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कराहते पहाड़ : अवैज्ञानिक तरीके से खनन, बिना योजना बनी सड़कों और अवैध डंपिंग ने मचाई सराज में तबाही

संवाद न्यूज एजेंसी, थुनाग (मंडी)। Published by: अंकेश डोगरा Updated Tue, 16 Sep 2025 05:00 AM IST
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सार

Himachal Disaster : 30 जून को आई प्राकृतिक आपदा ने मंडी के सराज में ऐसा तबाही मचाई कि 21 लोग अभी भी लापता हैं। ऐसा आपदा की वजह रही अवैज्ञानिक खनन, बिना योजना के बनी सड़कें और अवैध डंपिंग। पढ़ें पूरी खबर...

Unscientific methods caused devastation unplanned shops and illegal liquor caused havoc in the Saraj
सराड घाटी में आपदा द्वारा मचाई गई तबाही। - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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विस्तार
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सराज क्षेत्र में 30 जून को आई प्राकृतिक आपदा से हुए विनाश ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसके पीछे प्राकृतिक कारणों से ज्यादा मानवीय लापरवाही जिम्मेदार रही। अवैज्ञानिक खनन, बिना योजना के बनी सड़कें और अवैध डंपिंग ने पारिस्थितिक संतुलन को इतना बिगाड़ा कि बादल फटने, भूस्खलन जैसी घटनाओं ने सात लोगों की जान ले ली। 21 लोग अभी भी लापता हैं। आपदा ने सैकड़ों घरों, दुकानों, स्कूलों व सड़कों को मलबे में बदल दिया।

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थुनाग, बगस्याड़, जरोल, कुथाह, बूंगरैलचौक और पांडवशीला जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, जहां दो महीने बाद भी 266 किलोमीटर सड़कें बंद पड़ी हैं। आलू, गोभी, मटर व सेब जैसे उत्पाद खेतों में सड़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल में तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया, जिससे मानसून की तीव्रता बढ़ी, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप ने इसे और घातक बना दिया। सराज घाटी में वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) 1980 की अवहेलना कर 181 लंबी 55 सड़कें बनाई गईं, जिनके लिए हजारों पेड़ काटे गए और मलबा नदियों-नालों में डंप किया गया। इससे प्राकृतिक जल स्रोत अवरुद्ध हुए, भूमिगत दबाव बढ़ा और फ्लैश फ्लड का खतरा बढ़ गया। अधिवक्ता नरेंद्र रेड्डी ने आरोप लगाया कि अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद 53 सड़कों के प्रस्ताव मंजूरी के इंतजार में हैं। केवल दो को स्वीकृति मिली। इन सड़कों का निर्माण एफसीए नियमों के बिना हुआ, अब पुनर्निर्माण मुश्किल है।

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स्थानीय इनोवेटर ओम प्रकाश ठाकुर ने बताया कि सड़क निर्माण और डंपिंग से प्राकृतिक स्रोत बंद हो गए, जिससे पानी का प्राकृतिक बहाव रुक गया और भूस्खलन हुआ। कशमल की खोदाई से बागाचनोगी उपतहसील की सात पंचायतों में भूस्खलन बढ़ा। चिऊणी की मटर वैली में खरपतवार नाशक स्प्रे से घास-झाड़ियां नष्ट हुईं, मिट्टी भुरभुरी हो गई। बगस्याड़ के दिवांशु ठाकुर ने 20-22 करोड़ के ग्रीनहाउस फूल उद्योग से गैस उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन का कारक बताया। सड़कों पर जल निकासी नालियों का अभाव भी भूस्खलन का कारण बना।

खड्डों और नदी किनारे बन गईं बस्तियां, पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करना पड़ेगा महंगा
केंद्रीय विवि जम्मू-कश्मीर के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सुनील धर ने कहा कि अनियोजित सड़कें और अपर्याप्त रिटेनिंग वॉल ने पहाड़ों की स्थिरता कमजोर की। खड्डों और नदी किनारों पर असुरक्षित बस्तियां बसीं, वहां पहले घराटों की जगह थी, लेकिन इस जमीन पर सरकार ने नियंत्रण नहीं किया। हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने चेताया कि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करने से ऐसी त्रासदियां बढ़ेंगी।

वैज्ञानिक तरीके से निर्माण और वनीकरण पर जोर
डीएफओ नाचन सुरेंद्र कश्यप ने प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण, वैज्ञानिक तरीके से निर्माण और वनीकरण पर जोर दिया। आपदा प्रभावित जंगलों में नई प्लांटेशन की योजना है।
 

कई गांवों में भू धंसाव, पराशर भी अछूता नहीं
बालचौकी उपमंडल के अधिकतर गांवों में भू धंसाव हो रहा है। इससे घरों में दरारें आ गई हैं। पानी की सही निकासी न होने से पहाड़ दरक रहे हैं। पराशर इलाका भी इससे अछूता नहीं है। पराशर में हो रहे धंसाव ने भी कई गांवों को खतरे में डाल दिया है। जोगिंद्रनगर के कुडनी गांव में भी भूस्खलन ने कई परिवारों को बेघर कर दिया है। इसी तरह धर्मपुर विस क्षेत्र के कई गांवों में भी यही हाल है। 2023 के बाद 2025 में आपदा के कहर से हजारों परिवार प्रभावित हुए हैं।

भू धंसाव व भूस्खलन की चपेट में जिले के 72 गांव, होगी जांच
जिले के विभिन्न उपमंडलों में 72 गांव भूस्खलन और जमीन धंसने जैसी घटनाओं की चपेट में हैं। आपदाओं की रोकथाम व वैज्ञानिक आकलन के लिए इन स्थानों को भूवैज्ञानिक जांच के लिए चिह्नित किया गया है। बल्ह, बालीचौकी, धर्मपुर, गोहर, जोगिंद्रनगर, करसोग, कोटली, पधर, सदर, सरकाघाट, सुंदरनगर और थुनाग उपमंडलों के तहत यह गांव प्रस्तावित किए गए हैं। इनमें कई स्थानों पर लगातार भूस्खलन, बड़ी दरारें और भूमि धंसाव की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनके सही कारण पता लगाने के लिए यह जांच करवाई जाएगी।
 
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