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बांग्लादेश में कब हैं चुनाव: क्यों भारत के लिए अहम, नतीजों से कैसे पड़ सकता है प्रभाव, किस पार्टी का क्या रुख?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 12 Dec 2025 11:21 AM IST
सार

बांग्लादेश के चुनाव भारत के लिए कितने अहम हैं? किस तरह इस चुनाव के नतीजे दोनों देशों के रिश्तों को आगे प्रभावित कर सकते हैं? इसके अलावा इन चुनावों के मुद्दे क्या हैं? इन पर और भारत को लेकर किस पार्टी का क्या रुख है? आइये जानते हैं....

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Bangladesh General Election 2026 from BNP to Jamaat E Islami and NCP Awami League Sheikh Hasina Ouster PM news
बांग्लादेश में चुनाव। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बांग्लादेश में आज चुनाव की तारीखों का एलान हो गया। पूरे देश में 12 फरवरी को चुनाव की तारीख तय की गई है। इस शेड्यूल के सामने आने के बाद यह तय हो गया कि दो महीने बाद जब भारत अपने रिश्तों को लेकर बांग्लादेश से संपर्क में होगा, तब उसकी बात मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार नहीं, बल्कि एक स्थायी-चुनी हुई सरकार होगी। ऐसे में शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद अब भारत के लिए अगली सरकार से चर्चा की रणनीति काफी अहम होने वाली है। 
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ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर बांग्लादेश के चुनाव भारत के लिए कितने अहम हैं? किस तरह इस चुनाव के नतीजे दोनों देशों के रिश्तों को आगे प्रभावित कर सकते हैं? इसके अलावा इन चुनावों के मुद्दे क्या हैं? इन पर और भारत को लेकर किस पार्टी का क्या रुख है? आइये जानते हैं....
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Bangladesh: विद्रोह के बाद बांग्लादेश का पहला चुनाव, हसीना की पार्टी को इजाजत नहीं; भारत से रिश्तों पर भी नजर

1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखे गए हैं। हालांकि, 21वीं सदी के अधिकतर हिस्से में भारत-बांग्लादेश परस्पर सहयोगी रहे हैं। शेख हसीना के नेतृत्व में (2009-2024) के बीच बांग्लादेश सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में फैले उग्रवाद को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाई। खासकर उल्फा और एनडीएफबी जैसे संगठन, जो कभी बांग्लादेश से सप्लाई होने वाले हथियारों के जरिए भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देते थे, उनकी गतिविधियों को रोकने में खासी सफलता हासिल हुई। बांग्लादेश की तरफ से इस तरह के कूटनीतिक सहयोग में किसी तरह का बदलाव भारत के उत्तर में स्थित क्षेत्र के लिए सुरक्षा का मुद्दा बन सकता है। 

कौन सी पार्टियां लड़ रहीं चुनाव, किसका-कैसा रुख?
बांग्लादेश में चार पार्टियां मुख्य तौर पर मुकाबले में हैं। हालांकि, इसमें अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की आवामी लीग शामिल नहीं है। दरअसल, बीते साल जब हसीना के शासन के खिलाफ छात्र आंदोलन हिंसक हो गया तब वे बांग्लादेश छोड़कर भारत आने को मजबूर हो गईं। इसके बाद बांग्लादेश में बनी मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में न सिर्फ आवामी लीग को प्रतिबंधित कर दिया, बल्कि शेख हसीना के खिलाफ उनकी गैरमौजूदगी में कई केस भी चलवाए। इनमें से एक केस का फैसला इसी साल नवंबर में आया, जिसमें अपदस्थ पीएम को मौत की सजा सुनाई गई। चूंकि शेख हसीना भारत में हैं, इसलिए उन्हें सजा नहीं दी जा सकती। बांग्लादेश में यह भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी)
  • बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नींव देश के प्रधानमंत्री रहे जिया-उर-रहमान ने की थी। फिलहाल उनकी पत्नी खालिदा जिया इसका नेतृत्व कर रही हैं।
  • यह पार्टी 1979, 1991, 1996, 2001 में सत्ता हासिल करने में भी सफल हुई है। बांग्लादेश में शेख हसीना के दौर में बीएनपी प्रमुख विपक्षी दल रहा। 
  • बीएनपी ने 2024 के आम चुनाव का बहिष्कार किया था। इस पार्टी ने तब शेख हसीना पर भारत को ज्यादा करीब रखने का आरोप लगाया था और राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया था।
  • 3 दिसंबर को बीएनपी ने आम चुनाव के लिए 237 सीटों पर उम्मीदवारों का भी एलान कर दिया। हालांकि, इसकी प्रमुख नेता खालिदा का स्वास्थ्य लगातार खराब हुआ है।

जमात-ए-इस्लामी (जेआई)
  • जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश का सबसे बड़ा इस्लामिक दल है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान जमात पर पाकिस्तान का साथ देने और बांग्ला भाषियों के साथ ही बर्बरता के आरोप लगे थे। 
  • यह पार्टी इतिहास के अधिकतर समय प्रतिबंध झेल रही थी। शेख हसीना के हटने के बाद 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने इन पाबंदियों को हटाया और जमात का राजनीति में लौटने का रास्ता साफ हो गया।
  • जमात-ए-इस्लामी की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने सितंबर 2025 में ढाका यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की।

नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी)
  • नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) का उभार छात्र आंदोलन के चलते हुआ था। इसका गठन उन छात्रों की तरफ से किया गया है, जिन्होंने अगस्त 2024 में शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था और उन्हें हटाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। 
  • इस पार्टी का नेतृत्व नाहिद इस्लाम जैसे छात्र नेता कर रहे हैं, जो कि यूनुस की अंतरिम सरकार में सलाहकार की भूमिका में भी रहे। इस पार्टी का फोकस वंशवादी राजनीति को खत्म करना और इसके लिए ढाचांगत बदलाव लाना है। 



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