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शाहीन बाग: क्यों चला भाजपा की MCD का बुलडोजर? CAA पर सरकार को चुनौती देने की सजा या मुद्दों से भटकाने की कोशिश!

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Wed, 11 May 2022 06:56 PM IST
सार
विपक्ष का आरोप है कि यह कार्रवाई शाहीन बाग के लोगों को सरकार के खिलाफ नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में आंदोलन चलाने की सजा है। आरोप यह भी है कि इस माध्यम से भाजपा मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश कर रही है, जैसा कि वह कुछ अन्य राज्यों में भी कर चुकी है...
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Why BJPs bulldozer targeted to Shaheen Bagh: is it the punishment for protest against CAA law or trying to divert from core issues
शाहीन बाग में बुलडोजर - फोटो : PTI (File Photo)

विस्तार
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शाहीन बाग का नाम दिसंबर 2019 में अचानक ही उस समय अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था, जब केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधऩ कानून के विरोध में यहां की मुस्लिम महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना शुरू कर दिया था। यह आंदोलन 24 मार्च 2020 तक चला, लेकिन लगभग दो साल बाद शाहीन बाग एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इस बार वजह है भाजपा शासित नगर निगम का बुलडोजर, जो यहां अवैध निर्माण गिराने की कोशिश कर रहा है। स्थानीय लोगों के विरोध और अदालत की दखल के बाद ये कार्रवाई कुछ समय के लिए रुक जरूर गयी है, लेकिन भाजपा बार-बार इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश में जुटी है।



विपक्ष का आरोप है कि यह कार्रवाई शाहीन बाग के लोगों को सरकार के खिलाफ नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में आंदोलन चलाने की सजा है। आरोप यह भी है कि इस माध्यम से भाजपा मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश कर रही है, जैसा कि वह कुछ अन्य राज्यों में भी कर चुकी है। इस तरह के आरोप उस समय भी लगाए गए थे जब जहांगीरपुरी में बुलडोजर चलाए गए थे। बड़ा प्रश्न है कि ये आरोप कितने सही हैं? यह केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई है या इसके माध्यम से भाजपा कोई खास संदेश देना चाहती है।

नोएडा-दिल्ली को जोड़ता है यह मार्ग

शाहीन बाग का आंदोलन जिस सड़क पर चलाया गया था, वह नोएडा और दक्षिणी दिल्ली को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग है। यहां आने-जाने वाले दोनों तरफ के रास्तों पर दिन-रात भारी संख्या में वाहन चलते हैं। सड़कों के दोनों किनारों पर पत्थरों की कम ऊंचाई की बैरीकेडिंग है। उसे तोड़कर आगे आकर कोई स्थाई निर्माण करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इससे यातायात बाधित हो सकता है जिस पर प्रशासन तुरंत सक्रिय हो जाता है। यही कारण है कि किसी भी बड़े राष्ट्रीय मार्गों की तरह इस मुख्य मार्ग पर भी स्थाई निर्माण जैसी अतिक्रमण की कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

हालांकि, स्थानीय दुकानदार खोमचे, ठेले या चारपाई लगाकर उस पर अपने सामानों की बिक्री जरूर करते हैं। मुख्य बस्ती के करीब इस प्रकार का अतिक्रमण ज्यादा होता है। इस तरह के अतिक्रमण दिल्ली के हर इलाके में देखे जा सकते हैं। लेकिन समझा जा सकता है कि इस तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए किसी बुलडोजर की आवश्यकता नहीं होती। नगर निगम के दस्ते समय-समय पर दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में इस तरह के अतिक्रमण के विरुद्ध सफाई अभियान चलाते रहते हैं।

एमसीडी की नियमावली के अनुसार इस तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए किसी नोटिस की भी आवश्यकता नहीं होती। नगर निगम के दस्ते ऐसे अतिक्रमण को हटाने के लिए वाहनों में अचानक आते हैं और अतिक्रमण कर रहे लोगों के खोमचे-ठेले उठाकर ले जाते हैं। उचित जुर्माना अदा कर दुकानदार इसे वापस पा जाते हैं। सवाल किया जा रहा है कि ऐसी स्थिति में भाजपा शासित दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने बुलडोजर क्यों भेजा?

हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देने की कोशिश

राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन है कि आरएसएस और भाजपा एक सोची समझी रणनीति के अंतर्गत हिंदुत्व के मुद्दे को लगातार हवा देने की कोशिश करते रहते हैं। कभी हिजाब पर विवाद के बहाने तो कभी हलाल मीट के बहाने वे हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण को ज्यादा गहराई देने की कोशिशों में जुटे हैं। कुतुबमीनार, ताजमहल और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद हिन्दू बहुल जनमानस को यह संदेश देने के लिए खड़े किए जा रहे हैं कि केवल अयोध्या में मंदिर बनने से कार्य पूरा नहीं हुआ है। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

शायद यह उम्मीद ही तमाम मुद्दों पर नाराजगी के बावजूद मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित कर रही है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में भाजपा को मिले वोट भी इस बात को प्रमाणित करते हैं, जब महंगाई और कोरोना काल में भारी कुप्रबंधन के बावजूद जनता ने भाजपा को दोबारा समर्थन दिया। इस जनसमर्थन का कारण इन भावनात्मक मुद्दों में ही दिखाई देता है।

चूंकि, नागरिकता विरोधी आंदोलन का केंद्र होने के कारण शाहीन बाग अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में रह है, भाजपा थिंक टैंक को यह बात बखूबी मालूम है कि शाहीन बाग से निकली आवाज दूर तक जाएगी। जो काम सैकड़ों खरगोन और गाजीपुर में हुई कार्रवाई नहीं कर सकती, वह अकेले शाहीन बाग में कार्रवाई से हो सकती है। लिहाजा माना जा रहा है कि भगवा खेमे ने बहुत सोच समझकर शाहीन बाग को चुना और इसके माध्यम से दूर तक अपना संदेश पहुंचाया। कुतुबमीनार और ताजमहल विवाद भी इसी रणनीति की अगली कड़ी हो सकती है।

विपक्ष के आरोप

जामियानगर के स्थानीय विधायक अमानतुल्लाह खान ने आरोप लगाया है कि बुलडोजर के बहाने मुसलमानों को डराने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस इलाके में कोई स्थाई अतिक्रमण नहीं है। कुछ अस्थाई किस्म की चीजें रखी गई थीं जिसे लोगों ने स्वयं हटा लिया है। ऐसे में अब यहां बुलडोजर जैसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल कुमार ने आरोप लगाया है कि चूंकि शाहीन बाग की महिलाओं ने केंद्र सरकार के सामने खड़े होने की हिम्मत दिखाई थी, बुलडोजर की कार्रवाई से उन्हें सजा देने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि देश में इस तरह की राजनीति स्वीकार्य नहीं होगी।

पक्ष में भी खड़े हैं लोग

इस कार्रवाई के बाद सामान्य संदेश यही गया है कि शाहीन बाग में लोगों ने इस कार्रवाई का जबरदस्त विरोध किया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से शाहीनबाग में काफी लोग इस कार्रवाई के समर्थन में भी खड़े हैं। शाहीन बाग आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली हबीबा खातून ने अमर उजाला से कहा कि वे यह नहीं मानतीं कि बुलडोजर की कार्रवाई आंदोलन चलाने की सजा के रूप में की जा रही है, या इसके जरिए किसी को डराने की कोशिश की जा रही है।

उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि उनके आसपास के इलाकों में रोड पर अतिक्रमण होता रहता है, जिससे आवागमन में अवरोध पैदा होता है। विशेषकर अंदर की सड़कों पर इस तरह का अतिक्रमण बहुत ज्यादा होता है, दुकानदार अपनी दुकानें आगे तक बढ़ा लेते हैं जिससे चलना मुश्किल हो जाता है। समय-समय पर नगर निगम इसे हटाने की कार्रवाई भी करता रहता है। उन्होंने कहा कि इस बार भी इसी तरह की कार्रवाई की जा रही थी, इसलिए इसे किसी अन्य दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।  

मुद्दों से भटकाने की कोशिश

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कोई भी सत्ताधारी दल मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए रणनीति के तहत इस तरह के मुद्दों को हवा देता है। इस समय महंगाई चरम पर है, लोगों को अपना घर चलाना भी मुश्किल होता जा रहा है। सब्जी, दाल और आटे की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर चला गया है। एक डॉलर की कीमत बढ़कर रिकॉर्ड 77.44 रुपये के करीब हो गई है। आने वाले दिनों में भी महंगाई से राहत मिलने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। बहुत संभव है कि इन बड़े मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के मुद्दे जानबूझकर उठाए जा रहे हैं।   

जनता समझे कौन कर रहा बांटने की कोशिश

दिल्ली भाजपा के महामंत्री हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि प्रशासन की कार्रवाई किसी समस्या को खत्म करने के लिए की जाती है। विपक्षी दल वोटों की राजनीति के कारण इसे हिंदू-मुस्लिम का रंग दे देते हैं। उन्होंने कहा कि शाहीन बाग में ही इसके पहले भी समय-समय पर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई हुई है, लेकिन उस समय कोई विरोध नहीं किया गया। लेकिन अब इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है।

हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि जहांगीरपुरी के इलाके में भी घटना के 15 दिन पहले तीन बार अतिक्रमण हटाने का काम किया जा चुका था। उस समय इसे मुद्दा नहीं बनाया गया। लेकिन जैसे ही शोभायात्रा पर पत्थरबाजी की गई, अपराधियों को बचाने के लिए और अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए बुलडोजर की कार्रवाई को मुसलमानों के खिलाफ बता दिया गया। पूरी कार्रवाई को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया और असली मुद्दा भटक गया। उन्होंने कहा कि इसी से स्पष्ट हो जाना चाहिए कि हिंदू-मुस्लिम की राजनीति आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लोग कर रहे हैं, भाजपा नहीं।

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