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Rampur Bushahar News: सूखे से पांच हजार करोड़ रुपये की बागवानी पर संकट के बादल
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ड्राई स्पेल के चलते चिलिंग ऑवर्स पूरे होने पर संशय, दिसंबर में बर्फबारी जरूरी
मिट्टी में नमी की कमी के कारण सेब के पेड़ों में फंगल इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ा
संवाद न्यूज एजेंसी
चौपाल (रोहड़ू)। अगस्त के आखिरी हफ्ते के बाद यानी साढ़े तीन महीने से भी अधिक समय से आसमान से एक बूंद भी पानी नहीं टपका है। सूखे की इस गंभीर स्थिति के चलते प्रदेश का पांच हजार करोड़ रुपये का बागवानी कारोबार संकट पर पहुंच गया है। पहाड़ भी सूखे और बंजर नजर आने लगे हैं।
सेब के पौधों के लिए आवश्यक चिलिंग ऑवर्स (सर्द घंटों) की सख्त जरूरत होती है, जोकि दिसंबर और जनवरी की शुरुआत में बर्फबारी से ही पूरे हो पाते हैं। लगातार चल रहे ड्राई स्पेल के चलते चिलिंग ऑवर्स पूरे होने पर भी संशय पैदा हो गया है। मिट्टी में नमी की कमी के कारण पेड़ों में फंगल इंफेक्शन और अन्य बीमारियां फैलने का भी खतरा बढ़ गया है। यही नहीं जमीन के पूरी तरह खुश्क होने की वजह से बगीचों में तौलिए करने और नई प्लांटेशन के कार्यों पर भी पूरी तरह ब्रेक लग चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही स्थिति बनी रही, तो आगामी सीजन में सेब के उत्पादन और गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी। इससे बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा रबी की फसलों विशेषकर गेहूं की बुआई नमी न होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई है। कई क्षेत्रों में किसान गेहूं के बजाय जौ या चारे की फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
उधर, विशेषज्ञों ने बागवानों को सलाह दी है कि सूखे के इस दौर से बचने के लिए मल्चिंग के जरिए मिट्टी की नमी को बनाए रखें और पाले के प्रभाव को कम करने के लिए शाम के समय हल्की सिंचाई करें। वर्तमान में सूखे की यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेतों के रूप में देखी जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
चौपाल के बागवानी विषयवाद विशेषज्ञ सुरेंद्र जस्टा ने बताया कि जब तक जमीन में पर्याप्त नमी नहीं होती तब तक बागवानों को तौलिये नहीं करने चाहिए। तौलिये करने से जमीन की बची हुई नमी भी खत्म हो जाती है। पौधे पौषक तत्व ठीक से नहीं ले पाते। अधिकांश पौधे सुप्तावस्था में जा चुके हैं, इसलिए बागवान प्रूनिंग और पेस्टिंग का कार्य कर सकते हैं, लेकिन चूना जमीन में नमी आने पर ही डालें। बगीचों में नमी बचाने के लिए मिट्टी पर घास और पत्ते डाल कर मल्चिंग करें। बरसात में अल्टेरनेरिया और मारसोनीना बीमारी की वजह से पत्तों में दाग भी आ गए थे, अब ये सभी पत्ते झड़ चुके हैं। इन पत्तों को एक जगह गड्ढे में एकत्रित करके उन पर दस किलो यूरिया दो सौ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़क दें, जिससे यह जल्दी सड़ जाएंगे। इससे अगले साल की संभावित बीमारियों से बचाव हो सकेगा।
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मिट्टी में नमी की कमी के कारण सेब के पेड़ों में फंगल इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ा
संवाद न्यूज एजेंसी
चौपाल (रोहड़ू)। अगस्त के आखिरी हफ्ते के बाद यानी साढ़े तीन महीने से भी अधिक समय से आसमान से एक बूंद भी पानी नहीं टपका है। सूखे की इस गंभीर स्थिति के चलते प्रदेश का पांच हजार करोड़ रुपये का बागवानी कारोबार संकट पर पहुंच गया है। पहाड़ भी सूखे और बंजर नजर आने लगे हैं।
सेब के पौधों के लिए आवश्यक चिलिंग ऑवर्स (सर्द घंटों) की सख्त जरूरत होती है, जोकि दिसंबर और जनवरी की शुरुआत में बर्फबारी से ही पूरे हो पाते हैं। लगातार चल रहे ड्राई स्पेल के चलते चिलिंग ऑवर्स पूरे होने पर भी संशय पैदा हो गया है। मिट्टी में नमी की कमी के कारण पेड़ों में फंगल इंफेक्शन और अन्य बीमारियां फैलने का भी खतरा बढ़ गया है। यही नहीं जमीन के पूरी तरह खुश्क होने की वजह से बगीचों में तौलिए करने और नई प्लांटेशन के कार्यों पर भी पूरी तरह ब्रेक लग चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही स्थिति बनी रही, तो आगामी सीजन में सेब के उत्पादन और गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी। इससे बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा रबी की फसलों विशेषकर गेहूं की बुआई नमी न होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई है। कई क्षेत्रों में किसान गेहूं के बजाय जौ या चारे की फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
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उधर, विशेषज्ञों ने बागवानों को सलाह दी है कि सूखे के इस दौर से बचने के लिए मल्चिंग के जरिए मिट्टी की नमी को बनाए रखें और पाले के प्रभाव को कम करने के लिए शाम के समय हल्की सिंचाई करें। वर्तमान में सूखे की यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेतों के रूप में देखी जा रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
चौपाल के बागवानी विषयवाद विशेषज्ञ सुरेंद्र जस्टा ने बताया कि जब तक जमीन में पर्याप्त नमी नहीं होती तब तक बागवानों को तौलिये नहीं करने चाहिए। तौलिये करने से जमीन की बची हुई नमी भी खत्म हो जाती है। पौधे पौषक तत्व ठीक से नहीं ले पाते। अधिकांश पौधे सुप्तावस्था में जा चुके हैं, इसलिए बागवान प्रूनिंग और पेस्टिंग का कार्य कर सकते हैं, लेकिन चूना जमीन में नमी आने पर ही डालें। बगीचों में नमी बचाने के लिए मिट्टी पर घास और पत्ते डाल कर मल्चिंग करें। बरसात में अल्टेरनेरिया और मारसोनीना बीमारी की वजह से पत्तों में दाग भी आ गए थे, अब ये सभी पत्ते झड़ चुके हैं। इन पत्तों को एक जगह गड्ढे में एकत्रित करके उन पर दस किलो यूरिया दो सौ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़क दें, जिससे यह जल्दी सड़ जाएंगे। इससे अगले साल की संभावित बीमारियों से बचाव हो सकेगा।