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सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच ट्विटर पर जंग शुरू?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 28 Nov 2025 12:04 PM IST
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कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच राजनैतिक खींचतान अब खुलकर सामने आ चुकी है। दोनों नेताओं की हालिया सोशल मीडिया पोस्टों ने कांग्रेस हाईकमान के सामने एक बार फिर मुश्किल खड़ी कर दी है।
सत्ता के ढाई साल पूरे होते ही मुख्यमंत्री पद के कथित ‘रोटेशन फॉर्मूले’ ने एक बार फिर राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। यह वही फॉर्मूला है जिसके तहत माना जाता है कि सत्ता साझा करने का वादा हुआ था हालांकि कांग्रेस ने इसे कभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया।
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को लंबे समय से सिद्धारमैया का संभावित उत्तराधिकारी माना जाता रहा है। इसी बीच जब उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि “अपनी बात पर कायम रहना दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है”, तो इसे पार्टी नेतृत्व को किए गए वादे की याद दिलाने वाला सीधा संदेश माना गया।
पोस्ट में शिवकुमार ने संकेत दिया कि चाहे वह जज हों, राष्ट्रपति हों या कोई और हर किसी को अपने शब्द पर टिके रहना चाहिए। राजनीतिक हलकों में इस बयान को सिद्धारमैया और कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाने वाली टिप्पणी के रूप में देखा गया।
शिवकुमार की इस टिप्पणी के कुछ ही घंटों बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी एक्स पर सक्रिय नजर आए। उन्होंने उसी ‘शब्द’ वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए साफ संदेश दिया कि वे सीएम पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं।
सिद्धारमैया ने लिखा, “कर्नाटक की जनता का जनादेश एक क्षण नहीं बल्कि पांच साल की जिम्मेदारी है। एक शब्द तभी शक्ति है जब वह लोगों की जिंदगी बेहतर करे।” उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल (2013–18) की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया और दावा किया कि उस दौरान 165 में से 157 वादे पूरे किए थे।
वहीं मौजूदा कार्यकाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि 593 में से 243 से अधिक वादे पूरे हो चुके हैं और बाकी भी समय से पूरे किए जाएंगे। इस बयान को उनके कार्यकाल पूरा करने के संकल्प की तरह देखा जा रहा है।
कर्नाटक में पार्टी के भीतर फैला संकट नया नहीं है। यह वही ‘ढाई साल का फॉर्मूला’ है जिसने पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस की दो सरकारों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी तनाव पैदा किया था। इन दोनों राज्यों में सत्ता-साझा फॉर्मूले को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि पार्टी को अंततः चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ा और सरकारें बदल गईं।
कर्नाटक में भी माना जाता है कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सत्ता साझा करने की कथित सहमति बनी थी। सिद्धारमैया सरकार के 20 नवंबर को ढाई साल पूरे होने के बाद एक बार फिर यह मुद्दा उभर आया है, हालांकि पार्टी ने इस तरह के किसी समझौते की कभी पुष्टि नहीं की।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस पूरे विवाद पर पहली बार स्पष्ट प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि नेतृत्व परिवर्तन या मुख्यमंत्री से जुड़ा कोई भी फैसला केवल और केवल आलाकमान करेगा। उन्होंने कहा “इस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा की कोई जरूरत नहीं है। पार्टी का निर्णय पार्टी के भीतर होगा।”
खरगे का यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि पार्टी top leadership राज्य इकाई की खींचतान से नाराज है और जल्द ही किसी दिशा में निर्णय ले सकती है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि सत्ता परिवर्तन की शुरुआत भी हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, सिद्धारमैया समर्थक इसे सिर्फ राजनीतिक दवाब की कोशिश बताते हैं। सच्चाई चाहे जो हो, इतना साफ है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है जहां हर बयान, हर शब्द और हर संकेत सत्ता के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। कर्नाटक की राजनीति में अगले कुछ हफ्ते बेहद अहम माने जा रहे हैं।
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