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Khabron Ke Khiladi: NCP की फूट से कांग्रेस का फायदा, BJP को क्या मिला? जानें विश्लेषकों की राय
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Sat, 08 Jul 2023 09:02 PM IST
सार
Khabron Ke Khiladi: पिछले हफ्ते महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ। शिवसेना के बाद एनसीपी में पड़ी फूट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। अमर उजाला के विशेष शो 'खबरों के खिलाड़ी' के जरिए जानिए इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषकों की राय...
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खबरों के खिलाड़ी
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उससे देश में एक नई चर्चा छिड़ गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या एनसीपी में फूट पड़ने और अजित पवार खेमे के भाजपा के साथ जाने का असर विपक्षी एकता पर पड़ेगा? एनसीपी में पड़ी फूट से किसे कितना फायदा होगा? भाजपा को इससे क्या मिला? क्या अब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एकसाथ आ सकते हैं? ऐसे ही तमाम सवालों पर अपनी राय रखने के लिए इस बार अमर उजाला के विशेष शो खबरों के खिलाड़ी में वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री, गीता भट्ट, हर्षवर्धन त्रिपाठी, प्रेम कुमार और समीर चौंगावकर मौजूद रहे। यह चुनावी चर्चा अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर लाइव हो चुकी है। इसे रविवार सुबह नौ बजे भी देखा जा सकता है। जानिए विश्लेषकों की राय...
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गीता भट्ट
'भारत में जितने क्षेत्रीय दल हैं, उन सब में कहीं न कहीं परिवारवाद और वंशवाद हावी है। ये एक तरह से राजनीतिक फॉलआउट है। राजनीतिक परिवार में वर्चस्व की लड़ाई हमेशा हावी रहती है। क्षेत्रीय दलों में पड़ने वाली फूट का ये एक बड़ा कारण होता है। महाराष्ट्र के अंदर शिवसेना और फिर एनसीपी में पड़ी फूट भी इसका बड़ा उदाहरण है। हालांकि, सिर्फ यही कारण नहीं है। 2024 लोकसभा और फिर महाराष्ट्र के स्थानीय चुनाव को देखते हुए भी ये सियासी उलटफेर हो रहे हैं।'
'एनसीपी में अजित पवार और विधायकों के एक बड़े गुट का बागी होना कहीं न कहीं शरद पवार के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी काफी मजबूत रही है। अभी देश की आबादी में ज्यादा संख्या 30 साल से कम उम्र के लोगों की है। ऐसे में हर राजनीतिक दल युवा वोटर्स को केंद्र में रखकर ही अपनी रणनीति तैयार कर रही है। एनसीपी में अजित पवार को ये होता दिख नहीं रहा था, यही कारण है कि उन्होंने अपनी अलग राह पकड़ ली।'
'महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, उसका असर राष्ट्रीय स्तर पर भी दिख रहा है। जनता के पास ये संदेश जा रहा है कि जो लोग अपनी एक पार्टी ही नहीं चला पा रहे हैं, वो आगे कई पार्टियों के साथ मिलकर सरकार कैसे चलाएंगे? इस घटनाक्रम से ये भी साफ हो गया है कि विपक्षी एकता की नींव कितनी कच्ची है।'
'भारत में जितने क्षेत्रीय दल हैं, उन सब में कहीं न कहीं परिवारवाद और वंशवाद हावी है। ये एक तरह से राजनीतिक फॉलआउट है। राजनीतिक परिवार में वर्चस्व की लड़ाई हमेशा हावी रहती है। क्षेत्रीय दलों में पड़ने वाली फूट का ये एक बड़ा कारण होता है। महाराष्ट्र के अंदर शिवसेना और फिर एनसीपी में पड़ी फूट भी इसका बड़ा उदाहरण है। हालांकि, सिर्फ यही कारण नहीं है। 2024 लोकसभा और फिर महाराष्ट्र के स्थानीय चुनाव को देखते हुए भी ये सियासी उलटफेर हो रहे हैं।'
'एनसीपी में अजित पवार और विधायकों के एक बड़े गुट का बागी होना कहीं न कहीं शरद पवार के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र में एनसीपी काफी मजबूत रही है। अभी देश की आबादी में ज्यादा संख्या 30 साल से कम उम्र के लोगों की है। ऐसे में हर राजनीतिक दल युवा वोटर्स को केंद्र में रखकर ही अपनी रणनीति तैयार कर रही है। एनसीपी में अजित पवार को ये होता दिख नहीं रहा था, यही कारण है कि उन्होंने अपनी अलग राह पकड़ ली।'
'महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, उसका असर राष्ट्रीय स्तर पर भी दिख रहा है। जनता के पास ये संदेश जा रहा है कि जो लोग अपनी एक पार्टी ही नहीं चला पा रहे हैं, वो आगे कई पार्टियों के साथ मिलकर सरकार कैसे चलाएंगे? इस घटनाक्रम से ये भी साफ हो गया है कि विपक्षी एकता की नींव कितनी कच्ची है।'
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विनोद अग्निहोत्री
'क्षेत्रीय पार्टियों में फूट का कारण सिर्फ परिवारवाद और वंशवाद होता है, ऐसा कहना गलत होगा। भाजपा में भी निचले स्तर पर काफी परिवारवाद है। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा वंशवादी राजनीतिक दलों के साथ नहीं गई हो। अकाली दल से लेकर शिवसेना और अब एनसीपी तक कई उदाहरण हैं। ऐसे में एनसीपी के अंदर जो कुछ हो रहा है, उसके लिए परिवारवाद को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। दरअसल, भाजपा के लिए 2024 में दो-तीन राज्यों में मुश्किलें खड़ी होती दिख रहीं है। महाराष्ट्र, बिहार इनमें से एक है। महाराष्ट्र में क्षेत्रीय पहचान शिवसेना और एनसीपी की थी। दोनों को तोड़कर भाजपा ने अपना काम कर दिया। शिवसेना के साथ प्रयोग किया और सफल होने पर एनसीपी के साथ भी ऐसा कर दिया। ये सबकुछ 2024 को दुरूस्त करने की रणनीति के तहत किया गया है।'
'आंकड़ों पर नजर डालें तो संख्याबल के हिसाब से महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार मजबूत हुई है। हालांकि, एनसीपी के आने से भाजपा और शिवसेना गठबंधन के बीच अंदरूनी खींचतान और बढ़ेगी। ये किसी भी सरकार के लिए मुसीबत की घड़ी होगी। इससे सरकार का कामकाज प्रभावित होगा। अभी ऊपर से सरकार जरूर मजबूत दिखेगी, लेकिन अंदर से ये डगमगाएगी। अगर सही ढंग से तालमेल न हो तो दिक्कत बढ़ेगी। यही दिक्कत कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी की सरकार में भी थी। हालांकि, इस बीच ये जरूर है कि ये सरकार टूटेगी नहीं।'
'एनसीपी और शिवसेना में बगावत का असर भाजपा पर भी पड़ सकता है। कर्नाटक इसका बड़ा उदाहरण है। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायक जो भाजपा में शामिल हुए थे, वो सारे चुनाव हार गए। ऐसे में अगर चुनाव तक कोई बड़ा मुद्दा नहीं आता है तो जरूर कर्नाटक की तरह महाराष्ट्र में भी बागी विधायकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।'
'अजित पवार और शरद पवार का रिश्ता राजनीतिक के साथ-साथ पारिवारिक भी है। अजित पवार को राजनीति में शरद पवार ही लेकर आए। उन्हें पुत्र के तरह आगे बढ़ाया। सुप्रिया को लेकर आए तो उनके मन में यही था कि भाई-बहन पार्टी को आगे बढ़ाएंगे। उसके बाद भी वह अजित पवार को आगे बढ़ाते रहे। लेकिन अजित महत्वाकांक्षी निकले। अजित पवार के इरादों को शरद पवार भांप गए थे। यह भांपने के बाद ही उन्होंने तय किया था कि अगर अजित को अध्यक्ष बना लिया तो वह तो पूरी पार्टी ही लेकर चले जाएंगे।'
'क्षेत्रीय पार्टियों में फूट का कारण सिर्फ परिवारवाद और वंशवाद होता है, ऐसा कहना गलत होगा। भाजपा में भी निचले स्तर पर काफी परिवारवाद है। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा वंशवादी राजनीतिक दलों के साथ नहीं गई हो। अकाली दल से लेकर शिवसेना और अब एनसीपी तक कई उदाहरण हैं। ऐसे में एनसीपी के अंदर जो कुछ हो रहा है, उसके लिए परिवारवाद को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। दरअसल, भाजपा के लिए 2024 में दो-तीन राज्यों में मुश्किलें खड़ी होती दिख रहीं है। महाराष्ट्र, बिहार इनमें से एक है। महाराष्ट्र में क्षेत्रीय पहचान शिवसेना और एनसीपी की थी। दोनों को तोड़कर भाजपा ने अपना काम कर दिया। शिवसेना के साथ प्रयोग किया और सफल होने पर एनसीपी के साथ भी ऐसा कर दिया। ये सबकुछ 2024 को दुरूस्त करने की रणनीति के तहत किया गया है।'
'आंकड़ों पर नजर डालें तो संख्याबल के हिसाब से महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार मजबूत हुई है। हालांकि, एनसीपी के आने से भाजपा और शिवसेना गठबंधन के बीच अंदरूनी खींचतान और बढ़ेगी। ये किसी भी सरकार के लिए मुसीबत की घड़ी होगी। इससे सरकार का कामकाज प्रभावित होगा। अभी ऊपर से सरकार जरूर मजबूत दिखेगी, लेकिन अंदर से ये डगमगाएगी। अगर सही ढंग से तालमेल न हो तो दिक्कत बढ़ेगी। यही दिक्कत कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी की सरकार में भी थी। हालांकि, इस बीच ये जरूर है कि ये सरकार टूटेगी नहीं।'
'एनसीपी और शिवसेना में बगावत का असर भाजपा पर भी पड़ सकता है। कर्नाटक इसका बड़ा उदाहरण है। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायक जो भाजपा में शामिल हुए थे, वो सारे चुनाव हार गए। ऐसे में अगर चुनाव तक कोई बड़ा मुद्दा नहीं आता है तो जरूर कर्नाटक की तरह महाराष्ट्र में भी बागी विधायकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।'
'अजित पवार और शरद पवार का रिश्ता राजनीतिक के साथ-साथ पारिवारिक भी है। अजित पवार को राजनीति में शरद पवार ही लेकर आए। उन्हें पुत्र के तरह आगे बढ़ाया। सुप्रिया को लेकर आए तो उनके मन में यही था कि भाई-बहन पार्टी को आगे बढ़ाएंगे। उसके बाद भी वह अजित पवार को आगे बढ़ाते रहे। लेकिन अजित महत्वाकांक्षी निकले। अजित पवार के इरादों को शरद पवार भांप गए थे। यह भांपने के बाद ही उन्होंने तय किया था कि अगर अजित को अध्यक्ष बना लिया तो वह तो पूरी पार्टी ही लेकर चले जाएंगे।'
हर्षवर्धन त्रिपाठी
'भाजपा के लिए बिहार और महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दल बड़ी चुनौती बनते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, उसकी बुनियाद खुद उद्धव ठाकरे ने ही रखी। 2019 में उन्होंने राजनीतिक ईमानदारी नहीं दिखाई। ये गद्दारी उद्धव ठाकरे ने की थी। शिवसेना और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इसलिए शिवसेना और फिर एनसीपी में पड़ी फूट के लिए भाजपा को दोषी ठहराना गलत होगा। हां, ये जरूर है कि अमित शाह ने इन सबमें चाणक्य की भूमिका निभाई। अमित शाह शरद पवार को राजनीतिक हैसियत दिखा रहे हैं। वह दिल्ली से तय कर रहे हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति कैसे हो। महाराष्ट्र की जनता मोदी और भाजपा को पसंद कर रही है। वहीं, क्षेत्रीय स्तर पर महाराष्ट्र के नेता देवेंद्र फडणवीस हैं। फडणवीस को महाराष्ट्र की जनता काफी पसंद करती है।'
'पूरी दुनिया बोल रही है कि भारत की राजनीति राष्ट्रवादी है। देश की राजनीति मजबूत हुई है। एनसीपी का एक बड़ा धड़ा भी यही बोल रहा है। अजित पवार खुलकर बोल रहे हैं कि राष्ट्र का विकास मोदी जी के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता है।'
'एनसीपी के भाजपा और शिवसेना गठबंधन में शामिल होने से महाराष्ट्र की सरकार मजबूत हुई है। कम से कम 2024 तक तो ये मजबूती यूं ही बनी रहेगी। अब एकनाथ शिंदे 200 विधायकों वाली सरकार चला रहे हैं। 2024 के बाद क्या होगा ये किसी को नहीं पता। हां, तब तक भाजपा के लिए बड़ी चुनौती सभी को एकसाथ लेकर चलने की होगी। चुनाव में कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा ये भी भाजपा को ही तय करना होगा।
'सबकुछ स्वार्थ की राजनीति होती है। शरद पवार का कॅरियर ही धोखे पर बना है। शरद पवार ने हमेशा से इसी की राजनीति की है। वह कभी भी नैतिक होकर राजनीति नहीं करते रहे हैं। ऐसे में अब नैतिकता की बात करना ठीक नहीं है। वहीं, भाजपा द्वारा एनसीपी और शिवसेना के साथ गठबंधन करना समय की मांग थी। भाजपा का बहुत ही क्लियर कट फॉर्मूला है कि वह हमेशा अपने बल पर सरकार बनाना चाहती है। जहां जरूरत पड़ती है, वहीं गठबंधन करती है।'
'अजित पवार ने शरद पवार को धोखा नहीं दिया है। अजित पवार की उम्र 62-63 साल हो गई है। वो हमेशा अपने चाचा के साथ लगे रहे। उनकी हर बात मानते रहे। उन्होंने अपने बल पर महाराष्ट्र में एनसीपी को मजबूत किया। एनसीपी में शरद पवार के बाद कोई था तो वह अजित पवार थे। ऐसे में अगर अजित का नेतृत्व चाहना गलत नहीं था।'
'भाजपा के लिए बिहार और महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दल बड़ी चुनौती बनते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, उसकी बुनियाद खुद उद्धव ठाकरे ने ही रखी। 2019 में उन्होंने राजनीतिक ईमानदारी नहीं दिखाई। ये गद्दारी उद्धव ठाकरे ने की थी। शिवसेना और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इसलिए शिवसेना और फिर एनसीपी में पड़ी फूट के लिए भाजपा को दोषी ठहराना गलत होगा। हां, ये जरूर है कि अमित शाह ने इन सबमें चाणक्य की भूमिका निभाई। अमित शाह शरद पवार को राजनीतिक हैसियत दिखा रहे हैं। वह दिल्ली से तय कर रहे हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति कैसे हो। महाराष्ट्र की जनता मोदी और भाजपा को पसंद कर रही है। वहीं, क्षेत्रीय स्तर पर महाराष्ट्र के नेता देवेंद्र फडणवीस हैं। फडणवीस को महाराष्ट्र की जनता काफी पसंद करती है।'
'पूरी दुनिया बोल रही है कि भारत की राजनीति राष्ट्रवादी है। देश की राजनीति मजबूत हुई है। एनसीपी का एक बड़ा धड़ा भी यही बोल रहा है। अजित पवार खुलकर बोल रहे हैं कि राष्ट्र का विकास मोदी जी के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता है।'
'एनसीपी के भाजपा और शिवसेना गठबंधन में शामिल होने से महाराष्ट्र की सरकार मजबूत हुई है। कम से कम 2024 तक तो ये मजबूती यूं ही बनी रहेगी। अब एकनाथ शिंदे 200 विधायकों वाली सरकार चला रहे हैं। 2024 के बाद क्या होगा ये किसी को नहीं पता। हां, तब तक भाजपा के लिए बड़ी चुनौती सभी को एकसाथ लेकर चलने की होगी। चुनाव में कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा ये भी भाजपा को ही तय करना होगा।
'सबकुछ स्वार्थ की राजनीति होती है। शरद पवार का कॅरियर ही धोखे पर बना है। शरद पवार ने हमेशा से इसी की राजनीति की है। वह कभी भी नैतिक होकर राजनीति नहीं करते रहे हैं। ऐसे में अब नैतिकता की बात करना ठीक नहीं है। वहीं, भाजपा द्वारा एनसीपी और शिवसेना के साथ गठबंधन करना समय की मांग थी। भाजपा का बहुत ही क्लियर कट फॉर्मूला है कि वह हमेशा अपने बल पर सरकार बनाना चाहती है। जहां जरूरत पड़ती है, वहीं गठबंधन करती है।'
'अजित पवार ने शरद पवार को धोखा नहीं दिया है। अजित पवार की उम्र 62-63 साल हो गई है। वो हमेशा अपने चाचा के साथ लगे रहे। उनकी हर बात मानते रहे। उन्होंने अपने बल पर महाराष्ट्र में एनसीपी को मजबूत किया। एनसीपी में शरद पवार के बाद कोई था तो वह अजित पवार थे। ऐसे में अगर अजित का नेतृत्व चाहना गलत नहीं था।'
प्रेम कुमार
'महाराष्ट्र की राजनीति में दखल देकर अमित शाह ने दिखा दिया है कि वह दिल्ली से तय करेंगे कि महाराष्ट्र में क्या होगा? लेकिन ये महाराष्ट्र की जनता कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी। जनता नहीं चाहेगी कि दो गुजराती दिल्ली में बैठकर महाराष्ट्र को चलाएं। महाराष्ट्र में पहले शिवसेना और फिर एनसीपी के साथ जो हुआ, उसके चलते भाजपा को नुकसान हो रहा है। उदाहरण के तौर पर देख लीजिए। शिवसेना में फूट पड़ने के बाद से अब तक भाजपा ने एक भी चुनाव नहीं जीता।'
'महाराष्ट्र में जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तब दक्षिणपंथी संगठन मजबूत होता हुआ दिखा था। शिवसेना और भाजपा ने जीत हासिल की थी। दक्षिणपंथी विचारधारा वाली शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। अब भाजपा ने भी एनसीपी की मदद ले ली। ऐसे में ये साबित हो गया कि दक्षिणमंथी सोच कमजोर हो रही है। अगर पराजय हुई है तो ये दक्षिणपंथी विचारधारा की हुई है।'
'शरद पवार ने कभी भी भाजपा की विचारधारा के साथ मिलकर ओपन पॉलिटिक्स नहीं की है। इसको वह बनाकर रखना चाहते थे। इसका कारण दक्षिणपंथी विचारधारा के समांतर कांग्रेस का कब्जा हो रहा है। मतलब भाजपा के एंटी जो वोटर्स हैं, उनके सामने सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही विकल्प के तौर पर बनकर उभरी है। पहले इसमें कई तरह की पार्टियां शामिल हो गईं थीं। अब कांग्रेस के लिए संभावना बढ़ गई है।'
'महाराष्ट्र की राजनीति में दखल देकर अमित शाह ने दिखा दिया है कि वह दिल्ली से तय करेंगे कि महाराष्ट्र में क्या होगा? लेकिन ये महाराष्ट्र की जनता कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी। जनता नहीं चाहेगी कि दो गुजराती दिल्ली में बैठकर महाराष्ट्र को चलाएं। महाराष्ट्र में पहले शिवसेना और फिर एनसीपी के साथ जो हुआ, उसके चलते भाजपा को नुकसान हो रहा है। उदाहरण के तौर पर देख लीजिए। शिवसेना में फूट पड़ने के बाद से अब तक भाजपा ने एक भी चुनाव नहीं जीता।'
'महाराष्ट्र में जब विधानसभा चुनाव हुए थे, तब दक्षिणपंथी संगठन मजबूत होता हुआ दिखा था। शिवसेना और भाजपा ने जीत हासिल की थी। दक्षिणपंथी विचारधारा वाली शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। अब भाजपा ने भी एनसीपी की मदद ले ली। ऐसे में ये साबित हो गया कि दक्षिणमंथी सोच कमजोर हो रही है। अगर पराजय हुई है तो ये दक्षिणपंथी विचारधारा की हुई है।'
'शरद पवार ने कभी भी भाजपा की विचारधारा के साथ मिलकर ओपन पॉलिटिक्स नहीं की है। इसको वह बनाकर रखना चाहते थे। इसका कारण दक्षिणपंथी विचारधारा के समांतर कांग्रेस का कब्जा हो रहा है। मतलब भाजपा के एंटी जो वोटर्स हैं, उनके सामने सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही विकल्प के तौर पर बनकर उभरी है। पहले इसमें कई तरह की पार्टियां शामिल हो गईं थीं। अब कांग्रेस के लिए संभावना बढ़ गई है।'
समीर चौंगावकर
'जब पहली बार महाराष्ट्र के अंदर एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनी थी, उस वक्त भी अजित पवार के पास वित्त मंत्रालय रहा है। महाराष्ट्र में जिसके पास वित्त मंत्रालय रहा है, उसकी पकड़ सरकार पर सबसे ज्यादा रहती है। वित्त मंत्रालय ही विधायकों के लिए बजट जारी करता है। ऐसे में वित्त मंत्रालय को लेकर एनसीपी, भाजपा और शिवसेना के बीच लड़ाई हो सकती है।'
'भाजपा को एनसीपी की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि शिंदे गुट वाली शिवसेना के साथ गठबंधन के बाद काफी कुछ बदला है। भाजपा ने सर्वे करवाया है। इसमें मालूम चला है कि एकनाथ शिंदे के साथ जाने से भाजपा को नुकसान हो रहा है। ऐसे में भाजपा शिंदे का रिप्लेसमेंट चाहती थी। अजित पवार का आना, एकनाथ शिंदे के लिए मैसेज है। दूसरी तरफ भाजपा ने खुद को मजबूत बनाने के लिए भी ऐसा किया।'
'जब एनसीपी का गठन हुआ तो उस समय महाराष्ट्र की राजनीति को शरद ने अजित पवार के भरोसे ही छोड़ दिया था। 2006 के बाद से वह लगातार महाराष्ट्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे। शरद पवार उनके बिना कोई फैसला नहीं लेते थे। सुप्रिया सुले भी जब सियासत में आईं तो उन्होंने भी महाराष्ट्र को लेकर अजित की मंजूरी हमेशा ली। इसी के चलते महाराष्ट्र में अजित पवार मजबूत होते गए। आज उन्हें इसी का फायदा मिल रहा है।'
'जब पहली बार महाराष्ट्र के अंदर एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनी थी, उस वक्त भी अजित पवार के पास वित्त मंत्रालय रहा है। महाराष्ट्र में जिसके पास वित्त मंत्रालय रहा है, उसकी पकड़ सरकार पर सबसे ज्यादा रहती है। वित्त मंत्रालय ही विधायकों के लिए बजट जारी करता है। ऐसे में वित्त मंत्रालय को लेकर एनसीपी, भाजपा और शिवसेना के बीच लड़ाई हो सकती है।'
'भाजपा को एनसीपी की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि शिंदे गुट वाली शिवसेना के साथ गठबंधन के बाद काफी कुछ बदला है। भाजपा ने सर्वे करवाया है। इसमें मालूम चला है कि एकनाथ शिंदे के साथ जाने से भाजपा को नुकसान हो रहा है। ऐसे में भाजपा शिंदे का रिप्लेसमेंट चाहती थी। अजित पवार का आना, एकनाथ शिंदे के लिए मैसेज है। दूसरी तरफ भाजपा ने खुद को मजबूत बनाने के लिए भी ऐसा किया।'
'जब एनसीपी का गठन हुआ तो उस समय महाराष्ट्र की राजनीति को शरद ने अजित पवार के भरोसे ही छोड़ दिया था। 2006 के बाद से वह लगातार महाराष्ट्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे। शरद पवार उनके बिना कोई फैसला नहीं लेते थे। सुप्रिया सुले भी जब सियासत में आईं तो उन्होंने भी महाराष्ट्र को लेकर अजित की मंजूरी हमेशा ली। इसी के चलते महाराष्ट्र में अजित पवार मजबूत होते गए। आज उन्हें इसी का फायदा मिल रहा है।'