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सेना कमांडर का दावा- कश्मीर में टूट गई है आतंकवाद की कमर, अब राजनेताओं पर हालात सुधारने का दारोमदार

टीम डिजिटल/अमर उजाला, नई दिल्ली Updated Wed, 27 Sep 2017 06:39 PM IST
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Back of armed militancy broken, time ripe for political initiative, says Gen BS Raju
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सेना ने कहा है कि कश्मीर में सशस्त्र आतंकवाद की कमर पूरी तरह टूट चुकी है और दशकों पुराने इस मसले का स्थायी समाधान सुनिश्चित करने के लिए विलक्षण ‘राजनीतिक दूरदर्शिता’ दिखाने की जरूरत है। घाटी की जनता हिंसा के दुष्चक्र से ऊब गई और इससे छुटकारा चाहती है।
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दक्षिण कश्मीर के पांच जिलों में आतंकरोधी अभियान संचालित करने वाली विक्टर फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल बीएस राजू ने कहा कि अब घाटी में अलगाववादियों और सशस्त्र आतंकवादियों के लिए कोई जगह नहीं बची है।
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कहीं भी उनका नियंत्रण नहीं रह गया है। इस समय उनकी सारी जुगत अब खुद को महफूज रखने में लगी हुई है। अब वे सेना पर सीधा हमला नहीं कर रहे हैं बल्कि आसान टारगेट को निशाना बना रहे हैं। मसलन, मुखबिरी के शक में आम लोगों की हत्या कर रहे हैं।

मेजर जनरल राजू ने कहा कि अब उनका सारा ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि आतंकी संगठनों में नई भर्तियां न होने पाएं। साथ ही लोगों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि सेना उनकी मदद के लिए तैयार है।

इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में खास कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। घाटी के लोग इस मसले का हल चाहते हैं। वे हिंसा और प्रतिहिंसा के दौर से बाहर आने के लिए छटपटा रहे हैं।

घाटी के हालात उस मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां राजनीतिक पहल की शुरुआत की जा सकती है। यह देखकर अच्छा लग रहा है कि राजनीतिक संकेत मिलने शुरू हो गए हैं।

उनका इशारा गृह मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान की ओर था जिसमें उन्होंने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए किसी से भी बातचीत करने का प्रस्ताव दिया है।

अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने इसका स्वागत भी किया है। घाटी में यहां से आगे का सफर केंद्र की राजनीतिक चतुराई और दूरदर्शिता पर निर्भर करेगा।

हमें दो टूक बात करनी होगी। लोगों को यह समझाना होगा की किसी भी सूरत में ‘आजादी’ संभव नहीं है, लेकिन संविधान के दायरे में कुछ भी मुमकिन है। अगर आप आजादी-आजादी चिल्लाते रहेंगे तो गुरबत के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

दक्षिण कश्मीर आतंकवाद का गढ़

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दक्षिण कश्मीर को आतंकियों का गढ़ माना जाता रहा है क्योंकि घाटी के उस हिस्से में पिछले साल सुरक्षा बलों पर सबसे ज्यादा हमले हुए हैं, लेकिन इस साल की शुरुआत से अब तक सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 73 आतंकी मारे जा चुके हैं जिनमें पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाले हिज्ब और लश्कर के कई सरगना भी शामिल हैं। माना जाता है कि अब उस इलाके में 120-150 आतंकी अब भी सक्रिय हैं।

मुख्यमंत्री भी सहमत
मालूम हो कि मंगलवार को राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कहा था कि घाटी में शांति के अंकुर फूट रहे हैं और उन्हें खाद एवं पानी देने की दरकार है। समस्या का समाधान निकालने का यही उपयुक्त समय है और केंद्र को सभी पक्षों से बातचीत शुरू करनी चाहिए। 
 

युवाओं में बढ़ती कट्टरता चिंता का विषय

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सेना ने कहा है कि घाटी में तेजी से सामान्य हो रहे हालात के बीच युवाओं में बढ़ती कट्टरता सबसे बड़ी चिंता के रूप में उभर कर सामने आई है।

पत्थरबाजी की घटनाओं में किशोर उम्र के बच्चों यहां तक कि आठ साल की कच्ची उम्र वाले बच्चों का शामिल होना शुभ संकेत नहीं है। वे किसी विचारधारा के असर में ऐसा नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसा करना साहसी होने की निशानी मानी जा रही है।

  घाटी में आतंकरोधी अभियान से जुड़े विक्टर फोर्स के मेजर जनरल बीएस राजू ने कहा कि सेना स्कूलों और कॉलेजों में कई कार्यक्रम आयोजित कर रही जिनके जरिए उन बच्चों को व्यस्त रखा जा सके और उन्हें यह अहसास दिलाया जा सके कि सेना उनके साथ है।

इसके तहत खेल-कूद और पेंटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जा रहा है। इसके अलावा कॉपी, किताब और पेंसिल जैसी स्टेशनरी बांटी जा रही है। बच्चों को ट्रेकिंग अभियान में शामिल किया जा रहा है। 

 मेजर जनरल के अनुसार ज्यादातर आतंकी, अलगाववादी और पत्थरबाज ‘आजादी’ का सही अर्थ नहीं जानते हैं। वे भारत से आजादी नहीं चाहते हैं। उन्हें तो सेना के भारी-भरकम उपस्थिति से एतराज है, लेकिन उन्हें समझना होगा कि सेना यहां उनकी हिफाजत के लिए है।

घाटी से आतंकवाद का खात्मा होते ही सुरक्षा बल वापस बैरक में चले जाएंगे। उन्होंने किशोर न्याय प्रणाली को मजबूत बनाए जाने पर जोर दिया है। उन्हें हिरासत में रखने के लिए अलग से केंद्र बनाए जाएं जहां उन्हें मानवीय परिस्थितियों में रखा जाए।

मौजूदा व्यवस्था में किशोर पत्थरबाजों को समूह में गिरफ्तार किया जाता है। हालांकि उन्हें बाद में रिहा कर दिया जाता है कि लेकिन उनके दिमाग से कट्टरता के जहर को निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है। नतीजतन, वे वापस दोगुने उत्साह से पत्थरबाजी में जुट जाते हैं।

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