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गहलोत-पायलट की लड़ाई की Inside Story: सचिन पायलट माने या अभी भी सुलग रही चिंगारी, राजस्थान में आगे क्या होगा?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Tue, 30 May 2023 05:50 PM IST
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पायलट-जादूगर की लड़ाई में आगे क्या होगा?
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अमर उजाला
विस्तार
राजस्थान में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए अभी से राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। हर बार की तरह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच हो सकती है। एक ओर भाजपा सत्ता वापसी की कोशिश में लगी है तो दूसरी ओर कांग्रेस भी आंतरिक लड़ाई से उभर कर राज बदलने का रिवाज बदलने की कोशिश में लगी है।इसी कोशिश के तहत सोमवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट की हाईकमान के सामने पेशी हुई। दोनों के बीच तकरार खत्म करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल समेत कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में करीब चार घंटे तक बैठक चली। गहलोत और पायलट भी मौजूद रहे।
इसके बाद दोनों केसी वेणुगोपाल के साथ बाहर आए। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बैठक की जानकारी दी। कहा, 'हमने तय किया है कि राजस्थान में एकजुट होकर संयुक्त रूप से विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे और कांग्रेस को जीत दिलाएंगे। अशोक गहलोत व सचिन पायलट दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ने के प्रस्ताव पर सहमति जताई है। ये दोनों नेता साथ मिलकर चुनाव मैदान में जाएंगे।' विवाद पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा, 'दोनों (सचिन पायलट और अशोक गहलोत) ने इसका फैसला कांग्रेस हाईकमान पर छोड़ा है।'
हालांकि, सवाल अभी भी वही बने हुए हैं। क्या वाकई गहलोत और पायलट की लंबी लड़ाई अब खत्म हो चुकी है? आखिर कांग्रेस ने गहलोत और पायलट के बीच सुलह का कौन सा फॉर्मूला तय किया है? दोनों की लड़ाई में अब आगे क्या होगा? आइए जानते हैं...
पहले जानिए गहलोत-पायलट की लड़ाई कब शुरू हुई?
दोनों के बीच विवाद ने तेजी तब पकड़ी जब 2018 में कांग्रेस ने राजस्थान में जीत हासिल की। 2018 चुनाव तक सचिन पायलट कांग्रेस राजस्थान के अध्यक्ष हुआ करते थे। तब उस जीत में पायलट की भूमिका सबसे अहम मानी गई थी। नतीजे आने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि पायलट ही मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अशोक गहलोत ने बाजी मार ली। कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया और पायलट को उप-मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन दोनों के बीच तकरार जारी रही। ये तकरार इतनी बढ़ी कि 2020 में सचिन पायलट 25 विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गए।
उस वक्त कहा जा रहा था कि पायलट पार्टी तोड़ सकते हैं। हालांकि, उनके पास संख्या बल नहीं थी। इसके चलते उन्हें वापस राजस्थान लौटना पड़ा। पायलट के हाथ से डिप्टी सीएम का पद गया और पार्टी में वह कमजोर भी पड़ गए। किसी तरह उन्होंने फिर से पार्टी में मजबूती हासिल की, लेकिन इन तीन सालों में पायलट और गहलोत के बीच जुबानी जंग जारी रही।
दोनों एक-दूसरे के खिलाफ जमकर भड़ास निकालते रहे। कुछ समय पहले पायलट ने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाते हुए पैदल यात्रा निकाली। एक दिन के मौन अनशन पर भी बैठे। अब उन्होंने बड़े स्तर पर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू करने का एलान कर दिया था। 15 मई को उन्होंने अपनी मांगों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को 15 दिन का समय दिया। 15 दिन पूरे होने से पहले कांग्रेस हाईकमान ने बीचबचाव किया और दोनों को दिल्ली बुलाकर बैठक की।
2018 से अब तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच इस तरह की सुलह कई बार हो चुकी है। हर बार यही कहा जाता है कि अब सबकुछ ठीक होगा और कांग्रेस फिर से एकजुट होकर लड़ेगी। हालांकि, कुछ समय बाद ही फिर से चीजें पुराने ढर्रे पर चली जाती हैं।
दोनों के बीच विवाद ने तेजी तब पकड़ी जब 2018 में कांग्रेस ने राजस्थान में जीत हासिल की। 2018 चुनाव तक सचिन पायलट कांग्रेस राजस्थान के अध्यक्ष हुआ करते थे। तब उस जीत में पायलट की भूमिका सबसे अहम मानी गई थी। नतीजे आने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि पायलट ही मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अशोक गहलोत ने बाजी मार ली। कांग्रेस हाईकमान ने गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया और पायलट को उप-मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन दोनों के बीच तकरार जारी रही। ये तकरार इतनी बढ़ी कि 2020 में सचिन पायलट 25 विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गए।
उस वक्त कहा जा रहा था कि पायलट पार्टी तोड़ सकते हैं। हालांकि, उनके पास संख्या बल नहीं थी। इसके चलते उन्हें वापस राजस्थान लौटना पड़ा। पायलट के हाथ से डिप्टी सीएम का पद गया और पार्टी में वह कमजोर भी पड़ गए। किसी तरह उन्होंने फिर से पार्टी में मजबूती हासिल की, लेकिन इन तीन सालों में पायलट और गहलोत के बीच जुबानी जंग जारी रही।
दोनों एक-दूसरे के खिलाफ जमकर भड़ास निकालते रहे। कुछ समय पहले पायलट ने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाते हुए पैदल यात्रा निकाली। एक दिन के मौन अनशन पर भी बैठे। अब उन्होंने बड़े स्तर पर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू करने का एलान कर दिया था। 15 मई को उन्होंने अपनी मांगों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को 15 दिन का समय दिया। 15 दिन पूरे होने से पहले कांग्रेस हाईकमान ने बीचबचाव किया और दोनों को दिल्ली बुलाकर बैठक की।
2018 से अब तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच इस तरह की सुलह कई बार हो चुकी है। हर बार यही कहा जाता है कि अब सबकुछ ठीक होगा और कांग्रेस फिर से एकजुट होकर लड़ेगी। हालांकि, कुछ समय बाद ही फिर से चीजें पुराने ढर्रे पर चली जाती हैं।
दिल्ली में हुई बैठक के बाद क्या बोले दोनों नेता?
सोमवार को दिल्ली में हुई बैठक के बाद सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों मीडिया के सामने तो आए, लेकिन कोई बयान नहीं दिया। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ही बैठक के बारे में मीडिया को जानकारी दी। हालांकि, इस बीच पायलट और गहलोत मुस्कुराते जरूर नजर आए।
हालांकि, कुछ समय बाद गहलोत ने इस मसले पर पहला बयान दिया। गहलोत से पूछा गया कि क्या उन्हें भरोसा है कि पायलट उनके साथ मिलकर काम करेंगे। इसपर उन्होंने कहा, 'अगर वे (सचिन पायलट) पार्टी में हैं तो साथ मिलकर काम क्यों नहीं करेंगे?'
जब उनसे काउंटर सवाल किया गया कि उनकी (पायलट की) क्या भूमिका होगी, इस पर गहलोत ने कहा कि भूमिका हाईकमान की होती है। मेरे लिए पद मायने नहीं रखता है। मैं तीन बार मुख्यमंत्री रहा, मैंने काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आज मेरी ड्यूटी है, मैं उस दिशा में काम करूं कि सरकार कैसे रिपीट हो, हाईकमान भी यही चाहता है। मैंने जनता के लिए बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं, मुझे लगता है कि जनता इस बार सरकार रिपीट करेगी।
सोमवार को दिल्ली में हुई बैठक के बाद सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों मीडिया के सामने तो आए, लेकिन कोई बयान नहीं दिया। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ही बैठक के बारे में मीडिया को जानकारी दी। हालांकि, इस बीच पायलट और गहलोत मुस्कुराते जरूर नजर आए।
हालांकि, कुछ समय बाद गहलोत ने इस मसले पर पहला बयान दिया। गहलोत से पूछा गया कि क्या उन्हें भरोसा है कि पायलट उनके साथ मिलकर काम करेंगे। इसपर उन्होंने कहा, 'अगर वे (सचिन पायलट) पार्टी में हैं तो साथ मिलकर काम क्यों नहीं करेंगे?'
जब उनसे काउंटर सवाल किया गया कि उनकी (पायलट की) क्या भूमिका होगी, इस पर गहलोत ने कहा कि भूमिका हाईकमान की होती है। मेरे लिए पद मायने नहीं रखता है। मैं तीन बार मुख्यमंत्री रहा, मैंने काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आज मेरी ड्यूटी है, मैं उस दिशा में काम करूं कि सरकार कैसे रिपीट हो, हाईकमान भी यही चाहता है। मैंने जनता के लिए बहुत सारी योजनाएं बनाई हैं, मुझे लगता है कि जनता इस बार सरकार रिपीट करेगी।
तो क्या पायलट और गहलोत के बीच की लड़ाई खत्म हो चुकी है?
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'पायलट और गहलोत के बीच की ये लड़ाई कोई नई बात नहीं है। दोनों का अलग-अलग गुट है, जो एक-दूसरे पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ता है।'
प्रो. अजय कहते हैं, 'अभी ये देखना होगा कि आखिर दोनों के बीच सुलह के लिए फॉर्मूला क्या बन रहा है? सोमवार को हुई बैठक में तो सिर्फ कुछ दिनों के लिए एकजुट रहने के लिए कहा गया होगा। असल तस्वीर तो तब सामने आएगी, जब सुलह का फॉर्मूला तय होगा। दोनों नेता इस फॉर्मूले के बाद ही अपना आगे का भविष्य तय करेंगे।'
प्रो. सिंह के अनुसार, 'पायलट ने हाईकमान से साफ बोल दिया है कि वह गहलोत की अगुआई में काम नहीं कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी कर्नाटक का फॉर्मूला यहां भी लागू कर सकती है। दोनों को चुनाव तक शांत रहने के लिए कहा जा सकता है। अगर चुनाव बाद पार्टी को बहुमत मिलता है तो पद पर बात होगी।'
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'पायलट और गहलोत के बीच की ये लड़ाई कोई नई बात नहीं है। दोनों का अलग-अलग गुट है, जो एक-दूसरे पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ता है।'
प्रो. अजय कहते हैं, 'अभी ये देखना होगा कि आखिर दोनों के बीच सुलह के लिए फॉर्मूला क्या बन रहा है? सोमवार को हुई बैठक में तो सिर्फ कुछ दिनों के लिए एकजुट रहने के लिए कहा गया होगा। असल तस्वीर तो तब सामने आएगी, जब सुलह का फॉर्मूला तय होगा। दोनों नेता इस फॉर्मूले के बाद ही अपना आगे का भविष्य तय करेंगे।'
प्रो. सिंह के अनुसार, 'पायलट ने हाईकमान से साफ बोल दिया है कि वह गहलोत की अगुआई में काम नहीं कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी कर्नाटक का फॉर्मूला यहां भी लागू कर सकती है। दोनों को चुनाव तक शांत रहने के लिए कहा जा सकता है। अगर चुनाव बाद पार्टी को बहुमत मिलता है तो पद पर बात होगी।'