Khabaron Ke Khiladi: मनरेगा का नाम बदलने पर बवाल, खबरों के खिलाड़ी ने बताया क्या प्रावधानों पर कम हुई बात
संसद के शीतकालीन सत्र में कई बिल पास हुई। इसमें से सबसे ज्यादा चर्चा जी राम जी विधेयक पर जिसे सरकार मनरेगा की जगह लेकर आई है।
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संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने कई विधेयक पास कराए हैं। शुक्रवार को यह सत्र समाप्त हो गया। इस सत्र में सबसे ज्यादा वीबी-जी राम जी विधेयक की चर्चा रही है, जिसे सरकार मनेरगा की जगह लेकर आई है। विधेयक के प्रावधानों से ज्यादा इसके नाम पर विवाद हुआ है। विपक्ष की ओर से विधेयक के विरोध में संसद में धरना तक दिया गया है। इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में इसी पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, पूर्णिमा त्रिपाठी, राकेश शुक्ल और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।
समीर चौगांवकर: 20 साल पहले आई इस योजना के बाद अब तक बहुत सी चीजें बदली हैं। मुझे लगता है कि केंद्र को लगा होगा कि इसे नए बदलाव और नए नाम के साथ लाना चाहिए। इसलिए ये योजना आई है। इसमें बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो मनमोहन सिंह सरकार के वक्त थीं वो भी हैं और बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो इसमें नई हैं। केंद्र अलग कुछ लेकर आएगी कि तो वो चाहेगी कि उसका नाम बदले। विपक्ष को योजना के तथ्यों पर चर्चा करनी चाहिए थी न कि सिर्फ नाम के कारण विवाद करना चाहिए।
अनुराग वर्मा: महात्मा गांधी का नाम किसी संस्थान में या योजना में होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। महात्मा गांधी को नोबेल नहीं मिला तो इससे महात्मा गांधी का कद कम नहीं होता। उससे नोबेल छोटा होता है। 20 साल से कोई योजना चली आ रही है, 20 साल से आपके घर में कोई चीज होती है तो आप उसमें भी बदलाव करते हैं। सरकारें ऐसा करने से डरती हैं, लेकिन ये किया गया। राहुल इस पर यात्रा करने की बात कही जा रही है, उन्होंने जितनी यात्राएं की क्या उससे कुछ बदला ये देखना होगा। मुझे नहीं लगता है कि राहुल गांधी की यात्राओं से कांग्रेस या राहुल गांधी की छवि में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ हो।
रामकृपाल सिंह: उत्तर प्रदेश के गांवों में ग्राम सभा की जमीन बची नहीं है। मनरेगा में कई ऐसे लूपहोल्स थे। ये जो लूपहोल्स थे उस पर काम करना जरूरी थी। योजना का नाम क्या है मैं उस पर नहीं जाता। मेरा कहना है कि पैसा जरूर जाए, लेकिन उस पैसे को जिसे दिया जा रहा है क्या वो उसे प्रोडक्टिव बना रहा है ये देखा जाना चाहिए।
पूर्णिमा त्रिपाठी: कोई भी प्रोग्राम 20 साल से चल रहा है तो उसका रिव्यू करना ही चाहिए। भाजपा अगर उस प्रोग्राम का नाम बदलना चाहती है तो उसे हम कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन जो 60:40 वाली बात है तो राज्यों के पास रिसोर्स नहीं हैं। ऐसे में इस योजना की एफिक्टिवनेस पर भी सवाल खड़ा होगा। दूसरा जो 60 दिन बुवाई कटाई के लिए जो ब्रेक दिया गया है उस दौरान जो लोग इस काम में नहीं लगेंगे उनके लिए क्या व्यसव्था की गई है ये देखना होगा। तीसरा भ्रष्टाचार को कम करने के लिए इसमें क्या प्रयास किए गए हैं ये मुझे समझ नहीं आया।
राकेश शुक्ल: मेरा मानना है कि राज्य सरकार की सहभागिता का मतलब होता है कि आप अपनी जिम्मेदारी को समझें। जो महात्मा गांधी के नाम को लेकर आपत्ति है। उसमें मैं दो चीजें कहूंगा। अगर विपक्ष महात्मा गांधी के नाम पर धरना करने के बजाय अगर प्रावधानों पर बात होती तो मुझे लगता है कि वो ज्यादा व्यवहारिक होता। मुझे लगता है कि विपक्ष व्यवहारिक पक्ष पर आता तो उसका असर ज्यादा पड़ता।
विनोद अग्निहोत्री: रिव्यू तो कायदे से हर योजना का हर 10 साल पर होना चाहिए। रिव्यू के जरिए जो कमियां हों उन्हें दूर करना चाहिए। कोरोना के समय मनरेगा ने बहुत मदद की। ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के जरिए पैसा भी गया है। भ्रष्टाचार तो हर योजना में है, लेकिन ये भी सच है इस योजना के जरिए गांवों में पैसा पहुंचा है। जो फंड एलोकेशन हुआ है उससे मुझे लगता है कि उससे इस योजना के क्रियान्वयन में दिक्कत तो आएगी। तब शायद विपक्ष इसे उठा सकता है। बाकी योजना का नाम अगर नहीं बदला जाता तो ज्यादा बेहतर होता।