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जनादेश जम्मू कश्मीर : अलगाववादियों से दूरी...जनता को रास न आई जमात-ए-इस्लामी की रणनीति

अमृतपाल सिंह बाली, श्रीनगर Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Wed, 09 Oct 2024 05:24 AM IST
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सार

कश्मीर घाटी में कई ऐसे चेहरे मैदान में उतरे थे, जो पहले कभी अलगाववाद से जुड़े हुए थे या अलगाववादी विचारधारा रखते थे।

Mandate Jammu and Kashmir: Distance from separatists...people did not like Jamaat-e-Islami's strategy
लंगेट सीट से जीते अवामी इत्तेहाद पार्टी के खुर्शीद अहमद - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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जम्मू-कश्मीर में दस वर्षों के बाद और अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनावों में एक अच्छी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की उम्मीद रखते हुए कश्मीर घाटी में कई ऐसे चेहरे मैदान में उतरे थे, जो पहले कभी अलगाववाद से जुड़े हुए थे या अलगाववादी विचारधारा रखते थे। खासकर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) जैसे संगठन की बात करें, तो उसने चुनाव बहिष्कार की अपनी रणनीति को दरकिनार कर मुख्यधारा में कदम रखने का फैसला किया था। उसके अनुसार, लोकतांत्रिक प्रक्रिया ही एकमात्र ऐसा हल है, जिससे जनता के मसलों को हल किया जा सकता है। हिंसा और बहिष्कार  किसी मुद्दे का समाधान नहीं कर सकते।

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कश्मीर घाटी में जेईआई के या जेईआई समर्थित जो उम्मीदवार मैदान में अपनी किस्मत आजमाने उतरे थे उनमें से कुछ प्रमुख सैयार रेशी (कुलगाम), एजाज अहमद मीर (जैनापोरा), डॉ तलत मजीद (पुलवामा), अब्दुल रेहमान शाला (बारामुला), मजूूर कलू (सोपोर) और कलीमुल्ला लोन (लंगेट) शामिल थे। इसके अलावा सरजन बरकाती (गांदरबल और बीरवाह) और अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु (सोपोर) भी मैदान में उतरे थे जो कट्टर अलगाववादी विचारधारा से संबंध रखते थे। लेकिन कश्मीर की अवाम ने इन सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।  
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जमात और एआईपी को झटका
घाटी के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शौकत साहिल ने बताया कि नतीजे कहीं न कहीं यह दर्शाते हैं कि लोगों को इन उम्मीदवारों पर शक था कि वे जो कुछ कर रहे हैं, दिल्ली के इशारों पर कर रहे हैं। इसलिए लोगों ने उनपर भरोसा नहीं जताया। उन्होंने कहा, मतदाता तीन हिस्सों में बंटे थे। एक वर्ग वो जो सिस्टम से नाराज था और मान रहा था कि वोट दें या नहीं, कुछ बदलने वाला नहीं है।

दूसरा एक तबका ऐसा था जिसे उम्मीद थी कि अबकी बार हमारी अपनी सरकार होगी तो हम रोजमर्रा का मसलों को हल कर सकेंगे। तीसरा ऐसा तबका था जो केंद्र सरकार के 5 अगस्त, 2019 को लिए गए फैसले से नाराज था। उसके बाद घाटी के लोगों को लगा कि केंद्र ने एआईपी के इंजीनियर रशीद को परदे के पीछे से समर्थन दिया है या फिर एआईपी ने जमात को। इसलिए उसने इनकी रणनीति को नकार दिया। बता दें जहां जमात को किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है वहीं एआईपी की आेर से मैदान में उतारे गए 38 उम्मीदवारों में से 37 हार गए और केवल लंगेट सीट पर उसे कामयाबी हासिल हुई है।

जमात का नहीं खुला खाता, एआईपी को एक सीट

  • जैनापोरा से जमात समर्थित एजाज अहमद मीर नेकां के शौकत हुसैन गनई से 13,233 वोटों से हारे, जिन्हंे 28,251 वोट हासिल हुए। एजाज वाची से पीडीपी विधायक रह चुके हैं और इस बार टिकट न मिलने पर मैदान में निर्दलीय उतरे। बाद में जमात ने उन्हें समर्थन देने का फैसला लिया था।
  • कुलगाम से जमात के सैयार रेशी करीब 7,838 वोटों से सीपीआईएम के एमवाई तारिगामी से हारे। पांचवीं बार जीतने वाले तारिगामी को 33,634 वोट प्राप्त हुए।
  • पुलवामा से डॉ. तलत मजीद पीडीपी के वहीद पर्रा से 22,883 वोटों से हारे, जिन्हंे 24,716 वोट मिले।
  • बारामुला से अब्दुल रहमान शाला नेकां के जावेद बेग से 20,555 वोटों से हारे। बेग को 22,523 वोट मिले।
  • सोपोर में जमात ने पूर्व हुर्रियत नेता मंजूर कलू को समर्थन दिया था जो नेकां के इरशाद अहमद कार से 26,569 वोटों से हारे, उन्हें कुल 406 वोट प्राप्त हुए। अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु को नोटा से भी कम 129 वोट हासिल हुए। 
  • लंगेट से पीएचडी स्कॉलर कलीमुल्ला लोन को जमात ने समर्थन िदया, पर वह इंजीनियर रशीद के भाई और एआईपी प्रत्याशी खुर्शीद अहमद से हार गए। सरजान बरकाती बीरवाह व गांदरबल से लड़े पर जीत नहीं पाए। गांदरबल में उन्हें  418 वोट पड़े और वे उमर से 32,046 वोटों से हारे।

 

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