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Una News: महिला समूहों के तैयार उत्पाद बाजार तक नहीं पहुंच सके
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धरातल पर नहीं हो रहा महिलाओं का सशक्तीकरण
दो हजार प्रति महीना होती है आय : रंजू राणा
देसी घी से बनाती हैं मल्टीग्रेन आटे के लड्डू और बिस्किट
पीएनबी आरसेटी से प्रशिक्षण मिलने के बाद कोई नहीं पूछता
संवाद न्यूज एजेंसी
नारी (ऊना)। राष्ट्रीय आजीविका मिशन और पीएनबी आरसेटी की ओर से प्रशिक्षित महिलाओं को घर में तैयार किए गए उत्पादों को बेचने के लिए अभी तक कोई प्रभावी मंच नहीं मिल पाया है। जिले में बड़ी संख्या में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) तो बन रहे हैं, लेकिन प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। नतीजतन वे स्वरोजगार शुरू कर लेने के बाद भी बाजार तक नहीं पहुंच पातीं।
सुनहरा गांव की रंजू राणा बताती हैं कि उन्होंने पीएनबी आरसेटी के माध्यम से मल्टीग्रेन आटे के लड्डू और बिस्किट बनाने का काम शुरू किया है। ये उत्पाद देसी घी में तैयार किए जाते हैं। मल्टीग्रेन के लिए बाजरा, रागी, जौं, सोयाबीन और काले चने खरीदकर उनसे आटा तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण कच्चे माल की लागत अधिक आती है। मल्टीग्रेन, आटा तैयार होने पर इसकी कीमत 250 से 300 रुपये प्रति किलो पड़ती है।
रंजू के अनुसार एक किलो लड्डू या बिस्किट बनाने में लगभग 300 ग्राम देसी घी की आवश्यकता होती है, जिसकी कीमत 1,000 रुपये प्रति किलो है। इस प्रकार कुल लागत जोड़ने पर उनके ब्रांडेड लड्डू लगभग 600 रुपये प्रति किलो पड़ते हैं। लेकिन, इतनी लागत के बावजूद उन्हें उत्पाद बेचने में भारी कठिनाई हो रही है।
स्थानीय स्तर पर बहुत कम बिक्री होती है, वह भी केवल नवंबर से जनवरी के बीच। विभाग और सरकार की ओर से न तो कोई अग्रिम बुकिंग होती है और न ही बिक्री के लिए कोई मंच उपलब्ध कराया जाता है।
रंजू बताती हैं कि उनके समूह में 20 महिलाएं जुड़ी हैं और सभी की समस्या एक जैसी है। वह कहती हैं -प्रशासन हमें बिक्री का मंच दे और उत्पादन के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराए। अभी तीन महीनों में हमारी बचत मुश्किल से 2,000 रुपये प्रति माह हो पाती है, जो किराया व अन्य खर्चों में ही निकल जाती है। महिलाओं का सशक्तीकरण कागजों में तो दिखता है, लेकिन धरातल पर नहीं। जब तक सरकार वास्तविक मदद नहीं करेगी, स्वरोजगार पाना मुश्किल है। वरना सशक्तीकरण के बजाय महिलाएं और अधिक शक्तिहीन हो जाएंगी।
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देसी घी से बनाती हैं मल्टीग्रेन आटे के लड्डू और बिस्किट
पीएनबी आरसेटी से प्रशिक्षण मिलने के बाद कोई नहीं पूछता
संवाद न्यूज एजेंसी
नारी (ऊना)। राष्ट्रीय आजीविका मिशन और पीएनबी आरसेटी की ओर से प्रशिक्षित महिलाओं को घर में तैयार किए गए उत्पादों को बेचने के लिए अभी तक कोई प्रभावी मंच नहीं मिल पाया है। जिले में बड़ी संख्या में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) तो बन रहे हैं, लेकिन प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। नतीजतन वे स्वरोजगार शुरू कर लेने के बाद भी बाजार तक नहीं पहुंच पातीं।
सुनहरा गांव की रंजू राणा बताती हैं कि उन्होंने पीएनबी आरसेटी के माध्यम से मल्टीग्रेन आटे के लड्डू और बिस्किट बनाने का काम शुरू किया है। ये उत्पाद देसी घी में तैयार किए जाते हैं। मल्टीग्रेन के लिए बाजरा, रागी, जौं, सोयाबीन और काले चने खरीदकर उनसे आटा तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण कच्चे माल की लागत अधिक आती है। मल्टीग्रेन, आटा तैयार होने पर इसकी कीमत 250 से 300 रुपये प्रति किलो पड़ती है।
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रंजू के अनुसार एक किलो लड्डू या बिस्किट बनाने में लगभग 300 ग्राम देसी घी की आवश्यकता होती है, जिसकी कीमत 1,000 रुपये प्रति किलो है। इस प्रकार कुल लागत जोड़ने पर उनके ब्रांडेड लड्डू लगभग 600 रुपये प्रति किलो पड़ते हैं। लेकिन, इतनी लागत के बावजूद उन्हें उत्पाद बेचने में भारी कठिनाई हो रही है।
स्थानीय स्तर पर बहुत कम बिक्री होती है, वह भी केवल नवंबर से जनवरी के बीच। विभाग और सरकार की ओर से न तो कोई अग्रिम बुकिंग होती है और न ही बिक्री के लिए कोई मंच उपलब्ध कराया जाता है।
रंजू बताती हैं कि उनके समूह में 20 महिलाएं जुड़ी हैं और सभी की समस्या एक जैसी है। वह कहती हैं -प्रशासन हमें बिक्री का मंच दे और उत्पादन के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराए। अभी तीन महीनों में हमारी बचत मुश्किल से 2,000 रुपये प्रति माह हो पाती है, जो किराया व अन्य खर्चों में ही निकल जाती है। महिलाओं का सशक्तीकरण कागजों में तो दिखता है, लेकिन धरातल पर नहीं। जब तक सरकार वास्तविक मदद नहीं करेगी, स्वरोजगार पाना मुश्किल है। वरना सशक्तीकरण के बजाय महिलाएं और अधिक शक्तिहीन हो जाएंगी।