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Delhi Budget: नई उद्योग नीति लाएगी सरकार, व्यापारियों ने किया स्वागत, लेकिन ये सवाल बाकी
सार
दिल्ली का बजट पेश करते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिल्ली में नई उद्योग नीति लाने की घोषणा कर दी है। सरकार ने कहा है कि दिल्ली में नई औद्योगिक नीति में राजधानी में व्यापार के अनुकूल माहौल बनाया जाएगा। पढ़े क्या है खास?
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दिल्ली विधानसभा में सीएम रेखा गुप्ता
- फोटो : दिल्ली विधानसभा
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विस्तार
अमर उजाला ने अपने पाठकों को पांच मार्च को बताया था कि भाजपा सरकार दिल्ली में नई औद्योगिक नीति लाने की घोषणा कर सकती है। इसमें दिल्ली में व्यापार करने को सरल-सुगम बनाते हुए व्यापार-रोजगार के नए अवसरों की वृद्धि की जाएगी। आज दिल्ली का बजट पेश करते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिल्ली में नई उद्योग नीति लाने की घोषणा कर दी है। सरकार ने कहा है कि दिल्ली में नई औद्योगिक नीति में राजधानी में व्यापार के अनुकूल माहौल बनाया जाएगा। इससे दिल्ली को विकसित करने और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी। व्यापारियों ने सरकार की इस घोषणा का स्वागत किया है।
हालांकि, दिल्ली सरकार ने अभी नई औद्योगिक नीति का खाका पेश नहीं किया है, लिहाजा अभी नई औद्योगिक नीति के स्वरूप को लेकर असमंजस बरकरार है। लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि सरकार के पास दिल्ली में व्यापार को बढ़ावा देने के विकल्प काफी सीमित हैं। सरकार कुछ चुने हुए क्षेत्रों में ही उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति अपना सकती है।
उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जमीन की उपलब्धता सबसे बड़ा विषय है, लेकिन दिल्ली की समस्या यह है कि अब यहां विकास करने के लिए नई जगहें उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में ज्यादा भूमि कवर करते हुए बड़ी फैक्ट्रियां लगाना यहां पर संभव नहीं हो सकता। पर्यावरण प्रदूषण की गंभीरता के कारण यहां ऐसे उद्योग नहीं लगाए जा सकते जो जीवाश्म ईंधनों के द्वारा संचालित होते हों। ऐसे में दिल्ली में आधारभूत ढांचा विकसित करने वाले उद्योगों को विकसित करने में कठिनाई आ सकती है। हालांकि, सरकार एनसीआर एरिया को अपने साथ लेना चाहे तो इसका रास्ता निकल सकता है।
आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि आज उद्योगों की शक्ल भी बदल रही है। अब आधारभूत उद्योगों की जगह एआई तकनीकी, सौर ऊर्जा और स्पेस तकनीकी के उद्योगों को विकसित करने पर विचार करना चाहिए, जिनमें दूसरे उद्योगों की तुलना में बहुत कम जगह की आवश्यकता होती है, लेकिन ये सरकार के लिए भारी धन अर्जित करने का काम कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में युवा पीढ़ी को रोजगार करने की संभावनाएं भी बन सकती हैं।
'सरकार ने बजट में नहीं दिया इन क्षेत्रों पर ध्यान'
राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली सरकार ने बजट में रोजगार-व्यापार के नए अवसर विकसित करने की बात कही है, लेकिन अभी भी व्यापारियों की बड़ी चिंताओं का समाधान करने की बात नहीं की गई है। दिल्ली में व्यापारियों की सबसे बड़ी चिंता यह रहती है कि यहां औद्योगिक इकाइयां छः महीने ही अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर पाती हैं। ठंड बढ़ते ही जैसे ही प्रदूषण की स्थिति बिगड़ती है, इसका ठीकरा उद्योगों के सिर फोड़ दिया जाता है और उन्हें अपना कामकाज बंद करने का आदेश दे दिया जाता है। सरकार को व्यापारियों की इस चिंता को दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।
प्रदूषण के कारण पैदा हो रहे हालात में एनजीटी के प्रतिबंध बढ़ जाते हैं। इसका असर यह हुआ है कि दिल्ली के उद्योग धीरे-धीरे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की तरफ चले गए हैं। इससे दिल्ली में रोजगार के अवसरों में कमी हुई है और सरकार को मिलने वाले राजस्व पर भी असर पड़ा है। ऐसे में सरकार को नए उद्योग लगाने के पहले कोशिश करनी चाहिए कि जो उद्योग दिल्ली छोड़कर भागने पर मजबूर हो रहे हैं, उनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जाए।
लालफीताशाही खत्म करना सबसे बड़ी आवश्यकता
लालफीताशाही दिल्ली के व्यापारियों-उद्योगपतियों की सबसे बड़ी समस्या है। दिल्ली में एक रेस्टोरेंट या होटल खोलने के लिए भी उद्योगपतियों को दर्जनों जगहों से एनओसी और अन्य कागजात हासिल करने पड़ते हैं। एक ही पेपर उन्हें कई अलग-अलग एजेंसियों को बार-बार दिखाना पड़ता है। सरकार को दिल्ली में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए लालफीताशाही को खत्म करना चाहिए।
बिजली सस्ती करने का कोई उपाय नहीं
अशोक बुवानीवाला ने कहा कि दिल्ली में व्यापारियों औद्योगिक संगठनों को पड़ोसी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा महंगी बिजली मिलती है। इसके कारण यहां के उद्योगों के उत्पाद दूसरे राज्यों की तुलना में महंगे हो जाते हैं। सरकार को उद्योगों की इस मूल समस्या का समाधान करने की कोशिश करनी चाहिए।
'विकास को मिलेगी प्राथमिकता'
भाजपा सांसद और व्यापारियों के संगठन कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा है कि यह दिल्ली को विकास की राह पर ले जाने वाला बजट है। उन्होंने कहा कि यह बजट सर्वस्पर्शी है और दिल्ली के सभी वर्गों का ध्यान में रखकर यह बजट बनाया गया है। यह बजट दिल्ली को नई आर्थिक प्रगति तक ले जाने में सहायक सिद्ध होगा। ट्रेडर्स वेलफेयर बोर्ड के गठन की घोषणा से व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
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हालांकि, दिल्ली सरकार ने अभी नई औद्योगिक नीति का खाका पेश नहीं किया है, लिहाजा अभी नई औद्योगिक नीति के स्वरूप को लेकर असमंजस बरकरार है। लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि सरकार के पास दिल्ली में व्यापार को बढ़ावा देने के विकल्प काफी सीमित हैं। सरकार कुछ चुने हुए क्षेत्रों में ही उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति अपना सकती है।
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उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जमीन की उपलब्धता सबसे बड़ा विषय है, लेकिन दिल्ली की समस्या यह है कि अब यहां विकास करने के लिए नई जगहें उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में ज्यादा भूमि कवर करते हुए बड़ी फैक्ट्रियां लगाना यहां पर संभव नहीं हो सकता। पर्यावरण प्रदूषण की गंभीरता के कारण यहां ऐसे उद्योग नहीं लगाए जा सकते जो जीवाश्म ईंधनों के द्वारा संचालित होते हों। ऐसे में दिल्ली में आधारभूत ढांचा विकसित करने वाले उद्योगों को विकसित करने में कठिनाई आ सकती है। हालांकि, सरकार एनसीआर एरिया को अपने साथ लेना चाहे तो इसका रास्ता निकल सकता है।
आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि आज उद्योगों की शक्ल भी बदल रही है। अब आधारभूत उद्योगों की जगह एआई तकनीकी, सौर ऊर्जा और स्पेस तकनीकी के उद्योगों को विकसित करने पर विचार करना चाहिए, जिनमें दूसरे उद्योगों की तुलना में बहुत कम जगह की आवश्यकता होती है, लेकिन ये सरकार के लिए भारी धन अर्जित करने का काम कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में युवा पीढ़ी को रोजगार करने की संभावनाएं भी बन सकती हैं।
'सरकार ने बजट में नहीं दिया इन क्षेत्रों पर ध्यान'
राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली सरकार ने बजट में रोजगार-व्यापार के नए अवसर विकसित करने की बात कही है, लेकिन अभी भी व्यापारियों की बड़ी चिंताओं का समाधान करने की बात नहीं की गई है। दिल्ली में व्यापारियों की सबसे बड़ी चिंता यह रहती है कि यहां औद्योगिक इकाइयां छः महीने ही अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर पाती हैं। ठंड बढ़ते ही जैसे ही प्रदूषण की स्थिति बिगड़ती है, इसका ठीकरा उद्योगों के सिर फोड़ दिया जाता है और उन्हें अपना कामकाज बंद करने का आदेश दे दिया जाता है। सरकार को व्यापारियों की इस चिंता को दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।
प्रदूषण के कारण पैदा हो रहे हालात में एनजीटी के प्रतिबंध बढ़ जाते हैं। इसका असर यह हुआ है कि दिल्ली के उद्योग धीरे-धीरे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की तरफ चले गए हैं। इससे दिल्ली में रोजगार के अवसरों में कमी हुई है और सरकार को मिलने वाले राजस्व पर भी असर पड़ा है। ऐसे में सरकार को नए उद्योग लगाने के पहले कोशिश करनी चाहिए कि जो उद्योग दिल्ली छोड़कर भागने पर मजबूर हो रहे हैं, उनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जाए।
लालफीताशाही खत्म करना सबसे बड़ी आवश्यकता
लालफीताशाही दिल्ली के व्यापारियों-उद्योगपतियों की सबसे बड़ी समस्या है। दिल्ली में एक रेस्टोरेंट या होटल खोलने के लिए भी उद्योगपतियों को दर्जनों जगहों से एनओसी और अन्य कागजात हासिल करने पड़ते हैं। एक ही पेपर उन्हें कई अलग-अलग एजेंसियों को बार-बार दिखाना पड़ता है। सरकार को दिल्ली में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए लालफीताशाही को खत्म करना चाहिए।
बिजली सस्ती करने का कोई उपाय नहीं
अशोक बुवानीवाला ने कहा कि दिल्ली में व्यापारियों औद्योगिक संगठनों को पड़ोसी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा महंगी बिजली मिलती है। इसके कारण यहां के उद्योगों के उत्पाद दूसरे राज्यों की तुलना में महंगे हो जाते हैं। सरकार को उद्योगों की इस मूल समस्या का समाधान करने की कोशिश करनी चाहिए।
'विकास को मिलेगी प्राथमिकता'
भाजपा सांसद और व्यापारियों के संगठन कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा है कि यह दिल्ली को विकास की राह पर ले जाने वाला बजट है। उन्होंने कहा कि यह बजट सर्वस्पर्शी है और दिल्ली के सभी वर्गों का ध्यान में रखकर यह बजट बनाया गया है। यह बजट दिल्ली को नई आर्थिक प्रगति तक ले जाने में सहायक सिद्ध होगा। ट्रेडर्स वेलफेयर बोर्ड के गठन की घोषणा से व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।