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Bombay High Court: नाबालिग से शादी का मतलब पॉक्सो मामले में राहत नहीं, हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपी की याचिका
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई।
Published by: निर्मल कांत
Updated Tue, 30 Sep 2025 03:15 PM IST
सार
Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग से शादी और बच्चे के जन्म के बावजूद आरोपी के खिलाफ पॉक्सो कानून के तहत दर्ज दुष्कर्म के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग की तथाकथित सहमति का पॉक्सो कानून में कोई महत्व नहीं है और आरोपी का व्यवहार कानून के खिलाफ था।
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बॉम्बे हाईकोर्ट
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कि केवल इसलिए कि आरोपी ने नाबालिग लड़की से शादी कर ली और अब दोनों का एक बच्चा भी है, उसे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामले में बरी नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 26 सितंबर को यह आदेश दिया, जिसमें जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के और जस्टिस नंदेश देशपांडे शामिल थे। आरोपी ने दावा किया था कि वह 17 साल की लड़की के साथ आपसी सहमति से संबंध में था और उसकी शादी तब पंजीकृत की गई, जब लड़की 18 साल की हो गई। लेकिन कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो कानून के तहत नाबालिग के साथ तथाकथित सहमति का कोई महत्व नहीं है।
ये भी पढ़ें: करूर भगदड़: 'रैली के लिए मांगी थी अनुमति, नियमों के अनुसार ही आयोजित हुआ था कार्यक्रम', टीवीके के वकील का बयान
कोर्ट ने उस याचिका को खारिज किया, जिसमें आरोपी और उसके परिजनों ने उनके खिलाफ अकोला पुलिस की ओर से दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), पॉक्सो कानून और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता की उम्र शादी के समय सत्रह साल थी और इस साल मई में उसने एक बच्चे को जन्म दिया। लड़की के परिवार को जब यह पता चला कि उसके साथ यौन शोषण हुआ है, तो उन्होंने आरोपी से उसकी शादी कर दी।
पॉक्सो कानून का उद्देश्य बच्चों को उत्पीड़न से बचाना: हाईकोर्ट
आरोपी ने कहा कि दोनों रिश्ते में थे। शादी लड़की के 18 साल पूरे होने के बाद कानूनी रूप से पंजीकृत की गई थी और अगर उसे सजा होती है तो लड़की और बच्चे को सामाजिक रूप से अस्वीकार कर दिए जाएंगे। लड़की ने भी कोर्ट में आकर कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द करने से कोई आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो कानून का मुख्य उद्देश्य 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न से बचाना है और उन्हें सुरक्षित माहौल देना है।
ये भी पढ़ें: दुष्कर्म मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचा प्रज्वल, दलील- मेल नहीं खाते पीड़िता के बयान
कोर्ट ने कहा, पॉक्सो कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। किशोरों के बीच प्रेम संबंध की आयु सीमा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचार के लिए लंबित है। इस मामले में कोर्ट ने माना कि भले ही शादी इस्लामी रीति-रिवाजों से हुई हो, लेकिन तथ्य यह है कि लड़की शादीके समय 18 साल से कम उम्र की थी। यहां तक कि जब उसने बच्चे को जन्म दिया, तब भी वह 18 साल की नहीं हुई थी।
कोर्ट ने कहा कि जब आरोपी 27 साल का था, तो उसे यह समझ होनी चाहिए थी कि उसे लड़की के 18 साल की होने तक इंतजार करना चाहिए। केवल यह दलील कि अब बच्चा हो गया, इससे आरोपी के गैरकानूनी कृत्यों नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 26 सितंबर को यह आदेश दिया, जिसमें जस्टिस उर्मिला जोशी फाल्के और जस्टिस नंदेश देशपांडे शामिल थे। आरोपी ने दावा किया था कि वह 17 साल की लड़की के साथ आपसी सहमति से संबंध में था और उसकी शादी तब पंजीकृत की गई, जब लड़की 18 साल की हो गई। लेकिन कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो कानून के तहत नाबालिग के साथ तथाकथित सहमति का कोई महत्व नहीं है।
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कोर्ट ने उस याचिका को खारिज किया, जिसमें आरोपी और उसके परिजनों ने उनके खिलाफ अकोला पुलिस की ओर से दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), पॉक्सो कानून और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, पीड़िता की उम्र शादी के समय सत्रह साल थी और इस साल मई में उसने एक बच्चे को जन्म दिया। लड़की के परिवार को जब यह पता चला कि उसके साथ यौन शोषण हुआ है, तो उन्होंने आरोपी से उसकी शादी कर दी।
पॉक्सो कानून का उद्देश्य बच्चों को उत्पीड़न से बचाना: हाईकोर्ट
आरोपी ने कहा कि दोनों रिश्ते में थे। शादी लड़की के 18 साल पूरे होने के बाद कानूनी रूप से पंजीकृत की गई थी और अगर उसे सजा होती है तो लड़की और बच्चे को सामाजिक रूप से अस्वीकार कर दिए जाएंगे। लड़की ने भी कोर्ट में आकर कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द करने से कोई आपत्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो कानून का मुख्य उद्देश्य 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न से बचाना है और उन्हें सुरक्षित माहौल देना है।
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कोर्ट ने कहा, पॉक्सो कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। किशोरों के बीच प्रेम संबंध की आयु सीमा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचार के लिए लंबित है। इस मामले में कोर्ट ने माना कि भले ही शादी इस्लामी रीति-रिवाजों से हुई हो, लेकिन तथ्य यह है कि लड़की शादीके समय 18 साल से कम उम्र की थी। यहां तक कि जब उसने बच्चे को जन्म दिया, तब भी वह 18 साल की नहीं हुई थी।
कोर्ट ने कहा कि जब आरोपी 27 साल का था, तो उसे यह समझ होनी चाहिए थी कि उसे लड़की के 18 साल की होने तक इंतजार करना चाहिए। केवल यह दलील कि अब बच्चा हो गया, इससे आरोपी के गैरकानूनी कृत्यों नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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