मनी लॉन्ड्रिंग मामला : सरीन के बाद डॉ. कोमल पर गिरफ्तारी की तलवार, अदालत ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर निशांत सरीन की गिरफ्तारी के बाद अब उनकी करीबी सहयोगी डॉ. कोमल खन्ना की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। निशांत सरीन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने, रिश्वत और जालसाजी के आरोप लगे हैं। पढ़ें पूरी खबर...
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मनी लॉन्ड्रिंग मामले में नया मोड़ आया है। असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर निशांत सरीन की गिरफ्तारी के बाद अब उनकी करीबी सहयोगी डॉ. कोमल खन्ना की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। विशेष न्यायालय ने साफ कहा है कि धन शोधन का पूरा ट्रेल खंगालने के लिए आरोपी की हिरासत जरूरी है। इसी कड़े रुख के चलते अदालत ने कोमल खन्ना की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। इस फैसले के बाद उनकी गिरफ्तारी लगभग तय मानी जा रही है।
निशांत सरीन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने, रिश्वत और जालसाजी के आरोप लगे हैं। ईडी की जांच में सामने आया है कि हरियाणा के पंचकूला निवासी डॉ. कोमल खन्ना मेसर्स जेनिया फार्मास्यूटिकल्स फर्म की कानूनी प्रतिनिधि और सार्वजनिक चेहरा थीं, लेकिन कंपनी को पर्दे के पीछे से सह-आरोपी निशांत सरीन चलाता था। इसी फर्म को कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की फ्रंट एंटिटी के रूप में इस्तेमाल किया गया।
ईडी ने कोर्ट को बताया कि डॉ. खन्ना की फर्म के बैंक खातों और वित्तीय लेन-देन में भूमिका है। इसके जरिए मनी लॉन्ड्रिंग का पैसा दूसरे खातों में स्थानांतरित किया गया। विशेष न्यायाधीश डॉ. दविंदर कुमार ने माना कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। इस चरण पर अग्रिम जमानत देने से जांच प्रभावित हो सकती है। उन्होंने ये भी कहा कि अग्रिम जमानत के लिए द्वैत्य शर्तें पूरी नहीं हुई हैं। साथ ही, स्वास्थ्य या व्यक्तिगत परिस्थितियां राहत का आधार नहीं बन सकतीं।
ईडी के मुताबिक मेसर्स जेनिया फार्मास्यूटिकल्स के खातों में कई बार भारी नकद जमा किए गए। लाखों रुपये निजी और पारिवारिक खातों में ट्रांसफर किए गए। कोमल खन्ना की दूसरी कंपनी निया फार्मा के खातों में भी संदिग्ध लेन-देन पाए गए। खातों की अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता डॉ. खन्ना ही थीं। सरोज सरीन के खाते में कई बार पैसे जमा हुए, जिनमें एक बार 36 लाख रुपये नकद जमा किए गए।
डिजिटल साक्ष्यों और वित्तीय रिकॉर्ड ने दोनों आरोपियों के बीच गहरी मिलीभगत की ओर संकेत दिया है। ईडी का दावा है कि फर्म ने बाजार में दबाव बनाकर अन्य फार्मा कंपनियों को कम कीमतों पर सामान बेचने के लिए मजबूर किया। इसके बाद अवैध कमाई को अलग-अलग बैंक खातों में लेयरिंग के जरिए घुमाया जाता था।