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Jammu News: मूकबधिर स्कूल को नसीब नहीं हुई जमीन, 30 साल से जेडीए मौन
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शहीदी चोक के पास गली में स्थित मूक बधिर बच्चों के लिए संचालित निजी विद्यालय। अमर उजाला
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-जम्मू शहीदी चौक की तंग गली में कस्टोडियन की इमारत में पढ़ रहे 115 बच्चे
-खेलकूद की जगह न होने से शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा
अमर उजाला ब्यूरो
जम्मू। 30 साल का लंबा इंतजार... 115 छात्रों की उम्मीदें और व्यवस्था की घोर अनदेखी, यही हकीकत है जम्मू के स्कूल ऑफ हियरिंग हैंडीकैप्ड की। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर इन बच्चों के चेहरों पर तैरती मुस्कान के पीछे सवाल यह है कि आखिर जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) उन्हें आवंटित आठ कनाल जमीन का कब्जा कब दिलाएगा? वर्तमान में से स्कूल कस्टोडियन इमारत के 10 कमरों में चल रहा है। खेलकूद की जगह न होने से उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है।
शहीदी चौक की संकरी गली में स्थित स्कूल को जम्मू-कश्मीर समाज कल्याण केंद्र की तरफ से संचालित किया जा रहा है। तीन मंजिला इमारत पाकिस्तान चले गए परिवार की कस्टोडियन में मिली है। यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है जबकि राजोरी, पुंछ, रामबन, भद्रवाह और बिलावर से आने वाले बच्चे कक्षा एक से इंटरमीडिएट तक शिक्षा ले रहे हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि अलॉटमेंट के तीन दशक बाद जेडीए आठ कनाल जमीन नहीं दे सका।
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर इन बच्चों की मुस्कुराहट भले ही दिखाई दे रही थी लेकिन कहीं न कहीं बेहतर सुविधाओं के मिलने की आस मन में है। प्रधानाचार्य रोशन भान के अनुसार विद्यालय का किराया हर माह 1500 रुपये है। ट्रस्ट की स्थापना समाजसेवी व सर्जन डाॅ. आरआर खजूरिया ने की थी। इस समय पूर्व आईएएस केबी जंडियाल की देखरेख में संचालन हो रहा है। हाल यह है कि कई बार दो कक्षाओं के बच्चों को साथ बैठाना पड़ता है। कई बच्चे रिश्तेदारों के रहकर पढ़ रहे हैं तो कई किराए के कमरे में पढ़ाई करने पर मजबूर हैं।
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मुख्यमंत्री से कई बार मिले
सरकारी स्तर पर कोई प्रयास न होने के कारण पुंछ, रामबन, भद्रवाह, बिलावर, डोडा, यहां तक कि कारगिल से भी बच्चे आकर पढ़ रहे हैं। प्रधानाचार्य ने बताया कि 1995 में आठ कनाल जमीन जेडीए ने अलॉट कर दी लेकिन बार-बार मांगने के बाद भी नहीं दी गई। मजबूरी में संचालन किराए की बिल्डिंग में करना पड़ रहा है। सुविधाएं भी अपने स्तर पर नहीं दे सकते। मुख्यमंत्री से कई बार मिलकर जमीन दिलाने की मांग कर चुके हैं। यहां से आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला है।
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अभिभावकों के लिए ठहरने की व्यवस्था
एक कमरा उन अभिभावकों के लिए है जो रोज बच्चों को लेकर आते हैं। विद्यालय तक जाने के लिए रास्ता इतना संकरा है कि दोपहिया वाहन के सिवाए बड़ा वाहन नहीं जा सकता। बच्चों को सरकार की तरफ से प्रति माह 1250 रुपये मिलते हैं, मगर कई बच्चों का अभी तक आय प्रमाणपत्र न बनने से सहायता नहीं मिल पा रही। जम्मू कश्मीर समाज कल्याण केंद्र के अध्यक्ष केबी जंडियाल ने बताया कि ट्रस्ट में जुड़े सदस्यों के सहयोग से विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। कोशिश यही है कि बच्चों को अधिक से अधिक सुविधाएं मिलें। इसमें कई समाजसेवी मदद कर रहे हैं। सरकारी स्तर पर अनदेखी हो रही है।
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-खेलकूद की जगह न होने से शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा
अमर उजाला ब्यूरो
जम्मू। 30 साल का लंबा इंतजार... 115 छात्रों की उम्मीदें और व्यवस्था की घोर अनदेखी, यही हकीकत है जम्मू के स्कूल ऑफ हियरिंग हैंडीकैप्ड की। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर इन बच्चों के चेहरों पर तैरती मुस्कान के पीछे सवाल यह है कि आखिर जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) उन्हें आवंटित आठ कनाल जमीन का कब्जा कब दिलाएगा? वर्तमान में से स्कूल कस्टोडियन इमारत के 10 कमरों में चल रहा है। खेलकूद की जगह न होने से उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है।
शहीदी चौक की संकरी गली में स्थित स्कूल को जम्मू-कश्मीर समाज कल्याण केंद्र की तरफ से संचालित किया जा रहा है। तीन मंजिला इमारत पाकिस्तान चले गए परिवार की कस्टोडियन में मिली है। यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है जबकि राजोरी, पुंछ, रामबन, भद्रवाह और बिलावर से आने वाले बच्चे कक्षा एक से इंटरमीडिएट तक शिक्षा ले रहे हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि अलॉटमेंट के तीन दशक बाद जेडीए आठ कनाल जमीन नहीं दे सका।
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अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर इन बच्चों की मुस्कुराहट भले ही दिखाई दे रही थी लेकिन कहीं न कहीं बेहतर सुविधाओं के मिलने की आस मन में है। प्रधानाचार्य रोशन भान के अनुसार विद्यालय का किराया हर माह 1500 रुपये है। ट्रस्ट की स्थापना समाजसेवी व सर्जन डाॅ. आरआर खजूरिया ने की थी। इस समय पूर्व आईएएस केबी जंडियाल की देखरेख में संचालन हो रहा है। हाल यह है कि कई बार दो कक्षाओं के बच्चों को साथ बैठाना पड़ता है। कई बच्चे रिश्तेदारों के रहकर पढ़ रहे हैं तो कई किराए के कमरे में पढ़ाई करने पर मजबूर हैं।
मुख्यमंत्री से कई बार मिले
सरकारी स्तर पर कोई प्रयास न होने के कारण पुंछ, रामबन, भद्रवाह, बिलावर, डोडा, यहां तक कि कारगिल से भी बच्चे आकर पढ़ रहे हैं। प्रधानाचार्य ने बताया कि 1995 में आठ कनाल जमीन जेडीए ने अलॉट कर दी लेकिन बार-बार मांगने के बाद भी नहीं दी गई। मजबूरी में संचालन किराए की बिल्डिंग में करना पड़ रहा है। सुविधाएं भी अपने स्तर पर नहीं दे सकते। मुख्यमंत्री से कई बार मिलकर जमीन दिलाने की मांग कर चुके हैं। यहां से आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला है।
अभिभावकों के लिए ठहरने की व्यवस्था
एक कमरा उन अभिभावकों के लिए है जो रोज बच्चों को लेकर आते हैं। विद्यालय तक जाने के लिए रास्ता इतना संकरा है कि दोपहिया वाहन के सिवाए बड़ा वाहन नहीं जा सकता। बच्चों को सरकार की तरफ से प्रति माह 1250 रुपये मिलते हैं, मगर कई बच्चों का अभी तक आय प्रमाणपत्र न बनने से सहायता नहीं मिल पा रही। जम्मू कश्मीर समाज कल्याण केंद्र के अध्यक्ष केबी जंडियाल ने बताया कि ट्रस्ट में जुड़े सदस्यों के सहयोग से विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। कोशिश यही है कि बच्चों को अधिक से अधिक सुविधाएं मिलें। इसमें कई समाजसेवी मदद कर रहे हैं। सरकारी स्तर पर अनदेखी हो रही है।

शहीदी चोक के पास गली में स्थित मूक बधिर बच्चों के लिए संचालित निजी विद्यालय। अमर उजाला