सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   Supreme Court criticises trend of seeking bail under guise of challenging validity of PMLA today update news

Supreme Court: 'PMLA की वैधता को चुनौती देकर जमानत मांगने की प्रवृति गलत'; शीर्ष कोर्ट की अवकाश पीठ की टिप्पणी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिव शरण शुक्ला Updated Tue, 30 May 2023 08:30 PM IST
विज्ञापन
सार

पीठ ने कहा कि अदालत विजय मदनलाल के फैसले के बावजूद धारा 15 और 63 और पीएमएलए के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली धारा 32 के तहत इस अदालत में रिट याचिकाएं दायर करना एक प्रवृत्ति बन गई है।

Supreme Court criticises trend of seeking bail under guise of challenging validity of PMLA today update news
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : अमर उजाला
loader
Trending Videos

विस्तार
Follow Us

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में पीएमएलए की वैधता को चुनौती देने की आड़ में जमानत मांगने की प्रवृत्ति की निंदा की है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने मंगलवार को इसकी निंदा करते हुए कहा कि अधिनियम को चुनौती देने वाली ऐसी याचिकाएं दायर करना और परिणामी राहत की प्रक्रिया में अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों को दरकिनार करना है।

Trending Videos


छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाला मामले में जांच का सामना कर रहे लोगों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाश पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
विज्ञापन
विज्ञापन


पीठ ने कहा कि अदालत विजय मदनलाल के फैसले के बावजूद धारा 15 और 63 और पीएमएलए के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली धारा 32 के तहत इस अदालत में रिट याचिकाएं दायर करना एक प्रवृत्ति बन गई है। जिन पर राहत भी दी गई है। लेकिन याचिकाकर्ता ऐसे मामलों के निपटारे के लिए उन मंचो से किनारा कर रहे हैं, जो उनके लिए खुले हैं। वे सीधे यहां आ जा रहे हैं। 

 पीठ ने टिप्पणी की कि शीर्ष अदालत एक वैकल्पिक मंच बनता जा रहा है। हाई कोर्ट जाने और वहां के कानून के प्रावधानों को चुनौती देने के बजाय आरोपी सुप्रीम कोर्ट में सम्मन का विरोध कर रहे हैं।

 गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने मदनलाल फैसले में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तारी, मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार रखा था। संविधान का अनुच्छेद 32 व्यक्तियों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं।

मामले की सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं की विचारणीयता पर गंभीर आपत्ति जताई। मेहता ने कहा कि एक कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने और फिर बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के आदेश प्राप्त करने का एक नया चलन है। यह एक तरह से वास्तव में एक अग्रिम जमानत मांगने जैसा है। एसजी ने कहा कि इसे बिना किसी अनिश्चित शब्दों के बहिष्कृत किया जाना चाहिए। लोगों से संपर्क किया जा रहा है कि वे अग्रिम जमानत मांगने के बजाय कानून के दायरे को चुनौती दें।
 
एसजी की इन दलीलों का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने समर्थन किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की बार-बार दलीलों के साथ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की प्रथा को बंद करने की जरूरत है।

Supreme Court criticises trend of seeking bail under guise of challenging validity of PMLA today update news
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : अमर उजाला, इंदौर
सुप्रीम कोर्ट ने युवती को दी सुरक्षा  
वहीं, एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस को 20 साल की एक युवती को सुरक्षा देने का निर्देश दिया। जानकारी के मुताबिक, युवती कथित तौर पर घर से भाग गई थी। इसके बाद युवती के परिजनों ने एक युवक पर उसे अगवा करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। 

बाद में युवती ने शीर्ष कोर्ट में अपने परिवार के सदस्यों से अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई। जिसके बाद अदालत ने पुलिस को उसे सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया है।

बता दें कि आरोपी युवक ने पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील की थी। जहां हाई कोर्ट ने जांच में सहयोग नहीं करने और बुलाए जाने के बावजूद जांच अधिकारी को जवाब नहीं देने को देखते हुए उस व्यक्ति को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया था। इसके बाद युवक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष कोर्ट में न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाश पीठ ने इस मामले में सुनवाई की। 

सुनवाई के दौरान युवती ने आशंका व्यक्त की कि उसके परिवार के सदस्यों से उसकी जान को खतरा है और आरोप लगाया कि उसका भाई उसका पीछा कर रहा है। उसने कहा कि उसे जबरन वापस अपने घर ले जाया जाएगा, जहां वह नहीं जाना चाहती। उसके मुताबिक, वह वाराणसी में रहती है और वहीं लौटना चाहती है। साथ ही उसने सुरक्षा मांगी थी।

महिला की स्थिति को जानकर पीठ ने मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। साथ ही  कहा कि मामले को देखते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता दो दिनों के भीतर संबंधित पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण करेगा। साथ ही याचिकाकर्ता के पास जमानत के लिए उपयुक्त आवेदन करने का अधिकार होगा। पीठ ने कहा कि वर्तमान आदेश में की गई टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना संबंधित अदालत द्वारा यथाशीघ्र निर्णय लिया जाएगा। चूंकि महिला ने आशंका व्यक्त की है कि उसकी जान को खतरा है ऐसे में नई दिल्ली में तिलक मार्ग एसएचओ को उसे सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है। पीछ ने एसएचओ को मंगलवार को ही वाराणसी में उसे छोड़ने के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का आदेश दिया।

Supreme Court criticises trend of seeking bail under guise of challenging validity of PMLA today update news
सरोगेसी - फोटो : istock
सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी के नियमों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी (किराए की कोख) से संबंधित केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों में स्पष्ट कहा गया है कि सरोगेसी के जरिये माता-पिता बनने के इच्छुक जोड़े दाता से युग्मक (गैमीट) नहीं ले सकते हैं। युग्मक प्रजनन कोशिकाएं हैं। पुरुष युग्मक शुक्राणु होते हैं और महिला युग्मक अंडाणु।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 14 मार्च, 2023 को सामान्य वैधानिक नियम (जीएसआर) 179 (ई) प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया हैः (1) बच्चे के लिए सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले इच्छुक जोड़े के पास दोनों युग्मक यानी शुक्राणु और अंडाणु होने चाहिए, उन्हें दाता (डोनर) से युग्मक लेने की अनुमति नहीं है (2) सरोगेसी से गुजर रही एकल महिलाओं (विधवा/तलाकशुदा) को सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए स्वयं के अंडे और दाता के शुक्राणुओं का उपयोग करना चाहिए।

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विनियमन अधिनियम, 2021 की धारा 2(एच) गैमीट डोनर को ऐसे व्यक्ति रूप में परिभाषित करती है जो बांझ दंपति या महिला को बच्चा पैदा करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से शुक्राणु या डिम्बाणुजनकोशिका प्रदान करता है।

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि अधिसूचना को पहले से ही चुनौती दी गई है। पीठ ने कहा, हम इस याचिका पर विचार क्यों करें? क्या आप यह मामला केवल प्रचार के लिए दायर कर रहे हैं?

पीठ की मंशा को भांपते हुए आवेदनकर्ता की ओर से पेश वकील ने याचिका वापस ले ली और इसके बाद पीठ ने मामले को खारिज कर दिया। याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि ये सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के खिलाफ हैं जो बांझ दंपतियों को पितृत्व का अधिकार देते हैं।

जान के खतरे की आशंका पर महिला को प्रदान की सुरक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को घर से भाग गई और अपने परिवार के सदस्यों से जान को खतरा होने की आशंका व्यक्त करने वाली 20 वर्षीय एक महिला को सुरक्षा देने का निर्देश दिल्ली पुलिस को दिया। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया, जिसमें महिला के अपहरण के आरोपी की अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई थी।
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

एप में पढ़ें

Followed