पुरानी पेंशन: OPS को लेकर देशभर के सरकारी कर्मियों का दिल्ली कूच, रामलीला मैदान पहुंचने के लिए तत्काल में टिकट
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विस्तार
देश में पुरानी पेंशन बहाली के लिए चल रहा आंदोलन अब जोर पकड़ने लगा है। केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने 10 अगस्त को नई दिल्ली के रामलीला मैदान एक विशाल रैली आयोजित की थी। अब नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) द्वारा एक अक्तूबर को रामलीला मैदान में ही एक विशाल रैली आयोजित की जा रही है। खास बात ये है कि इस रैली में भाग लेने के लिए विभिन्न राज्यों के सरकारी कर्मचारी, दिल्ली पहुंचना शुरू हो गए हैं। महाराष्ट्र एवं दूसरे राज्य, जो दिल्ली से ज्यादा दूरी पर हैं, वहां से सरकारी कर्मियों ने रेल में टिकट बुक कराई है। कर्मचारी, तत्काल में टिकटें लेने को आतुर हैं। एनएमओपीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा है कि 'पुरानी पेंशन' बहाली का मुद्दा, अब जीवन मरण का प्रश्न बन चुका है। एनएमओपीएस के अंतर्गत महाराष्ट्र के सोशल मीडिया इंचार्ज विनायक चौथे ने दावा किया है कि पांच लाख से अधिक केंद्र एवं राज्यों के सरकारी कर्मचारी, दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंचेंगे।
राजधानी से लेकर जिला स्तर तक गूंज
विजय कुमार बंधु के मुताबिक, एक साल से इस रैली की तैयारी हो रही है। विभिन्न राज्यों का दौरा कर सरकारी कर्मियों से दिल्ली पहुंचने की अपील की गई है। कई राज्यों में सरकारी कर्मियों ने अपने-अपने तरीके से ओपीएस की मांग उठाई है। कहीं पर कर्मियों की पदयात्रा तो कहीं साइकिल यात्रा निकाली गईं। राज्यों की राजधानियों से लेकर जिला स्तर पर पुरानी पेंशन बहाली की गूंज सुनाई पड़ी है। पुरानी पेंशन लागू होने से सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा। सरकार, जानबूझकर कर्मियों को परेशान कर रही है। जब पांच राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल हो सकती है, तो पूरे देश में क्यों नहीं। बंधु ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा, हमारे देश की आंतरिक और सीमा की सुरक्षा में तैनात सीएपीएफ जवानों को भी पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है।
एनपीएस में सुधार नहीं, ओपीएस चाहिए
एनएमओपीएस की महाराष्ट्र इकाई के सोशल मीडिया इंचार्ज, विनायक चौथे ने कहा, एक अक्तूबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में ओपीएस की मांग को लेकर हो रही यह विशाल रैली, अभी तक की सबसे बड़ी रैली साबित होगी। रैली में पहुंचने के लिए सरकारी कर्मियों ने ट्रेन में बुकिंग कराई है। देश के विभिन्न हिस्सों में पुरानी पेंशन पर सरकारों के अड़ियल रुख को लेकर कर्मियों में भारी रोष व्याप्त है। विनायक के मुताबिक, यह विशाल रैली, केवल पुरानी पेंशन बहाली के लिए है। इसमें केंद्र सरकार के सभी संगठनों को आमंत्रित किया गया है। एक अक्तूबर की तारीख, जनवरी में ही तय हो चुकी थी। केंद्र सरकार ने जो कमेटी गठित की है, उसमें ओपीएस का तो कहीं पर जिक्र ही नहीं है। वह तो एनपीएस में सुधार के लिए है, जबकि कर्मचारी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें ओपीएस से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। सरकारी कर्मियों का केवल एक ही मकसद है, बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म किया जाए और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल किया जाए। ओपीएस में हर दस साल में वेतन और पेंशन रिवाइज होते हैं। नया वेतन आयोग, अपनी सिफारिशें देता है। ये सब बातें एनपीएस में नहीं होंगी।
भाजपा को उठाना पड़ सकता है सियासी नुकसान
ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा था, लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है, तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है। केंद्र के सभी मंत्रालय/विभाग, रक्षा कर्मी (सिविल), रेलवे, बैंक, डाक, प्रायमरी, सेकेंडरी, कालेज एवं यूनिवर्सिटी टीचर, दूसरे विभागों एवं विभिन्न निगमों और स्वायत्तशासी संगठनों के कर्मचारी, ओपीएस पर एक साथ आंदोलन कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय ने जो कमेटी बनाई है, उसमें 'ओपीएस' का जिक्र ही नहीं है। उसमें तो एनपीएस में सुधार की बात कही गई है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार, ओपीएस लागू करने के मूड में नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा एनपीएस में चाहे जो भी सुधार किया जाए, कर्मियों को वह मंजूर नहीं है। कर्मियों का केवल एक ही मकसद है, बिना गारंटी वाली 'एनपीएस' योजना को खत्म किया जाए और परिभाषित एवं गारंटी वाली 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल किया जाए।
पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीडी चंद्रचूड, जस्टिस बीडी तुलजापुरकर, जस्टिस ओ. चिन्नप्पा रेड्डी एवं जस्टिस बहारुल इस्लाम शामिल थे, के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट पिटीशन संख्या 5939 से 5941, जिसको डीएस नाकरा एवं अन्य बनाम भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है, उसमें दिनांक 17 दिसंबर 1981 को दिए गए प्रसिद्ध निर्णय का उल्लेख करना आवश्यक है। इसके पैरा 31 में कहा गया है, चर्चा से तीन बातें सामने आती हैं। एक, पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह की बात है जो कि नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर हो। यह 1972 के नियमों के अधीन, एक निहित अधिकार है जो प्रकृति में वैधानिक है, क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के खंड '50' का प्रयोग करते हुए अधिनियमित किया गया है। पेंशन, अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं है, बल्कि यह पूर्व सेवा के लिए भुगतान है। यह उन लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक न्याय प्रदान करने वाला एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में, नियोक्ता के इस आश्वासन पर लगातार कड़ी मेहनत की है कि उनके बुढ़ापे में उन्हें ठोकरें खाने के लिए नहीं छोड़ दिया जाएगा।
एनपीएस में रिटायर्ड कर्मियों को मिली इतनी पेंशन
एनपीएस में कर्मियों जो पेंशन मिल रही है, उतनी तो बुढ़ापा पेंशन ही है। एनपीएस स्कीम में शामिल कर्मी, 18 साल बाद रिटायर हो रहे हैं, उन्हें क्या मिला है। एक कर्मी को एनपीएस में 2417 रुपये मासिक पेंशन मिली है, दूसरे को 2506 रुपये और तीसरे कर्मी को 4900 रुपये प्रतिमाह की पेंशन मिली है। अगर यही कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में होते तो उन्हें प्रतिमाह क्रमश: 15250 रुपये, 17150 रुपये और 28450 रुपये मिलते। एनपीएस में कर्मियों द्वारा हर माह अपने वेतन का दस प्रतिशत शेयर डालने के बाद भी उन्हें रिटायरमेंट पर मामूली सी पेंशन मिलती है। इस शेयर को 14 या 24 फीसदी तक बढ़ाने का कोई फायदा नहीं होगा। एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, एनपीएस में पुरानी पेंशन व्यवस्था की तरह महंगाई राहत का भी कोई प्रावधान नहीं है। जो कर्मचारी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में आते हैं, उन्हें महंगाई राहत के तौर पर आर्थिक फायदा मिलता है। एनपीएस में सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी नहीं रही। रिटायरमेंट के बाद सरकारी कर्मियों को जानबूझ कर कष्टों में धकेला जा रहा है।