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Kargil Vijay: 17000 फीट ऊंचे 'चोरबत ला' पर दिखा था BSF का पराक्रम, छोटी सैन्य टुकड़ी ने PAK के छक्के छुड़ाए..

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Sat, 26 Jul 2025 11:41 AM IST
सार

कारगिल युद्ध में जहां भारतीय सेना ने दुश्मन को पीछे खदेड़ा, वहीं बीएसएफ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आठ बीएसएफ बटालियन की छोटी टुकड़ी ने 17,000 फीट ऊंचे चोरबत ला को पाक कब्जे से बचाया। भीषण सर्दी और ऑक्सीजन की कमी के बावजूद पोस्ट खाली नहीं की गई। 

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Kargil Vijay small team BSF prevented 17,000 feet high Chorbat La from falling into hands of Pakistan
कारगिल विजय दिवस - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
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कारगिल की लड़ाई की जब बात आती है तो भारतीय सेना के शौर्य का जिक्र होता है। भारत के जांबाज सैनिकों ने कारगिल के अहम ठिकानों तक पहुंच चुके पाकिस्तानी सैनिकों को भारी नुकसान पहुंचाते हुए सीमा से बाहर खदेड़ दिया था। इस लड़ाई में भले ही एक सीमित दायरे में लेकिन सीमा सुरक्षा बल 'बीएसएफ' का भी अहम रोल रहा था। 
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जब पाकिस्तान सेना की घुसपैठ हुई, तब उस क्षेत्र में भारतीय सैन्य बलों की तैनाती थी। 121 (इंडियन) इन्फैंट्री ब्रिगेड, जिसका मुख्यालय कारगिल में था, पारंपरिक रूप से पश्चिम में काओबल गली से पूर्व में चोरबत ला तक नियंत्रण रेखा पर तैनात थी। सेना की इस ब्रिगेड के अधीन चार नियमित सेना इकाइयां और एक बीएसएफ इकाई थी। एकमात्र 'आठ' बीएसएफ बटालियन, जिसका मुख्यालय चेन्नीगुंड में था। कारगिल में बीएसएफ की एक छोटी सी टीम ने विपरीत परिस्थितियों में 18,000 फीट ऊंचे 'चोरबत ला' को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से रोका था।  
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कारगिल में सैन्य बलों की तैनाती
कारगिल की लड़ाई के समय सैन्य बलों की जो तैनाती की गई थी, उसमें द्रास में 16 ग्रेनेडियर्स, काकसर में चार जाट और एक बीएसएफ कंपनी, चेन्निगुंड सुरक्षित क्षेत्र पर स्वतंत्र रूप से तैनात आठ बटालियन बीएसएफ और दो कंपनियां, कारगिल में 10 गढ़ राइफल्स व एक बीएसएफ कंपनी और बटालिक में तीन पंजाब और एक बीएसएफ कंपनी चोरबत-ला अक्ष पर तैनात की गई थी। कारगिल सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर तैनात रहने की जिम्मेदारी सेना और बीएसएफ दोनों पर थी। 

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परिणामस्वरूप, कुछ अग्रिम संरक्षित इलाकों (एफडीएल) पर सेना और कुछ पर बीएसएफ की तैनाती थी। इसके अलावा, नियंत्रण रेखा पर एक विशेष ब्रिगेड को तैनात किया गया था। इनकी जिम्मेदारी का क्षेत्र बड़ा था। सैनिकों की कमी के कारण दोनों अग्रिम संरक्षित इलाकों के बीच काफी दूरी थी। परंपरागत रूप से, भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी समझौते के कारण बटालिक और चोरबत ला के बीच और 118 चोरबत ला के पूर्व में कुछ बड़े अंतरालों पर कभी कब्जा नहीं किया गया था। 

बीएसएफ ने खाली की कोई पोस्ट
बीएसएफ के पूर्व अफसरों के मुताबिक, ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्षों की सेनाओं ने यह मान लिया था कि शांतिकाल में शीतकाल के दौरान उच्च ऊंचाई वाले एफडीएल से पीछे हटना तथा ग्रीष्मकाल के दौरान उन पर पुनः कब्जा करना पारस्परिक रूप से लाभदायक होगा। दूसरी ओर, इन कठिन परिस्थितियों में भी बीएसएफ द्वारा संचालित कोई भी पोस्ट खाली नहीं की गई। यह काकसर, चेन्नीगुंड, कारगिल में फॉरवर्ड डिफेंडेड लोकेलिटीज (एफडीएल) और सेक्टर की सबसे ऊंची चौकी यानी ऐतिहासिक सिल्क रोड के ऊपर 'चोरबत ला' परिसर (17,000 फीट) पर बीएसएफ बटालियन के कब्जे से स्पष्ट होता है। 

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17,000 फीट पर, और विशेष रूप से सर्दियों के दौरान, दुर्लभ हवा में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम होता है। न केवल इस पोस्ट को बरकरार रखा गया, बल्कि आठ बटालियन बीएसएफ के कमांडेंट, एससी नेगी ने पाक सेना के इरादों की आशंका में, वास्तव में ब्रावो-1 नामक एक नई प्रमुख ऊंचाई पर कब्जा करके चोरबत ला परिसर की सुरक्षा को मजबूत किया। 

कंपनी कमांडर के नेतृत्व में 8 से 10 लोगों की टीम
बीएसएफ के पीआरओ के मुताबिक, यह क्षेत्र नियंत्रण रेखा के बहुत करीब था। इस चौकी पर सोनम चेरिंग, सहायक कंपनी कमांडर के नेतृत्व में आठ से दस अत्यंत समर्पित कर्मियों की एक छोटी टीम तैनात थी। अगर इस चौकी पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा होता, तो पूरा 'चोरबत ला' अक्ष दुश्मन के कब्जे में आ जाता। बीएसएफ कमांडेंट नेगी ने भीषण सर्दी में अपने अधिकार क्षेत्र वाली चौकियों का दौरा करके नेतृत्व का उत्कृष्ट उदाहरण भी पेश किया था। 

अपने शीतकालीन दौरे के दौरान, प्रतिबद्ध अधिकारी ने उन जवानों को सर्दियों में वापसी का प्रस्ताव दिया, जिन्होंने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि उनका अधिकारी सर्दियों के चरम पर चौकी का दौरा करने को तैयार है, तो उनके चौकी से अस्थायी रूप से भी पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
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