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क्या है MTP एक्ट 2021: SC ने की व्याख्या, गर्भपात पर देश-दुनिया में कैसे-कैसे कानून?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: जयदेव सिंह
Updated Thu, 29 Sep 2022 02:59 PM IST
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सार
Medical Termination of Pregnancy Act: शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात का अधिकार सभी को है। अदालत ने ये भी कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाहित महिला को बाहर रखना असंवैधानिक है।

What is MTP
- फोटो : अमर उजाला
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया, चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात का अधिकार सभी को है। अदालत ने ये भी कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाहित महिला को बाहर रखना असंवैधानिक है।
आइये जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में। साथ ही जानते हैं कि आखिर गर्भपात को लेकर देश का कानून क्या कहता है? दुनिया के कितने देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है? किन देशों में आसान है गर्भपात कराना?
पूरा मामला क्या है?
दरअसल, एक 25 साल की महिला की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। महिला अपने साथी के साथ सहमति से रह रही थी। बाद में उसने शादी से इनकार कर दिया। गर्भवति महिला का कहना है कि वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए। दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को इसकी इजाजत नहीं दी थी। इसके बाद महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
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आइये जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में। साथ ही जानते हैं कि आखिर गर्भपात को लेकर देश का कानून क्या कहता है? दुनिया के कितने देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है? किन देशों में आसान है गर्भपात कराना?
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पूरा मामला क्या है?
दरअसल, एक 25 साल की महिला की याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। महिला अपने साथी के साथ सहमति से रह रही थी। बाद में उसने शादी से इनकार कर दिया। गर्भवति महिला का कहना है कि वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, इसलिए उसे गर्भपात की अनुमति दी जाए। दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को इसकी इजाजत नहीं दी थी। इसके बाद महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
पहले इस तरह के मामले में कोर्ट का क्या रुख रहा है?
इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात कानून के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई भी भेदभाव, महिला की व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन है। उस वक्त जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट और इससे जुड़े नियमों में हस्तक्षेप करेंगे और देखेंगे कि क्या अविवाहित महिलाओं को डॉक्टरी सलाह के आधार पर 24 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की अनुमति दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई तरक्की को देखते हुए एमटीपी कानून और नियमों की भविष्योन्मुखी व्याख्या होनी चाहिए।"
इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात कानून के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कोई भी भेदभाव, महिला की व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन है। उस वक्त जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट और इससे जुड़े नियमों में हस्तक्षेप करेंगे और देखेंगे कि क्या अविवाहित महिलाओं को डॉक्टरी सलाह के आधार पर 24 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की अनुमति दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई तरक्की को देखते हुए एमटीपी कानून और नियमों की भविष्योन्मुखी व्याख्या होनी चाहिए।"

गर्भपात कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- फोटो : PTI
क्या है एमटीपी एक्ट?
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के तहत विवाहित महिलाओं की विशेष श्रेणी, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता व दिव्यांग और नाबालिग जैसी अन्य संवेदनशील महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी समय सीमा 24 सप्ताह थी, जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए यही समय सीमा 20 सप्ताह थी। गुरुवार को कोर्ट ने इसी अंतर को खत्म करने का आदेश दिया।
अगस्त में हुई सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था, जब कानून में अपवादों के लिए जगह है तो अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह का गर्भ डॉक्टरी सलाह पर गिराने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती? उस वक्त कोर्ट ने 2021 में MTP एक्ट में हुए संशोधन की व्याख्या करते हुए कहा था कि संसद ने जब ‘पति’ शब्द को हटाकर ‘पार्टनर’ शब्द का प्रयोग किया तो इससे उसकी भावना स्पष्ट है। ये दिखाता है कि सांसद भी अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह के गर्भपात के दायरे में लाना चाहते हैं। शीर्ष कोर्ट ने सवाल किया कि जब एमटीपी कानून, 1971 के तहत विवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देने के लिए नियम बनाए गए तो इससे अविवाहित महिलाओं को बाहर क्यों रखा गया? स्वास्थ्य को जोखिम दोनों के लिए एक समान है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के तहत विवाहित महिलाओं की विशेष श्रेणी, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता व दिव्यांग और नाबालिग जैसी अन्य संवेदनशील महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी समय सीमा 24 सप्ताह थी, जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए यही समय सीमा 20 सप्ताह थी। गुरुवार को कोर्ट ने इसी अंतर को खत्म करने का आदेश दिया।
अगस्त में हुई सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था, जब कानून में अपवादों के लिए जगह है तो अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह का गर्भ डॉक्टरी सलाह पर गिराने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती? उस वक्त कोर्ट ने 2021 में MTP एक्ट में हुए संशोधन की व्याख्या करते हुए कहा था कि संसद ने जब ‘पति’ शब्द को हटाकर ‘पार्टनर’ शब्द का प्रयोग किया तो इससे उसकी भावना स्पष्ट है। ये दिखाता है कि सांसद भी अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह के गर्भपात के दायरे में लाना चाहते हैं। शीर्ष कोर्ट ने सवाल किया कि जब एमटीपी कानून, 1971 के तहत विवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देने के लिए नियम बनाए गए तो इससे अविवाहित महिलाओं को बाहर क्यों रखा गया? स्वास्थ्य को जोखिम दोनों के लिए एक समान है।
भारत में गर्भपात को लेकर क्या कानून है?
1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत देता है। 2021 में हुए बदलाव के बाद ये सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई। हालांकि, ऐसा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं किया जा सकता है। अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो पहले एबॉर्शन की अनुमति नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा किया जा सकता। इसके लिए तीन श्रेणियां बनाई गईं।
1 गर्भावस्था के 0 से 20 हफ्ते तक: अगर कोई भी गर्भवती महिला गर्भपात करना चाहती है तो वह एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की सलाह से ऐसा कर सकती है। भले वो महिला विवाहित हो या अविवाहित।
2. गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक: अगर गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गहरा आघात लगने का डर हो, या जन्म लेने वाले बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो, तब वह महिला दो डॉक्टरों की सलाह पर गर्भपात करा सकेगी। इस श्रेणी में यह परिस्थितियां महत्वपूर्ण होंगी-
a. अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो। महिला या उसके पार्टनर ने गर्भावस्था से बचने के लिए जिन उपायों को आजमाया हो, वह फेल हो जाए।
b. अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से गर्भ ठहरा है। इस तरह की प्रेगनेंसी उस महिला के लिए मानसिक रूप से अच्छी नहीं होगी।
c. जहां भ्रूण में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले तो मेडिकल बोर्ड की सलाह के बाद गर्भपात किया जा सकेगा।
3. गर्भावस्था के 24 हफ्ते बाद: अगर भूर्ण अत्यधिक विकृत हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो तो भी कभी भी गर्भपात कराया जा सकता है।
1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत देता है। 2021 में हुए बदलाव के बाद ये सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई। हालांकि, ऐसा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं किया जा सकता है। अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो पहले एबॉर्शन की अनुमति नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा किया जा सकता। इसके लिए तीन श्रेणियां बनाई गईं।
1 गर्भावस्था के 0 से 20 हफ्ते तक: अगर कोई भी गर्भवती महिला गर्भपात करना चाहती है तो वह एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की सलाह से ऐसा कर सकती है। भले वो महिला विवाहित हो या अविवाहित।
2. गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक: अगर गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गहरा आघात लगने का डर हो, या जन्म लेने वाले बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो, तब वह महिला दो डॉक्टरों की सलाह पर गर्भपात करा सकेगी। इस श्रेणी में यह परिस्थितियां महत्वपूर्ण होंगी-
a. अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो। महिला या उसके पार्टनर ने गर्भावस्था से बचने के लिए जिन उपायों को आजमाया हो, वह फेल हो जाए।
b. अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से गर्भ ठहरा है। इस तरह की प्रेगनेंसी उस महिला के लिए मानसिक रूप से अच्छी नहीं होगी।
c. जहां भ्रूण में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले तो मेडिकल बोर्ड की सलाह के बाद गर्भपात किया जा सकेगा।
3. गर्भावस्था के 24 हफ्ते बाद: अगर भूर्ण अत्यधिक विकृत हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो तो भी कभी भी गर्भपात कराया जा सकता है।
दुनिया में कितने देशों में बैन है गर्भपात?
सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स के मुताबिक, दुनियाभर 24 देशों में गर्भपात कराना गैरकानूनी है। इन देशों में मां बनने के योग्य करीब नौ करोड़ महिलाएं रहती हैं। जिन देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है उनमें सेनेगल, मॉरिटेनिया, मिस्र, लाओस, फिलीपींस, अल सल्वाडोर, होंडुरास, पोलैंड और माल्टा जैसे देश शामिल हैं।
वहीं, करीब 50 देश ऐसे हैं जहां कई सख्त शर्तों के साथ गर्भपात की अनुमित होती है। लीबिया, इंडोनेशिया, ईरान, वेनेजुएला, नाइजीरिया जैसे देश गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा होने पर गर्भपात की अनुमति देते हैं। कई देश ऐसे हैं जहां दुष्कर्म, अनाचार या भ्रूण के विकृत होने की स्थिति में गर्भपात की अनुमति मिलती है।
सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स के मुताबिक, दुनियाभर 24 देशों में गर्भपात कराना गैरकानूनी है। इन देशों में मां बनने के योग्य करीब नौ करोड़ महिलाएं रहती हैं। जिन देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है उनमें सेनेगल, मॉरिटेनिया, मिस्र, लाओस, फिलीपींस, अल सल्वाडोर, होंडुरास, पोलैंड और माल्टा जैसे देश शामिल हैं।
वहीं, करीब 50 देश ऐसे हैं जहां कई सख्त शर्तों के साथ गर्भपात की अनुमित होती है। लीबिया, इंडोनेशिया, ईरान, वेनेजुएला, नाइजीरिया जैसे देश गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा होने पर गर्भपात की अनुमति देते हैं। कई देश ऐसे हैं जहां दुष्कर्म, अनाचार या भ्रूण के विकृत होने की स्थिति में गर्भपात की अनुमति मिलती है।
किन देशों में आसान है गर्भपात कराना?
यूरोप के ज्यादातर देशों में गर्भधारण के 12-14 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति है। हालांकि, कई देशों में अलग-अलग तरह के अपवाद की स्थित में तय सीमा के बाद भी गर्भपात की अनुमति मिलती है। जैसे- ब्रिटेन में भूण विकृत होने की स्थिति में जन्म से पहले कभी भी गर्भपात की इजाजत है।
यूरोप के ज्यादातर देशों में गर्भधारण के 12-14 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति है। हालांकि, कई देशों में अलग-अलग तरह के अपवाद की स्थित में तय सीमा के बाद भी गर्भपात की अनुमति मिलती है। जैसे- ब्रिटेन में भूण विकृत होने की स्थिति में जन्म से पहले कभी भी गर्भपात की इजाजत है।