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Una News: जैविक कीटनाशक दवाई तैयार कर दिखाया स्वरोजगार का सूरज
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बंगाणा की ग्राम पंचायत बुधान की कविता कीटनाशक दवाइयों के साथ। संवाद
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ग्राम पंचायत बुधान की कविता हर माह कमा रहीं 20 से 25 हजार
नीम के पत्तों और गाय के मलमूत्र से तैयार किया है जैविक कीटनाशक
50 महिलाओं को भी दिया प्रशिक्षण
संवाद न्यूज एजेंसी
नारी (ऊना)। बंगाणा के तहत आने वाली ग्राम पंचायत बुधान की कविता जैविक कीटनाशक दवाई घर में तैयार कर स्वरोजगार का रास्ता प्रशस्त कर रही हैं। मेहनत के दम पर कविता ने यह मुकाम हासिल किया है। वह न केवल खुद आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि क्षेत्र की 50 से अधिक महिलाओं को भी इस तकनीक का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। हर माह 20 से 25 हजार रुपये की आमदन हो रही है। इसके साथ ही वह जैविक खेती भी कर रही हैं, जिसमें वह उसी दवाई का छिड़काव करती हैं।
ग्रेजुएट कविता ने सरकारी योजनाओं के तहत यह तकनीक सीखी है और अब वह अपनी बनाई दवाई का इस्तेमाल जैविक खेती में कर रही हैं। उन्होंने दो साल पहले जैविक खेती शुरू की थी और अब उनका कहना है कि इस पद्धति से प्राप्त अनाज महंगा तो पड़ता है, लेकिन इसमें किसी भी प्रकार की रासायनिक दवाई या यूरिया का उपयोग नहीं होता है। कविता की बनाई जैविक कीटनाशक दवाई स्थानीय स्तर पर भी बिक रही है, जिससे उन्हें अच्छा लाभ हो रहा है।
जैविक कीटनाशक दवाई बनाने की विधि
कविता बताती हैं कि नीम के पत्ते निशुल्क मिल जाते हैं। सबसे पहले इन पत्तों को उबालकर एकत्रित किया जाता है, फिर इन पत्तों को कूटकर पानी निचोड़ा जाता है। इसके बाद गाय का मूत्र और गोबर को तरल रूप में छानकर एकत्रित किया जाता है। इस मिश्रण को बोतलों में भरकर पंप के माध्यम से फसलों पर छिड़काव किया जाता है। इस दवाई से फसल कीड़े से बच जाती है।
कविता ने बताया कि घर पर तैयार की गई इस दवाई की उत्पादन लागत नगण्य होती है और प्रति बोतल इसकी बिक्री 25 से 30 रुपये तक की जाती है। इस प्रक्रिया से कविता ने न केवल अपने परिवार को आर्थिक सहायता दी है, बल्कि आसपास के किसानों और महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।
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नीम के पत्तों और गाय के मलमूत्र से तैयार किया है जैविक कीटनाशक
50 महिलाओं को भी दिया प्रशिक्षण
संवाद न्यूज एजेंसी
नारी (ऊना)। बंगाणा के तहत आने वाली ग्राम पंचायत बुधान की कविता जैविक कीटनाशक दवाई घर में तैयार कर स्वरोजगार का रास्ता प्रशस्त कर रही हैं। मेहनत के दम पर कविता ने यह मुकाम हासिल किया है। वह न केवल खुद आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि क्षेत्र की 50 से अधिक महिलाओं को भी इस तकनीक का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। हर माह 20 से 25 हजार रुपये की आमदन हो रही है। इसके साथ ही वह जैविक खेती भी कर रही हैं, जिसमें वह उसी दवाई का छिड़काव करती हैं।
ग्रेजुएट कविता ने सरकारी योजनाओं के तहत यह तकनीक सीखी है और अब वह अपनी बनाई दवाई का इस्तेमाल जैविक खेती में कर रही हैं। उन्होंने दो साल पहले जैविक खेती शुरू की थी और अब उनका कहना है कि इस पद्धति से प्राप्त अनाज महंगा तो पड़ता है, लेकिन इसमें किसी भी प्रकार की रासायनिक दवाई या यूरिया का उपयोग नहीं होता है। कविता की बनाई जैविक कीटनाशक दवाई स्थानीय स्तर पर भी बिक रही है, जिससे उन्हें अच्छा लाभ हो रहा है।
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जैविक कीटनाशक दवाई बनाने की विधि
कविता बताती हैं कि नीम के पत्ते निशुल्क मिल जाते हैं। सबसे पहले इन पत्तों को उबालकर एकत्रित किया जाता है, फिर इन पत्तों को कूटकर पानी निचोड़ा जाता है। इसके बाद गाय का मूत्र और गोबर को तरल रूप में छानकर एकत्रित किया जाता है। इस मिश्रण को बोतलों में भरकर पंप के माध्यम से फसलों पर छिड़काव किया जाता है। इस दवाई से फसल कीड़े से बच जाती है।
कविता ने बताया कि घर पर तैयार की गई इस दवाई की उत्पादन लागत नगण्य होती है और प्रति बोतल इसकी बिक्री 25 से 30 रुपये तक की जाती है। इस प्रक्रिया से कविता ने न केवल अपने परिवार को आर्थिक सहायता दी है, बल्कि आसपास के किसानों और महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।