Year Ender 2022: जनता ने कांग्रेस को दिए कई संदेश, गुटबाजी के लिए दिया दंड, संघर्ष के लिए हिमाचल में मिला इनाम
Year Ender 2022: यात्रा को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों से जिस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है, जिस तरह विभिन्न समाज के लोग स्वतः स्फूर्त तरीके से यात्रा में शामिल हो रहे हैं, इससे कांग्रेस का उत्साहित होना स्वाभाविक है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस यात्रा ने राहुल गांधी को ज्यादा बेहतर, परिपक्व और एक सशक्त नेता के तौर पर स्थापित करने में मदद की है...
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साल 2022 कांग्रेस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ है। इस साल (Year Ender 2022) पार्टी ने एक गैर-गांधी को अध्यक्ष चुनकर पार्टी में बड़े बदलाव का संकेत दिया है। अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराकर भी उसने कांग्रेस पर लग रहे कई आरोपों का जवाब देने की कोशिश की है। जनता ने भी कांग्रेस को ईनाम और दंड देने में कोई संकोच नहीं किया। उसने उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस की नाकामियों के लिए उसे कड़ा दंड दिया, तो हिमाचल प्रदेश में उसके काम का ईनाम भी दिया। जनता ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि यदि कांग्रेस अपनी नाकामियों से उबरते हुए जनता के मुद्दों पर संघर्ष करे तो अभी भी उसे उसका प्यार और आशीर्वाद मिल सकता है।
भारत जोड़ो यात्रा ने बदली राहुल की पहचान
राहुल गांधी ने इसी साल सात सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3500 किलोमीटर से ज्यादा की लंबी यात्रा को पूरी तरह गैर राजनीतिक रखा गया, जिससे इससे सभी दल जुड़ सकें। पार्टी ने यात्रा का उद्देश्य संवैधानिक संस्थाओं पर मंडरा रहे संकट, लोगों के अधिकारों में की जा रही कटौती और भय-भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और गरीबी के विरुद्ध लड़ाई बताया। 24 दिसंबर को यात्रा के 108 दिन पूरे हो रहे हैं और इस दौरान यह यात्रा दिल्ली में प्रवेश कर रही है।
यात्रा को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों से जिस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है, जिस तरह विभिन्न समाज के लोग स्वतः स्फूर्त तरीके से यात्रा में शामिल हो रहे हैं, इससे कांग्रेस का उत्साहित होना स्वाभाविक है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस यात्रा ने राहुल गांधी को ज्यादा बेहतर, परिपक्व और एक सशक्त नेता के तौर पर स्थापित करने में मदद की है। आगामी विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका लाभ मिलना तय माना जा रहा है।
गांधी परिवार ने अध्यक्ष पद छोड़ा
गांधी परिवार पर सबसे बड़ा आरोप कांग्रेस पर एकाधिकार जमाए रखने का लगाया जाता रहा है। लेकिन गांधी परिवार ने इस बार इस पद से अपनी दूरी बनाए रखी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बार-बार की मांग के बाद भी राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने इस पद में अपनी कोई रुचि नहीं दिखाई। एक लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया से अध्यक्ष पद के लिए चुनाव संपन्न हुए और 24 साल बाद कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खरगे के रूप में पार्टी को एक गैर गांधी अध्यक्ष मिला। उन्होंने 26 अक्तूबर 2022 को उन्होंने अपना पद ग्रहण किया। इसके पहले सीताराम केसरी गैर-गांधी पार्टी के अध्यक्ष रहे थे।
मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने एक तीर से कई शिकार किए। इससे पार्टी पर गांधी परिवार के कब्जे के सवाल का जवाब तो मिला ही, पार्टी ने यह भी बताया कि उसके यहां अध्यक्ष पद का चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से होता है और उसके यहां कोई निचले स्तर का कार्यकर्ता भी चुनाव लड़कर अध्यक्ष पद तक पहुंच सकता है।
दामोदरन संजीवैया और बाबू जगजीवन राम के बाद मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के तीसरे दलित अध्यक्ष बने। पार्टी का यह कदम अपने पारंपरिक मतदाताओं (दलित) को अपनी ओर खींचने की एक कोशिश के तौर पर देखा गया। भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर जिस तरह आदिवासी जनजातीय मतदाताओं में एक संकेत देने की कोशिश की है, खरगे को उसी तरह कांग्रेस के दलित कार्ड के रूप में देखा गया। दलित पार्टी अध्यक्ष के तौर पर खरगे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लाभ पहुंचा सकते हैं।
हिमाचल में प्रियंका चमकीं
हिमाचल प्रदेश में जिस तरह प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली और पार्टी को जीत दिलाई, उससे उनकी छवि मजबूत हुई है। इससे पार्टी को एक बड़ा चेहरा मिला है। चुनाव के बाद भी जिस तरह पार्टी ने सुखविंदर सुक्खू को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना और वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह की महत्त्वाकांक्षा को रोककर रखा, उससे पार्टी ने निचले स्तर के कार्यकर्ता को सबसे ऊंचे पद पर पहुंचने का संकेत दिया। साथ ही प्रतिभा सिंह को संभालकर उसने परिवारवाद और भ्रष्टाचार से दूरी बनाए रखने का भी संकेत दिया।
आक्रामक हुई पार्टी
कांग्रेस नेताओं के बयानों में अचानक बहुत तल्खी देखी जा रही है। उसके नेता और प्रवक्ता अब जिस अंदाज में सत्ता पक्ष पर हमला कर रहे हैं, कांग्रेस की संस्कृति के लिए यह नई बात है। उसके नेताओं के इस तेवर की कड़ी आलोचना भी हो रही है, लेकिन कांग्रेस नेताओं का स्पष्ट मानना है कि भाजपा ने जिस स्तर की राजनीति की शुरुआत की है, उसमें उसके लिए यह जरूरी है कि वह भी आक्रामक हो। यदि वह ऐसा नहीं करती तो उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है। जिस तरह आम आदमी पार्टी ने अपने आक्रामक तेवर से विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू की है, माना जा रहा है कि इससे भी कांग्रेस हमलावर मुद्रा अपनाने को बाध्य हुई है।
मतदाताओं का संदेश समझे पार्टी
किसी राजनीतिक पार्टी का अंतिम मूल्यांकन चुनावों में उसे मिली जीत या हार से किया जाता है। 2022 के साल की शुरुआत में कांग्रेस को यूपी, पंजाब, उत्तराखंड में करारी हार का सामना करना पड़ा। जो उत्तर प्रदेश देश की सियासत तय करता है, उसके 403 सीटों वाले सदन में कांग्रेस को 2.33 फीसदी वोटों के साथ केवल दो सीटों पर सफलता मिली। साल के अंत में गुजरात विधानसभा के चुनाव में भी पार्टी अब तक के सबसे निचली संख्या (17) पर आकर सिमट गई।
पंजाब और उत्तराखंड में पार्टी अपने नेताओं के आपसी टकराव को नहीं रोक पाई, जिससे उसे बड़ा नुकसान हुआ, तो गुजरात में कमजोर चुनावी तैयारी और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता को पार्टी की करारी हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। हालांकि, साल का अंत कांग्रेस के लिए कुछ उम्मीदें लेकर भी आया। पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल की, तो दिल्ली नगर निगम चुनाव में उसके पारंपरिक मतदाता (मुसलमान, दलित और ओबीसी) उसकी तरफ लौटते दिखाई पड़े।
राजनीतिक विशेषज्ञ सुधीर कुमार ने अमर उजाला से कहा कि इन चुनावों के जरिए जनता ने कांग्रेस को बहुत स्पष्ट संदेश दिया है। वह संदेश यह है कि यदि वह पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाजी को कठोरता से हैंडल करती है, और पूरे जोश के साथ जमीनी मुद्दे उठाते हुए जनता की लड़ाई लड़ती है तो उसे उसका (जनता) का आशीर्वाद अवश्य मिलेगा। राहुल की अगली अग्निपरीक्षा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में होगी। यदि वे स्थानीय नेताओं के आपसी मतभेद दूर कर पाए तो ये दोनों राज्य दोबारा कांग्रेस की झोली में जा सकते हैं। लेकिन इसमें असफल होने पर कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के अस्तित्व को लेकर गहरे सवाल खड़े हो जाएंगे।