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एकीकृत थियेटर कमान के गठन में खींचतान: सीडीएस और एयरफोर्स प्रमुख भदौरिया के बीच मतभेद आए सामने

एजेंसी, नई दिल्ली। Published by: Jeet Kumar Updated Sun, 04 Jul 2021 06:47 AM IST
सार

सैन्य बलों की अंदरूनी लड़ाई खुलकर सामने आई, थियेटर कमान के गठन पर दोनों बलों में मतभेद

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cds says Air Force as a support arm but IAF chief Air Chief Marshal RKS Bhadauria disagreed
एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया और सीडीएस जनरल बिपिन रावत - फोटो : ANI
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विस्तार
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देश में चार एकीकृत थियेटर कमान के गठन में खींचतान सामने आने लगी है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा, वायुसेना सहयोगी की भूमिका में रहती है और सेना के इंजीनियरों व आर्टिलरी की तरह युद्ध सहयोगी होती है। 

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एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने इस पर असहमति जताते हुए स्पष्ट कहा, वायुसेना की वायु शक्ति के रूप में बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा, थिएटर कमान के गठन में वायुसेना जरूर सहयोगी भूमिका में थी, लेकिन यह सही तरीके से किया जाना चाहिए। ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल के सेमिनार में दोनों के बीच यह कहासुनी सामने आई। 
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सीडीएस ने कहा, वायुसेना से जमीन पर मौजूद सेना को सहयोग मुहैया करवाने की अपेक्षा होती है । यह नहीं भूलना चाहिए कि वायुसेना थलसेना की सहयोगी शाखा के रूप में काम करती है। वैसे ही, जैसे आर्टिलरी या इंजीनियर युद्ध लड़ने वाली सैन्य शाखा को सहयोग करते हैं।  वायुसेना के पास एयर डिफेंस चार्टर होता है तो एक चार्टर जमीन पर मौजूद सेना को ऑपरेशन में सहयोग देने के लिए भी होता है। वायुसेना को यह बेसिक चार्टर समझने की जरूरत है। 

सीडीएस रावत ने कहा, नए प्रस्ताव के तहत वायुसेना के पास केंद्रीकृत वायु रक्षा कमान होगा। उसके लड़ाकू विमान जमीन पर आधारित दो थिएटर कमान में बंट जाएंगे। वायु सेना के सलाहकार पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर दो कमान में नियुक्त होंगे, जो हवाई ऑपरेशन में थिएटर कमांडर को सलाह देंगे। 

गौरतलब है कि सीडीएस देश में चार थिएटर कमान के गठन पर काम कर रहे हैं। इनमें से तीन थलसेना के अधिकारियों और एक नौसेना के अधिकारियों के नेतृत्व में रहेगी। रक्षामंत्री और केंद्र सरकार से सहमति पा चुके प्रस्ताव के तहत सभी थिएटर कमांडर सीडीएस को रिपोर्ट करेंगे। 

वायुसेना निभाती है बड़ी भूमिका 
सीडीएस के बाद बोलने आए एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने थिएटर कमान की अंदरूनी बातचीत पर चर्चा से इनकार किया। उन्होंने कहा, अंदरूनी मतभेद पर अंदरूनी तौर पर ही समाधान निकाला जाता है। इन पर सार्वजनिक चर्चा नहीं होनी चाहिए। 

हालांकि भदौरिया ने साफ किया कि वायुसेना की भूमिका सिर्फ सहयोगी की नहीं बल्कि उससे ऊपर है। किसी भी मिले-जुले युद्ध क्षेत्र में हवाई हमलों से जुड़ी योजनाओं सहित कई बातों पर विचार होता है। एयरफोर्स की भूमिका केवल सहयोगी की नहीं , इससे ऊपर भी वह भूमिका निभाती है। उसे हवाई ऑपरेशन की योजना में कई महत्वपूर्ण पहलू देखने होते हैं। कमान के गठन में वायुसेना साथ है, यह एक आवश्यक सुधार है।

मामला वैसा ही जैसे पूछा जाए, इंजन जरूरी या पहिए?
पूर्व डिप्टी आर्मी चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राज कादयान ने कहा, भारतीय सेना में कमान की स्थापना के समय दुर्भाग्यपूर्ण विवाद सामने आया है। सीडीएस की स्थापना में मुख्य रूप से एयरफोर्स ने प्रतिरोध किया था। 

कारगिल रिव्यू कमिटी की सिफारिश के बाद इस काम में करीब दो दशक लग गए थे, यह अंततः साकार हुआ। लेकिन एक और जनरल बनाने से समस्याओं का समाधान नहीं होता। यह केवल एक कदम है। आज के समय की युद्धनीति में जल्द निर्णय महत्वपूर्ण होते हैं। थल सेना को भी वायुसेना की मदद की आवश्यकता होती है। 

यह मामला वैसा ही है कि किसी ट्रेन के लिए पूछा जाए कि इंजन ज्यादा महत्वपूर्ण है या पहिए ? दोनों एकदूसरे के बिना काम नहीं कर सकते। वरिष्ठ अधिकारियों को साथ बैठकर मामले पर बात करनी चाहिए। 

दूसरी ओर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि देश की जमीनी सीमाएं करीब 15 हजार किमी लंबी हैं और तटीय सीमा रेखा भी 7.5 हजार किमी की। लेकिन नौसेना मीडिया में ज्यादा नहीं दिखती क्योंकि वे जिस समुद्र में काम करती है, वहां मीडिया नहीं होती। थल और वायु सेना की मीडिया में मौजूदगी रहती है।

हताशा और एजेंडा थोपने की कोशिश 
इन बदलावों की जरूरत पर कभी शक नहीं किया गया। भारत को मिलकर युद्ध लड़ने की अपनी क्षमताओं को निश्चित तौर पर बेहतर करने की जरूरत है। लेकिन अब तक जो दरवाजों के पीछे होता था, वह मीडिया में आने लगा है। 

सेना के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा कही गई बात शायद उनकी हताशा और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अपना एजेंडा थोपने की कोशिश का खुलासा करती है। -आर नांबियार, पूर्व वेस्टर्न एयर कमांड एयर मार्शल (सेवानिवृत्त)

वायुसेना की अपनी खासियतें, सहयोगी बताना गलत
वायुसेना को भारतीय सेना की बाकी दो भुजाओं का सहयोगी बताना गलत है। वायुसेना बाकी दो भुजाओं की तरह ही है, जिसकी अपनी विशेषताएं हैं। कई दशकों में इन्होंने मान्यता पाई है। -मनमोहन बहादुर , एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) 

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