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Kargil Hero Saurabh Kalia: बलिदान के 26 साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ, पिता PAK के खिलाफ ICJ में चाहते हैं एक्शन
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Sun, 29 Jun 2025 06:19 PM IST
सार
Kargil Hero Saurabh Kalia: कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान के 26 साल के बाद भी उनके पिता पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका आरोप है कि पाकिस्तान ने जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए कैप्टन कालिया और उनके साथियों के साथ बर्बरता की थी।
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कैप्टन सौरभ कालिया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
कारगिल युद्ध में कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान को 26 साल हो गए हैं, लेकिन उनके पिता आज भी पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में घसीटने की कोशिशों में जुटे हैं। उनके पिता का आरोप है कि पाकिस्तान ने जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए उनके बेटे के साथ अमानवीय अत्याचार किया था। आज कैप्टन कालिया का 49वां जन्म होता। इस मौके पर उनके पिता डॉ. एन. कालिया (78 वर्षीय) ने एक बार फिर अपने बेटे की वीरता को याद किया। वह अब भी न्याय की उम्मीद में हैं।
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डॉ. एन. कालिया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
जघन्य अपराध के दोषियों को जरूर मिलेगी सजा: एन कालिया
डॉ. कालिया हिमालयन जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) से सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे देश की न्याय प्रणाली और राजनीतिक नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। मैं उम्मीद करता हूं कि इस जघन्य अपराध के दोषियों को एक दिन सजा जरूर मिलेगी।' पिता ने याद करते हुए कहा, 'उनके अतुल्य बलिदान ने सोई हुई पूरी कौम को जगाया है और देशभक्ति की आग को फिर से जला दिया है।'
डॉ. कालिया हिमालयन जैव संसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) से सेवानिवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे देश की न्याय प्रणाली और राजनीतिक नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। मैं उम्मीद करता हूं कि इस जघन्य अपराध के दोषियों को एक दिन सजा जरूर मिलेगी।' पिता ने याद करते हुए कहा, 'उनके अतुल्य बलिदान ने सोई हुई पूरी कौम को जगाया है और देशभक्ति की आग को फिर से जला दिया है।'
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डॉ. एन. कालिया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
टोही मिशन पर जवानों के साथ गए थे कैप्टन कालिया
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया 4-जाट रेजिमेंट से थे। मई 1999 के तीसरे हफ्ते में कारगिल के काकसर इलाके में एक टोही (गोपनीय निगरानी) मिशन पर अपने पांच जवानों के साथ गए थे। लेकिन वह लापता हो गए और पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के 'स्कर्दू रेडियो' पर सुनाई दी।
ये भी पढ़ें: ऑपरेशन सिंदूर के 52 दिन बाद भी सवाल उठा रहे राहुल गांधी, गृह मंत्री अमित शाह ने लिया आड़े हाथ
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया 4-जाट रेजिमेंट से थे। मई 1999 के तीसरे हफ्ते में कारगिल के काकसर इलाके में एक टोही (गोपनीय निगरानी) मिशन पर अपने पांच जवानों के साथ गए थे। लेकिन वह लापता हो गए और पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के 'स्कर्दू रेडियो' पर सुनाई दी।
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डॉ. एन. कालिया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
पाकिस्तान ने बर्बरता की सारी हदें पार कीं
नौ जून को उनके और साथियों अर्जुन राम, बनवार लाल, भीकाराम, मूला राम और नरेश सिंह के पार्थिव शरीर भारत को सौंपे गए। 10 जून को पीटीआई ने यह खबर दी कि पाकिस्तान ने भारतीय जवानों के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। इन शवों के कई अंग नहीं थे। आंखें निकाल दी गई थीं, नाक, कान और गुप्तांग काट दिए गए थे। इतिहास में भारत-पाक युद्धों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय संधियों का घोर उल्लंघन करार दिया।
नौ जून को उनके और साथियों अर्जुन राम, बनवार लाल, भीकाराम, मूला राम और नरेश सिंह के पार्थिव शरीर भारत को सौंपे गए। 10 जून को पीटीआई ने यह खबर दी कि पाकिस्तान ने भारतीय जवानों के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। इन शवों के कई अंग नहीं थे। आंखें निकाल दी गई थीं, नाक, कान और गुप्तांग काट दिए गए थे। इतिहास में भारत-पाक युद्धों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय संधियों का घोर उल्लंघन करार दिया।
कैप्टन सौरभ कालिया का घर।
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
कैप्टन कालिया याद में बना गया संग्रहालय
उनके परिवार को आज भी देशभर से भरपूर समर्थन और स्नेह मिलता है। डॉ कालिया कहते हैं, 'लोगों ने हमें बहुत प्रेम और सम्मान दिया है। भारत ही नहीं, विदेश से भी समर्थन मिला है। पालमपुर स्थित उनके घर में कैप्टन कालिया की याद में एक संग्रहालय भी बनाया गया है, जहां हर साल करीब 600-800 लोग आते हैं।' वह बताते हैं, 'अजनबी लोग कहते हैं कि हमने कैप्टन कालिया के बारे में बहुत सुना है, अब यहां आकर अच्छा लगा।'
उनके परिवार को आज भी देशभर से भरपूर समर्थन और स्नेह मिलता है। डॉ कालिया कहते हैं, 'लोगों ने हमें बहुत प्रेम और सम्मान दिया है। भारत ही नहीं, विदेश से भी समर्थन मिला है। पालमपुर स्थित उनके घर में कैप्टन कालिया की याद में एक संग्रहालय भी बनाया गया है, जहां हर साल करीब 600-800 लोग आते हैं।' वह बताते हैं, 'अजनबी लोग कहते हैं कि हमने कैप्टन कालिया के बारे में बहुत सुना है, अब यहां आकर अच्छा लगा।'
कैप्टन सौरभ कालिया
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं कैप्टन कालिया के भाई
कैप्टन कालिया के छोटे भाई वैभव कालिया कृषि विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान विभाग में पढ़ाते हैं। वह बताते हैं कि लोग अब भी बलिदानियों को याद रखते हैं। बच्चों में भी काफी उत्साह दिखता है। वैभव कालिया के दोनों बेटे भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। बड़ा बेटा कृषि में बीएससी कर रहा है और एनसीसी में है, जबकि छोटा बेटा एनडीए की तैयारी कर रहा है। वह कहते हैं, 'अगर मेरे दोनों बेटे ईमानदारी से सेना में जाने की कोशिश करें, तो मुझे बहुत खुशी होगी।'
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'मां तुम देखना.. पूरी दुनिया में मेरा नाम होगा'
कैप्टन कालिया की मां बहुत दुख को समेटे हुए हैं, लेकिन बेटे की शहादत पर गर्व करती हैं। ड्यूटी पर जाने से पहले कैप्टन कालिया ने मां से फोन पर कहा था- 'मां, तुम देखना, एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि पूरी दुनिया में मेरा नाम होगा।' उनकी यह बात के रूप में सच साबित हुई। भारतीय सेना, उनका परिवार और देशवासी इस नाम को याद रखे हुए है।
कैप्टन कालिया के छोटे भाई वैभव कालिया कृषि विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान विभाग में पढ़ाते हैं। वह बताते हैं कि लोग अब भी बलिदानियों को याद रखते हैं। बच्चों में भी काफी उत्साह दिखता है। वैभव कालिया के दोनों बेटे भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। बड़ा बेटा कृषि में बीएससी कर रहा है और एनसीसी में है, जबकि छोटा बेटा एनडीए की तैयारी कर रहा है। वह कहते हैं, 'अगर मेरे दोनों बेटे ईमानदारी से सेना में जाने की कोशिश करें, तो मुझे बहुत खुशी होगी।'
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'मां तुम देखना.. पूरी दुनिया में मेरा नाम होगा'
कैप्टन कालिया की मां बहुत दुख को समेटे हुए हैं, लेकिन बेटे की शहादत पर गर्व करती हैं। ड्यूटी पर जाने से पहले कैप्टन कालिया ने मां से फोन पर कहा था- 'मां, तुम देखना, एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि पूरी दुनिया में मेरा नाम होगा।' उनकी यह बात के रूप में सच साबित हुई। भारतीय सेना, उनका परिवार और देशवासी इस नाम को याद रखे हुए है।
डॉ. एन कालिया
- फोटो : एएनआई
कैप्टन कालिया के पिता ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
पाकिस्तान की हिरासत में अत्याचार का मुद्दा आज भी एक जटिल कूटनीतिक विषय बना हुआ है। डॉ कालिया ने 2012 में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें मांग की गई थी कि सरकार पाकिस्तान के खिलाफ मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाए। जिनेवा कन्वेंशन युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार की बात करता है, जिसमें यातना, हिंसा या किसी भी तरह की क्रूरता पर सख्त प्रतिबंध है। याचिका में यह भी बताया गया कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों को लगभग दो हफ्तों तक अमानवीय यातना दी गई, जिसकी पुष्टि 11 जून, 1999 की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुई थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनके साहस, देशभक्ति और सहनशक्ति पर आज भी पूरा देश गर्व करता है।
पाकिस्तान की हिरासत में अत्याचार का मुद्दा आज भी एक जटिल कूटनीतिक विषय बना हुआ है। डॉ कालिया ने 2012 में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें मांग की गई थी कि सरकार पाकिस्तान के खिलाफ मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाए। जिनेवा कन्वेंशन युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार की बात करता है, जिसमें यातना, हिंसा या किसी भी तरह की क्रूरता पर सख्त प्रतिबंध है। याचिका में यह भी बताया गया कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों को लगभग दो हफ्तों तक अमानवीय यातना दी गई, जिसकी पुष्टि 11 जून, 1999 की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुई थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उनके साहस, देशभक्ति और सहनशक्ति पर आज भी पूरा देश गर्व करता है।