव के 4 जेक राइफल के राइफलमैन प्रदीप कुमार (23) नौ जुलाई 1999 को बलिदान हो गए थे। उनसे प्रेरणा लेकर उनकी गांव के ही बारह युवा देश की सरहदों की रक्षा कर रहे हैं।
 

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Kargil Vijay Diwas Inspired by martyr Pradeep Kumar 12 youths of Pandal of Ramshahr guarding the border
कारगिल विजय दिवस/ बलिदानी प्रदीप - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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सोलन के रामशहर के पंदल के बलिदानी प्रदीप कुमार कारगिल युद्ध में देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे। आज उनसे प्रेरणा लेकर गांव के बारह युवा देश की सरहदों के निगेहबान बने हैं। गांव के 12 युवाओं ने प्रदीप कुमार से प्रेरणा ली और देश के लिए कुछ भी करने की ठानी और सेना में भर्ती हो गए। नालागढ़ उपमंडल के रामशहर के पंदल गांव के 4 जेक राइफल के राइफलमैन प्रदीप कुमार (23) नौ जुलाई 1999 को बलिदान हो गए थे। प्रदीप कुमार उस समय 20 आरआर यूनिट में कुपवाड़ा में तैनात थे। भारत-पाक युद्ध शुरू होने से परिजनों की बेटे की शादी के लिए की तैयारियां भी धरी की धरी रह गईं।

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घर में चल रही थी शादी की तैयारी, ताबूत में लौटे प्रदीप
शहीद प्रदीप कुमार की बहन जमना कौशिक ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान नौ जुलाई 1999 को उनके भाई ने देश के लिए कुर्बानी दी थी। उन्होंने कहा कि घर में भाई की शादी की तैयारियां चल रही थीं। भाई ताबूत में लिपटकर वापस आया। जमना ने बताया कि उनके जाने के बाद गांव के युवाओं ने उनसे प्रेरणा ली और आज गांव के 12 युवा देश सेवा के लिए सरहदों पर तैनात हैं। जब भी वह छुट्टियों में घर आते हैं तो उनके भाई की शहादत को याद करते हैं। जमना ने बताया कि उनके परिवार में भी देश सेवा का जज्बा पहले से ही है। उनके पिता जगन्नाथ भी सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और 1961 और 1965 की लड़ाई लड़ चुके हैं।

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नित्थर के 20 जवान सेना में
कारगिल युद्ध के दौरान कुल्लू से एकमात्र नित्थर उपतहसील के गांव शकरोली के बलिदानी डोला राम आज भी युवाओं के लिए हीरो हैं। उनके बलिदानी होने के बाद अब तक क्षेत्र से बीस युवा में सेना में जा चुके हैं। बलिदानी डोला राम की पत्नी प्रेमा देवी बताती हैं कि देश प्रेम उनकी नस-नस में भरा था और बलिदान होकर देश के लिए अपना कर्ज भी चुका गए। आज बलिदानी के बेटे अश्वनी कटोच और अंकुश कटोच अपना व्यवसाय कर रहे हैं। वे केंद्र सरकार से जो सुविधा मिल रही है, इससे संतुष्ट हैं। बलिदानी डोला राम की देश के प्रति समर्पण को भावना को देखते हुए नित्थर क्षेत्र से तब से लेकर अभी तक बीस से ज्यादा जवान सैनिक बन चुके हैं और अभी भी सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। क्षेत्र का हर युवा सेना में जाना चाहता है। डोला राम के छोटे भाई स्वर्ण कटोच का कहना है कि डोला राम अच्छे बॉक्सर थे। उस समय इतनी सुविधा गांव के स्कूल में नहीं थी। उनकी रुचि स्पोर्ट्स में बहुत थी। मैं खुद कबड्डी में स्टेट और नेशनल खेला हूं। माता का देहांत दो 2002 में हुआ। मुझे मेरे भाई की वजह से काफी सम्मान मिला है। डोला राम के चाचा के लड़के पूर्व सैनिक हीरा सिंह कटोच ने बताया कि बलिदानी डोला राम की रुचि सेना में जाने की थी। 
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