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Madras HC: 'मजदूर का पसीना सूखने से पहले मेहनताना दें', पैगम्बर साहब का हवाला देकर कोर्ट का मदुरै निगम को आदेश
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मदुरै
Published by: लव गौर
Updated Sat, 20 Dec 2025 11:34 PM IST
सार
मदुरै नगर निगम को वकील की फीस का भुगतान करने का निर्देश देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने पैगंबर मोहम्मद के एक प्रसिद्ध कथन का उल्लेख किया है।
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मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच (फाइल फोटो)
- फोटो : ANI Photos
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विस्तार
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने पैगम्बर मोहम्मद की एक प्रसिद्ध हदीस 'मजदूर का पसीना सूखने से पहले मेहनताना दें' का हवाला देते हुए मदुरै नगर निगम को अपने पूर्व वकील की लंबित पेशेवर फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन ने अदालतों में एक बार पेश होने के लिए भारी फीस लेने वाले वकीलों की प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक वरिष्ठ वकील को केवल एक बार अदालत में पेश होने के लिए 4 लाख रुपये दिए गए थे।
न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "यूनिवर्सिटी, जो यह दलील दे रही है कि उसकी वित्तीय स्थिति ऐसी है कि वह अपने रिटायर्ड कर्मचारियों का बकाया नहीं दे पा रही है, उसे अपने वकीलों को भारी फीस देने में कोई दिक्कत नहीं होती।" उन्होंने कहा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) छोटे-मोटे मामलों में भी पेश होते थे, जहां उनकी मौजूदगी की सच में जरूरत नहीं थी और जहां "सरकारी वकील का कोई नया वकील भी काम संभाल सकता था।"
उन्होंने कहा, "यह सब कुछ पैसों के लिए है। पेशी दर्ज कराना पैसे का मामला है। अब समय आ गया है कि लॉ अधिकारियों को फीस के भुगतान के संबंध में ऑडिट किया जाए।"
अदालत ने मदुरै नगर निगम के पूर्व स्थायी अधिवक्ता पी. थिरुमलाई की याचिका पर सुनवाई करते हुए निगम की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने 1992 से 2006 तक करीब 14 वर्षों तक निगम की ओर से पैरवी की थी, लेकिन उनकी फीस लंबे समय से लंबित थी। अधिवक्ता के अनुसार, निगम पर 14.07 लाख रुपये बकाया थे, जिनमें से केवल 1.02 लाख रुपये ही अदा किए गए और 13.05 लाख रुपये अब भी बाकी हैं। उन्होंने कुल 818 मामलों में निगम का प्रतिनिधित्व किया था।
जस्टिस स्वामीनाथन ने 19 दिसंबर को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे उसकी मजदूरी दे दो" — यह पवित्र पैगंबर (PBUH) का निर्देश है। यह सिद्धांत निष्पक्षता का एक पहलू है और श्रम न्यायशास्त्र में पूरी तरह लागू होता है। इसे वर्तमान मामले में भी लागू किया जा सकता है। बता दें कि पूर्व स्थायी वकील पी. थिरुमलै ने 2006 में भुगतान की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर की थी।
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मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वामीनाथन ने अदालतों में एक बार पेश होने के लिए भारी फीस लेने वाले वकीलों की प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक वरिष्ठ वकील को केवल एक बार अदालत में पेश होने के लिए 4 लाख रुपये दिए गए थे।
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न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा, "यूनिवर्सिटी, जो यह दलील दे रही है कि उसकी वित्तीय स्थिति ऐसी है कि वह अपने रिटायर्ड कर्मचारियों का बकाया नहीं दे पा रही है, उसे अपने वकीलों को भारी फीस देने में कोई दिक्कत नहीं होती।" उन्होंने कहा कि अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) छोटे-मोटे मामलों में भी पेश होते थे, जहां उनकी मौजूदगी की सच में जरूरत नहीं थी और जहां "सरकारी वकील का कोई नया वकील भी काम संभाल सकता था।"
उन्होंने कहा, "यह सब कुछ पैसों के लिए है। पेशी दर्ज कराना पैसे का मामला है। अब समय आ गया है कि लॉ अधिकारियों को फीस के भुगतान के संबंध में ऑडिट किया जाए।"
अदालत ने मदुरै नगर निगम के पूर्व स्थायी अधिवक्ता पी. थिरुमलाई की याचिका पर सुनवाई करते हुए निगम की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने 1992 से 2006 तक करीब 14 वर्षों तक निगम की ओर से पैरवी की थी, लेकिन उनकी फीस लंबे समय से लंबित थी। अधिवक्ता के अनुसार, निगम पर 14.07 लाख रुपये बकाया थे, जिनमें से केवल 1.02 लाख रुपये ही अदा किए गए और 13.05 लाख रुपये अब भी बाकी हैं। उन्होंने कुल 818 मामलों में निगम का प्रतिनिधित्व किया था।
जस्टिस स्वामीनाथन ने 19 दिसंबर को अपना फैसला सुनाते हुए कहा, "मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे उसकी मजदूरी दे दो" — यह पवित्र पैगंबर (PBUH) का निर्देश है। यह सिद्धांत निष्पक्षता का एक पहलू है और श्रम न्यायशास्त्र में पूरी तरह लागू होता है। इसे वर्तमान मामले में भी लागू किया जा सकता है। बता दें कि पूर्व स्थायी वकील पी. थिरुमलै ने 2006 में भुगतान की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर की थी।