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क्या शाहीन बाग में अवैध बांग्लादेशियों ने रोका बुलडोजर?: अगर बन चुके हैं खतरा तो अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर पाई सरकार

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Tue, 10 May 2022 03:58 PM IST
सार

विशेषज्ञों का अनुमान है कि बांग्लादेश से सटे देश के पड़ोसी जिलों में लगभग हर पांचवां मतदाता अवैध घुसपैठिया है। यह संख्या बहुत ज्यादा है और इन राज्यों के चुनाव परिणाम और सरकारों को बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने 2006 में ‘ऑपरेशन क्लीन’ नाम से एक अभियान चलाया था...

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bulldozer in Shaheen Bagh: Is illegal Bangladeshi migrants once again become a problem in delhi
शाहीन बाग में बुलडोजर - फोटो : PTI
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विस्तार
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शाहीन बाग में बुलडोजर चलाने की कोशिशों के बीच बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या एक बार फिर चर्चा का मुद्दा बन गई है। भाजपा नेता कपिल मिश्रा और अन्य ने आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी नेता अमानतुल्लाह खान दिल्ली में बांग्लादेशी घुसपैठियों को बचाना चाहते हैं, इसीलिए शाहीन बाग के अवैध अतिक्रमण वाले इलाकों में बुलडोजर चलाने से रोकने की कोशिश की जा रही है। भाजपा समर्थक ट्विटर पर ‘केजरीवाल विद बांग्लादेशी’ हैशटैग चलाकर इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं।  

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दरअसल, दिल्ली में अवैध बांग्लादेशियों की समस्या पर लंबे समय से बहस होती रही है। दिल्ली में होने वाले कई गंभीर अपराधों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की भूमिका बार-बार सामने आती रही है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मौकों पर इन्हें दिल्ली की व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बताया था और केंद्र सरकार से इन्हें वापस इनके देश भेजने की बात कही थी। लेकिन अब तक इस मामले में कोई गंभीर कार्रवाई नहीं हो पाई है। केंद्र सरकार समय-समय पर कुछ बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजती रही है, लेकिन आरोप है कि ये लोग बांग्लादेश जाने के कुछ समय बाद दोबारा आ जाते हैं और समस्या जस की तस बनी रहती है।

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देश में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिये?

देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हमेशा से ही राजनीति का विषय बना रहा है। दिल्ली, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल के कांग्रेस के कुछ नेताओं पर यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने अपनी चुनावी जीत सुनिश्चित करने के लिए अवैध बांग्लादेशियों को बसाया और उन्हें मतदाता सूची में जगह दिलवाई। भाजपा नेता दिल्ली में यही आरोप अब आम आदमी पार्टी पर लगाते हैं। पश्चिम बंगाल में यही आरोप पहले वामपंथी दलों पर लगता था, अब यही आरोप ममता बनर्जी सरकार पर लगाए जाते हैं।    


देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या कितनी है, इस पर अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं है। अलग-अलग संगठन घुसपैठियों की संख्या के अलग-अलग आंकड़े बताते हैं। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 2020 में राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न का जवाब देते हुए कहा था कि देश में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या केवल एक लाख 10 हजार है।

इसमें वे बांग्लादेशी भी शामिल हैं, जिन्होंने वैध दस्तावेज पर भारत में प्रवेश किया, लेकिन वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी वापस नहीं गए। वे देश के अलग-अलग हिस्सों में चले जाते हैं, जिन्हें पकड़कर वापस भेजना काफी मुश्किल भरा काम होता है। लेकिन इसके बाद भी सरकार हर साल अनेक बांग्लादेशी घुसपैठियों को बांग्लादेश वापस भेजने का काम करती रहती है।

हालांकि केंद्र ने यह भी कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का भारत में अवैध तरीके से प्रवेश और सरकार द्वारा उन्हें वापस भेजना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। बांग्लादेशी अवैध तरीके से भारत में प्रवेश करते रहते हैं और अलग-अलग राज्यों में रहने लगते हैं, लिहाजा उनकी सटीक संख्या बताना मुश्किल है।

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भारत-बांग्लादेश सीमा - फोटो : File

एक करोड़ से ज्यादा घुसपैठिये पश्चिम बंगाल में

लेकिन केंद्र सरकार का यह आंकड़ा भाजपा के उन नेताओं से सैकड़ों गुना ज्यादा है, जो देश में दो करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठियों के होने का दावा करते हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा नेता दिलीप घोष ने ममता बनर्जी सरकार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को पालन-पोषण का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या दो करोड़ से ज्यादा हैं जिनमें एक करोड़ के लगभग केवल पश्चिम बंगाल में ही हैं।

बीएसएफ के अधिकारी ने बताया

भारत-बांग्लादेश की पश्चिम बंगाल से सटी सीमा पर तैनात बीएसएफ के एक अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि दोनों देशों के बीच लगभग 4095 किलोमीटर की सीमा रेखा है। केवल पश्चिम बंगाल से सटी सीमा 2216 किमी है। बीएसएफ की साउथ बंगाल फ्रंटियर लगभग 1150 किमी की निगरानी करती है। इस पूरी सीमा में सुंदरबन तक के इलाके शामिल हैं। जगह-जगह पर नदियां और जंगल हैं जहां पूरी तरह निगरानी रख पाना संभव नहीं है।

घुसपैठिये इन्हीं रास्तों का उपयोग कर देश में प्रवेश कर जाते हैं। पूर्व में बांग्लादेश से भारी संख्या में घुसपैठ होती थी, लेकिन अब इन घटनाओं में काफी कमी आई है। हालांकि, अभी भी काफी बांग्लादेशी बेहतर जीवन और रोजगार की उम्मीद में हर साल भारत में प्रवेश कर जाते हैं।

ऑपरेशन क्लीन अभियान

विशेषज्ञों का अनुमान है कि बांग्लादेश से सटे देश के पड़ोसी जिलों में लगभग हर पांचवां मतदाता अवैध घुसपैठिया है। यह संख्या बहुत ज्यादा है और इन राज्यों के चुनाव परिणाम और सरकारों को बदलने में अहम भूमिका निभा सकती है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने 2006 में ‘ऑपरेशन क्लीन’ नाम से एक अभियान चलाया था। इस अभियान में पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची से 13 लाख लोगों के नाम काटे गए थे। चुनाव आयोग का मानना था कि ये सभी बांग्लादेशी घुसपैठिये थे जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से मतदाता पत्र प्राप्त कर लिया था।

समझा जा सकता है कि यदि केवल पश्चिम बंगाल में यह स्थिति है, तो राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या कितनी अधिक हो सकती है। अनुमान है कि असम, त्रिपुरा और अन्य पूर्वोत्तर के राज्यों में यह संख्या लाखों में हो सकती है। बिहार, झारखंड और कर्नाटक के बेंगलुरु तक भारी संख्या में बांग्लादेशियों के होने की बात कही जाती है। इन क्षेत्रों में बांग्लादेशी भाषा बोले जाने के कारण सुरक्षा बलों के द्वारा इन घुसपैठियों की पहचान कर पाना भी बहुत मुश्किल का काम होता है। वोट बैंक की राजनीति के कारण स्थानीय नेताओं का समर्थन सुरक्षा बलों की परेशानी बढ़ा देता है।

आरोप हैं कि असम के लगभग एक तिहाई विधानसभा सीटों पर बांग्लादेशी घुसपैठिये निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में आ चुके हैं। असम में यह मामला बेहद गंभीर हो चुका है। यही कारण है कि असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार इस पर कठोर नीति अपनाने की पक्षधर है। हालांकि, जब ट्रायल के तौर पर असम में एनआरसी लागू करने के बाद कई ऐसे लोगों को भी अवैध घुसपैठिया बता दिया गया, जिनकी कई पुश्तें भारत में ही रहती आई थीं। इसमें हिंदू परिवार भी शामिल थे। लिहाजा इसका जोरदार विरोध हुआ और स्वयं मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इसमें खामी बताकर इसे खारिज कर दिया।  

घुसपैठ की शुरुआत

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के बंटवारे के कुछ ही समय बाद यह समस्या शुरू हो गई थी। बाद में अकाल के दौरान यह समस्या गंभीर हो गई। लेकिन यह समस्या तब सबसे ज्यादा बढ़ी जब वर्तमान पाकिस्तान ने 1970 के दशक तक अपने ही हिस्सा रहे वर्तमान बांग्लादेश के लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जान की सुरक्षा के लिए लाखों बांग्लादेशी मुसलमानों ने पूरे परिवार के साथ भारत में पलायन शुरू कर दिया। माना जाता है कि उस समय लगभग 70 लाख बांग्लादेशी मुसलमानों ने भारत में आकर शरण ली। आरोप है कि बांग्लादेश के स्वतंत्र देश बन जाने के बाद भी लाखों बांग्लादेशी स्वदेश वापस नहीं गए और यहीं बस गए।

कोई सरकार हल नहीं कर पाई ये समस्या

माना जाता है कि पड़ोसी देश से अपने संबंध खराब न होने की नीति के कारण भारत की सरकारें कभी बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कठोर नीति नहीं बना पाईं। केंद्र सरकार की यह नीति देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक चलती रही। यहां तक कि वर्तमान केंद्र सरकार ने एनआरसी लाकर घुसपैठियों पर कठोर रूख अपनाने का संकेत दिया था, लेकिन इसके बाद भी वह इस पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाई।

बांग्लादेश ने इस मुद्दे पर अपना गंभीर विरोध दर्ज कराया था जिसके बाद माना जाता है कि सरकार ने अपने पांव पीछे खींच लिए। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने अपने हालिया पश्चिम बंगाल के दौरे में एनआरसी दोबारा लाने की बात कहकर इसे एक बार फिर हवा दे दी है। उनके इस बयान को बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या हल करने से ज्यादा राजनीतिक पैंतरे के रूप में देखा जा रहा है।

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